संदर्भ:
- हाल ही में संपन्न विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस इस वर्ष 'सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में मानसिक स्वास्थ्य' विषय पर केंद्रित था। इस सन्दर्भ में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा के दौरान एक महत्वपूर्ण, परंतु प्रायः उपेक्षित, समूह अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का विषय विचारणीय रहा। चूँकि मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को भी इसकी प्राप्ति का अवसर मिलना चाहिए। अतः भारत को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार और सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), विशेष रूप से लक्ष्य 3: स्वस्थ्य और तंदुरुस्ती सुनिश्चित करना और सभी उम्र के लोगों के लिए कल्याण को बढ़ावा देना; प्राप्त करने की दिशा में कार्य करने हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
भारत में असंगठित/अनौपचारिक क्षेत्र:
- भारत के श्रमबल का एक बड़ा हिस्सा असंगठित/अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। हालिया प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 80% श्रमिक औपचारिक क्षेत्र की तुलना में अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ केवल 20% रोजगार उपलब्ध हैं। इस असंगठित क्षेत्र में लगभग आधे लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं, जबकि शेष गैर-कृषि क्षेत्रों में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय आय में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को लगातार आर्थिक, शारीरिक और मानसिक असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
रोजगार और मानसिक स्वास्थ्य का परस्पर संबंध:
- अच्छी गुणवत्ता वाला रोजगार मानसिक स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जबकि बेरोजगारी, अस्थिर रोजगार, कार्यस्थल पर भेदभाव और असुरक्षित कार्य वातावरण मानसिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं। कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में कार्यरत श्रमिक मानसिक एवं सामाजिक जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अनुसार, निम्न-गुणवत्ता वाला रोजगार लगातार मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। अतः उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए रोजगार सुरक्षा बढ़ाने, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार करने और बेहतर कार्य परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस:
मुख्य उद्देश्य:
मानसिक स्वास्थ्य के निर्धारक:
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति:
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भारत के अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
- भारत में श्रमबल का 90% से अधिक हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। हालांकि यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, ये श्रमिक अनेक चुनौतियों का सामना करते हैं, जो उनकी मानसिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- चुनौतियाँ:
- संरक्षण का अभाव: अनौपचारिक क्षेत्र में कोई विनियमित वेतन या सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। असुरक्षित कार्य परिस्थितियों और सीमित सामाजिक वित्तीय सहायता के कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।
- लैंगिक असमानताएँ: भारत में कामकाजी महिलाओं में से 95% से अधिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं। आर्थिक अस्थिरता के साथ-साथ उन्हें पितृसत्तात्मक सामाजिक और पारिवारिक संरचना का भी सामना करना पड़ता है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को और प्रभावित करता है।
- युवा बेरोजगारी: भारत में युवा बेरोजगारी की दर अधिक है। रोजगार की कमी के कारण युवा अक्सर अनिश्चित और जोखिम भरे काम स्वीकार कर लेते हैं, जिससे उनकी मानसिक सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- वरिष्ठ नागरिकों के लिए रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: लगभग 3.3 करोड़ बुजुर्ग व्यक्ति सेवानिवृत्ति के बाद भी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। वित्तीय और स्वास्थ्य सुरक्षा की कमी उनकी मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर सकती है।
- संरक्षण का अभाव: अनौपचारिक क्षेत्र में कोई विनियमित वेतन या सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। असुरक्षित कार्य परिस्थितियों और सीमित सामाजिक वित्तीय सहायता के कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।
भारत सरकार की पहलें:
- अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों का मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत सरकार के लिए इसके समाधान उपायों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार लाना आवश्यक है। इसीलिए भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बढ़ाने के लिए कई सकारात्मक प्रयास किए हैं, जैसे:
- कानूनी ढांचा: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को मान्यता देते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए राज्य की जिम्मेदारी पर बल देते हैं।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): 1982 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम विशेष रूप से वंचित वर्गों के लिए सुलभ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: इस अधिनियम ने आत्महत्या के प्रयासों को अपराधमुक्त कर दिया, डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों को शामिल किया, उन्नत निर्देशों को पेश किया और विवादास्पद उपचारों को प्रतिबंधित किया। इसका उद्देश्य समाज में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कम करना है।
- हेल्पलाइन और आउटरीच कार्यक्रम: किरण हेल्पलाइन और साथी जैसी पहलें संकट प्रबंधन, मनोवैज्ञानिक सहायता और जागरूकता प्रदान कर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं।
- कानूनी ढांचा: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को मान्यता देते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए राज्य की जिम्मेदारी पर बल देते हैं।
- सुझाव एवं भविष्य की रणनीतियां:
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट 2022 समुदाय-आधारित देखभाल को बढ़ाने के महत्व को रेखांकित करती है, जिसमें लोगों को केंद्र में रखते हुए, स्वस्थीकरण पर ध्यान केंद्रित करने वाले और मानवाधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और हस्तक्षेपों को बढ़ाने के लिए तत्काल सक्रिय नीतियों की आवश्यकता है। ये प्रयास समग्र कल्याण, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है, के मौलिक मानवाधिकार की रक्षा करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से, ये लक्ष्य हैं:
- एसडीजी 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण: यह लक्ष्य सभी उम्र के लोगों के लिए स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और कल्याण सुनिश्चित करने का आह्वान करता है।
- एसडीजी 8: सभी के लिए सभ्य कार्य और आर्थिक विकास: यह लक्ष्य सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, सभ्य कार्य और सभी के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने, और गरीबी को मिटाने का प्रयास करता है।
- एसडीजी 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण: यह लक्ष्य सभी उम्र के लोगों के लिए स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और कल्याण सुनिश्चित करने का आह्वान करता है।
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट 2022 समुदाय-आधारित देखभाल को बढ़ाने के महत्व को रेखांकित करती है, जिसमें लोगों को केंद्र में रखते हुए, स्वस्थीकरण पर ध्यान केंद्रित करने वाले और मानवाधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और हस्तक्षेपों को बढ़ाने के लिए तत्काल सक्रिय नीतियों की आवश्यकता है। ये प्रयास समग्र कल्याण, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है, के मौलिक मानवाधिकार की रक्षा करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से, ये लक्ष्य हैं:
- सुझाव:
- समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार: सुलभ और किफायती देखभाल प्रदान करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को तैनात करना।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान: अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यस्थलों और समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में लाना, ताकि उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान की जा सके और तनाव कम किया जा सके।
- कार्यस्थल कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए लचीले कार्य घंटे, उचित वेतन और सुरक्षित कार्य परिस्थितियों को बढ़ावा देना।
- कमजोर समूहों पर विशेष ध्यान देना: महिलाओं, युवाओं और बुजुर्ग श्रमिकों सहित कमजोर समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करना।
- समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार: सुलभ और किफायती देखभाल प्रदान करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को तैनात करना।
निष्कर्ष:
मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक विशेष रूप से असुरक्षित हैं। इन सिफारिशों को लागू करने से भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और वितरण में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है, जो अंततः इस महत्वपूर्ण कार्यबल के लिए समग्र स्वास्थ्य और भलाई को बढ़ावा देगा। मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तियों का नहीं, बल्कि समाजों की समग्र भलाई के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत के विशाल अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों का मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करना, समावेशी और टिकाऊ विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक विशेष रूप से कमजोर हैं। इन सुझावों को लागू करने से भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार हो सकता है और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत – द हिंदू