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Daily-current-affairs / 08 Feb 2024

भारत में राजकोषीय संघवाद की चुनौतियाँ: वित्तीय हस्तांतरण में कटौती

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संदर्भ:

भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के संबंध लंबे समय से जांच के विषय रहे हैं, विशेषकर वित्तीय हस्तांतरण के संबंध में।  पिछले एक दशक में, राज्यों के वित्तीय हस्तांतरण को बढ़ाने के लिए लगातार वित्त आयोग अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेज रहा है। इसके बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को वित्तीय आवंटन कम करने की एक स्पष्ट प्रवृत्ति चलन में रही है। आयोग की सिफ़ारिशों और सरकार की कार्रवाइयों के बीच इस अंतर ने राजकोषीय संघवाद के सिद्धांतों और राज्यों के बीच संसाधनों के समान वितरण पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं।

वित्तीय हस्तांतरण और हस्तांतरण: एक विसंगति

  • चौदहवें वित्त आयोग ने राज्यों को हस्तांतरित होने वाले केंद्रीय कर राजस्व का हिस्सा 32% से बढ़ाकर 42% करने की एक ऐतिहासिक सिफारिश की। वित्त आयोग के इस सिफारिश को राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता के साथ सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया जा रहा है। हालाँकि, इन सिफारिशों के बावजूद, केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण में लगातार कटौती कर रही है, जिससे राजकोषीय विकेंद्रीकरण की प्रतिबद्धता को लेकर चिंताएँ बढ़ती जा रही हैं। वित्त आयोग के इसी कार्यकाल में केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में पर्याप्त वृद्धि को देखते हुए, वित्तीय हस्तांतरण में यह कटौती विशेष रूप से चिंतनीय है।
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्यों को आवंटित सकल कर राजस्व की हिस्सेदारी के विश्लेषण में वित्त आयोग की सिफारिशों और केंद्र सरकार के कार्यों के बीच विसंगति स्पष्ट परिलक्षित होती है। यद्यपि सकल कर राजस्व पिछले कुछ वर्षों में दोगुना से अधिक हो गया है, तथापि राज्यों को आवंटित हिस्सेदारी आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ी है। इसके बजाय, केंद्र सरकार ने संग्रह लागत, केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित राजस्व और विशिष्ट योजनाओं पर व्यय जैसे विभिन्न कारकों का संदर्भ बताते हुए कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा यथावत रखा है। वित्तीय हस्तांतरण में कटौती की इस प्रवृत्ति का राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता और विकास संबंधी आकांक्षाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

वित्तीय हस्तांतरण पर उपकर और अधिभार का प्रभाव:

  • सकल कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में गिरावट में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों में से एक केंद्र सरकार द्वारा उपकर और अधिभार पर बढ़ती निर्भरता है। हालाँकि ये राजस्व कारक राज्यों को अनुशंसित हस्तांतरण को नजरअंदाज कर देती हैं, लेकिन वे केंद्र सरकार को अपनी योजनाओं और पहलों को वित्तपोषित करने के लिए अतिरिक्त धनराशि भी प्रदान करती हैं। उपकर और अधिभार का प्रसार तथा उनका उपयोग, केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर है। हालांकि वित्तीय संसाधनों और निर्णय लेने को केंद्रीकृत करना; राजकोषीय संघवाद के सिद्धांतों को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
  • अन्य के बावजूद समग्र कर राजस्व के सापेक्ष, उपकर और अधिभार संग्रह की असंगत वृद्धि; राज्यों के वित्तीय हस्तांतरण में असंतुलन को बढ़ावा देती है। चूंकि ये राजस्व केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट उद्देश्यों के लिए निर्धारित किया जाता है, इसलिए राज्यों के पास अपने व्यय के प्रबंधन में सीमित लचीलापन होता है। उपकर और अधिभार-आधारित राजस्व सृजन की ओर यह बदलाव केवल हस्तांतरण के लिए उपलब्ध धन के पूल (प्रवाह) को कम करता है, बल्कि राज्यों की अपनी विकास संबंधी जरूरतों को प्राथमिकता देने की स्वायत्तता को भी कम करता है। नतीजतन, इस समय गैर-हस्तांतरणीय राजस्व स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता राजकोषीय संघवाद और न्यायसंगत संसाधन वितरण के सिद्धांतों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है।

सार्वजनिक व्यय का केंद्रीकरण और इसके प्रभाव:

  • राज्यों के वित्तीय हस्तांतरण में कटौती से सार्वजनिक व्यय का अधिक केंद्रीकरण हुआ है, साथ ही केंद्र सरकार धन के आवंटन और उपयोग पर अधिक नियंत्रण रखती है। यह केंद्रीकरण केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं (सीएसईसी) के प्रसार में स्पष्ट दिखाई पड़ता है, जिसके माध्यम से केंद्र सरकार वित्त पोषण और कार्यान्वयन की शर्तों को निर्धारित करती है। हालांकि इस समय केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों को समान धनराशि का योगदान करने की आवश्यकता है, लेकिन अभि भी इन योजनाओं को पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, जो संसाधन आवंटन पर केंद्र के अधिकार को और दृढ़ करता है।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं का प्रसार केवल राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को कम करता है, बल्कि संसाधन वितरण में अंतर-राज्य असमानताओं को भी बढ़ाता है। केंद्र सरकार के धन की बराबरी करने में सक्षम राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं से असमान रूप से लाभ होता है, जबकि कम समृद्ध राज्यों को वित्तीय बोझ में वृद्धि का सामना करना पड़ता है। यह विभेदक व्यवहार विकासात्मक परिणामों में असमानताओं को स्थिर रखता है और सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को कमजोर करता है। इसके अलावा, इन योजनाओं की विवेकाधीन प्रकृति केंद्र सरकार को विशिष्ट क्षेत्रों या निर्वाचन क्षेत्रों को प्राथमिकता देने की अनुमति देती है, जो संभावित रूप से राजनीतिक लाभ के लिए संसाधन आवंटन को कम कर देती है।

राजकोषीय शासन और सहकारी संघवाद के निहितार्थ:

  • राज्यों को कम होते वित्तीय हस्तांतरण, सार्वजनिक व्यय के केंद्रीकरण के साथ मिलकर, भारत में राजकोषीय प्रशासन और सहकारी संघवाद के लिए कई प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं। कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखने और उपकर एवं अधिभार जैसे गैर-हस्तांतरणीय स्रोतों के माध्यम से धन का उपयोग करके, केंद्र सरकार राज्यों के बीच राजकोषीय स्वायत्तता और संसाधन इक्विटी के सिद्धांतों को कमजोर करती है। यह प्रवृत्ति केवल राज्यों की अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता को बाधित करती है बल्कि संघीय ढांचे में समान भागीदार के रूप में उनकी भूमिका को भी नष्ट कर देती है।
  • इसके अलावा, केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं का प्रसार अंतर-राज्य असमानताओं को बढ़ावा देता है और संसाधन आवंटन के लिए केंद्र सरकार पर निर्भरता को प्रोत्साहित करता है। यह सहकारी संघवाद की भावना को कमजोर करता है, जो संघ और राज्यों के बीच सहयोग और साझा निर्णय लेने पर जोर देता है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, राजकोषीय प्रशासन में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ-साथ हस्तांतरण और विकेंद्रीकरण के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता की सख्त आवश्यकता है। राजकोषीय संघवाद को मजबूत करने के ठोस प्रयासों के माध्यम से ही भारत अपनी सभी घटक इकाइयों के लिए समावेशी और सतत विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।

निष्कर्ष:

  • निष्कर्षतः, राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण में वृद्धि की सिफ़ारिशों के बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के वित्तीय हस्तांतरण में कटौती करना, भारत में राजकोषीय प्रशासन और सहकारी संघवाद से संबंधित बुनियादी सवाल उठाता है। इसके साथ ही गैर-हस्तांतरणीय राजस्व स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता और सार्वजनिक व्यय का केंद्रीकरण राज्यों के बीच राजकोषीय स्वायत्तता और संसाधन इक्विटी के सिद्धांतों को कमजोर करता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए संघ और राज्यों के बीच अधिक पारदर्शिता, जवाबदेही और सहयोग की आवश्यकता है। अतः राजकोषीय संघवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करके, भारत अपने सभी नागरिकों के लिए समान और समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. भारत में केंद्र सरकार से राज्यों को कम वित्तीय हस्तांतरण हेतु कौन-कौन से कारक योगदान करते हैं, और राजकोषीय स्वायत्तता और सहकारी संघवाद के लिए इस संबंध में क्या निहितार्थ हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. उपकर और अधिभार भारत में केंद्र सरकार और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के आवंटन को कैसे प्रभावित करते हैं, और उनकी बढ़ती निर्भरता से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू