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Daily-current-affairs / 20 Jan 2024

भारतीय विज्ञान प्रबंधन: चुनौतियां और आवश्यक प्रशासनिक सुधार

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संदर्भ:

राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप सतत आर्थिक विकास, अत्याधुनिक नवीन प्रौद्योगिकियों के साथ संरेखित वैज्ञानिक प्रगति पर निर्भर करती है। भारत वर्तमान में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) एवं रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के पुनर्गठन जैसी संस्थाओं के साथ, अपने विज्ञान प्रतिष्ठान में व्यापक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हालाँकि, भारतीय विज्ञान में दक्षता और लचीलेपन को अनुकूलित करने के लिए मौजूदा प्रशासनिक परिदृश्य की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

बजटीय बाधाएं और आवंटन:

संयुक्त राज्य अमेरिका (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.5%) और चीन (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.4%) की तुलना में अनुसंधान और विकास पर भारत का कम खर्च करना (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7%), भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को विश्व स्तरीय अनुसंधान करने में बाधा उत्पन्न करता है। सीमित बजट को देखते हुए, धन का प्रभावी आवंटन महत्वपूर्ण है। ताकि सरकार ऐसी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सके जो उच्च तकनीकी विकास सहित स्वास्थ्य, शिक्षा या गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। इसके लिए सरकार को अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।

वैज्ञानिक नेतृत्व की समस्या:

अंतरिक्ष कार्यक्रम का अपकर्षण/ह्रास:

·       भारत के विभिन्न प्रशंसित अंतरिक्ष कार्यक्रम के बावजूद, हालिया रुझान इसमें कई स्तरों पर गिरावट का संकेत देते हैं, फिर भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) वर्ष 2022 में लॉन्च संख्या में विश्व स्तर पर आठवें स्थान पर था।

·       इस समय विदेशी स्टार्टअप पुन: प्रयोज्य रॉकेट जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियों में भारत से आगे निकल गए हैं, जो भारत की रणनीतिक नवाचार और अनुकूलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

परमाणु ऊर्जा की बाधाएं:

·       वर्तमान में भारत ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में, विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों और थोरियम प्रौद्योगिकी में अपनी वास्तविक महत्वाकांक्षाओं को खोता जा रहा है। इसीलिए महत्वपूर्ण वैज्ञानिक क्षेत्रों में नेतृत्व बनाए रखने के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों का समय पर अनुकूलन महत्वपूर्ण है।

 प्रमुख प्रौद्योगिकियों में पिछड़ापन:

·       जीनोमिक्स, रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर काफी पीछे है।

·       साथ ही साथ वैज्ञानिक प्रयासों की दिशा और संगठन में असंगतता और अपर्याप्तता स्पष्ट देखी जा सकती है।

सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व

नौकरशाही बाधाएँ:

·       इस समय भारत का संपूर्ण वैज्ञानिक परिदृश्य मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा नियंत्रित है, जो सामान्य नौकरशाही मुद्दों जैसे कि वित्त पोषण अनुमोदन में देरी और विलंब से निर्णय लेने की प्रक्रिया को चिन्हित करता है।

·       दीर्घकालिक स्थिर वित्त पोषण के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव इस समस्या को और बढ़ा देता है, जिससे कभी-कभार विफलताओं की स्थिति में महत्वपूर्ण परियोजनाओं के प्रचालन में बाधा आती है।

वरिष्ठ वैज्ञानिकों की भूमिका:

·       भारत के विज्ञान प्रशासन की विशिष्ट विशेषता वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा निभाई जाने वाली बड़ी भूमिका है। जबकि यह धारणा प्रचलित है, कि अच्छे वैज्ञानिक अच्छे विज्ञान प्रशासक बनते हैं। इसके विपरीत संस्थानों का वास्तविक प्रदर्शन इस प्रतिमान को चुनौती देता है।

·       वरिष्ठ वैज्ञानिक शैक्षणिक गतिविधियों से लेकर संस्थागत खातों के सूक्ष्म प्रबंधन तक कई प्रकार की गतिविधियों में संलग्न हैं, जिससे प्रभावी प्रशासन की कमी होती है।

विज्ञान प्रशासन में चुनौतियाँ:

प्रशासनिक कौशल दक्षता:

·       राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालयों जैसे संगठनों का प्रशासन करने के लिए संसाधन आवंटन और समय प्रबंधन सहित एक विशिष्ट कौशल दक्षता की आवश्यकता होती है।

·       व्यक्तिगत जिम्मेदारी से प्रेरित वैज्ञानिकों में अक्सर प्रभावी प्रशासन के लिए आवश्यक संगठनात्मक कौशल का अभाव होता है।

 हितों का टकराव:

·       वर्तमान शासन प्रणाली शिक्षाविदों को एक ही संस्थान के भीतर प्रशासनिक नियंत्रण रखने की अनुमति देती है, जिससे हितों का टकराव और लालफीताशाही की संभावना बढ़ती है।

·       बदले की भावना और समझौता, गुणवत्ता नियंत्रण की संस्कृति आदि वैज्ञानिक प्रयासों की अखंडता के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।

अक्षमता:

·       यूँ तो अक्षमता की ऐतिहासिक जड़ें स्वतंत्रता के बाद की आर्थिक विपन्नता में देखी जा सकती हैं, जहां गरीबी ने कुछ संस्थानों में उच्च-स्तरीय उपकरणों को सीमित कर दिया।

·       संसाधनों के लिए इन बाह्य वैज्ञानिकों पर निर्भरता ने ऋण की संस्कृति को कायम रखा है, जो स्वदेशी वैज्ञानिक परिणामों की विफलता को उजागर किया और तकनीकी विकास अवरुद्ध हो गए।

अंतर्राष्ट्रीय मॉडल से सीख:

अमेरिकी प्रशासनिक मॉडल:

·       वैश्विक स्तर पर मजबूत विज्ञान प्रतिष्ठान इस समय प्रशासकों और वैज्ञानिकों के अलगाव को दर्शाते हैं।

·       अमेरिका में, प्रशासनिक भूमिकाओं के लिए चुने गए वैज्ञानिकों को विशेष रूप से प्रशासनिक कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जो अधिक कुशल और सुव्यवस्थित प्रणाली में योगदान करते हैं।

 विशिष्ट प्रशासनिक प्रशिक्षण की आवश्यकता:

·       विज्ञान संस्थानों के प्रशासन के लिए एक अद्वितीय कौशल दक्षता की आवश्यकता होती है, जो वैज्ञानिक विशेषज्ञता से अलग हो।

·       अमेरिकी मॉडल के समान एक मध्य-मार्गी दृष्टिकोण, जिसमें विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले विज्ञान प्रशासकों का एक अखिल भारतीय पूल शामिल हो, इस क्षेत्र में अपनी दक्षता बढ़ा सकता है।

व्यवस्थागत परिवर्तन का आह्वान:

भूमिकाओं का पृथक्करण:

·       अधिक प्रभावी विज्ञान प्रबंधन प्रणाली के लिए वैज्ञानिकों और प्रशासकों का पृथक्करण अनिवार्य है।

·       विज्ञान प्रशासकों के एक अखिल भारतीय पूल की स्थापना यह सुनिश्चित कर सकती है, कि समर्पित और प्रशिक्षित पेशेवर प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करें।

 ऐतिहासिक मुद्दों को संबोधित करना:

·       अक्षमता की ऐतिहासिक कारकों को स्वीकार करते हुए, बाह्य कारकों पर निर्भरता के चक्र को तोड़ने और अधिक योग्यता आधारित प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए।

·       अखिल भारतीय स्थानान्तरण की प्रणाली लागू करने से संस्थागत कब्ज़ा और प्रचलित गुटबाजी को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

·       वर्तमान में वैज्ञानिकों के हाथों में प्रशासनिक कार्यों का केंद्रीकरण भारत के विज्ञान प्रतिष्ठान के कुशल कामकाज में बाधक साबित हुआ है। अतः आर्थिक और सामरिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रशासनिक सुधार पर विचार करना जरूरी है। वैज्ञानिकों और प्रशासकों का पृथक्करण, एक समर्पित विज्ञान प्रशासन केंद्रीय सेवा की स्थापना के साथ, भारत में अधिक कुशल, जवाबदेह और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी वैज्ञानिक परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इन मुख्य चिंताओं को संबोधित किए बिना, देश का विज्ञान प्रतिष्ठान आर्थिक और रणनीतिक प्रगति को आगे बढ़ाने की अपनी क्षमता से पीछे रह सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    अनुसंधान और विकास पर भारत के कम खर्च को वैज्ञानिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण बाधा के रूप में पहचाना जाता है। देश के वैज्ञानिक परिणामों पर इस बजट बाधा के निहितार्थ पर चर्चा करें और प्रभावी निधि आवंटन के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करें। (10 अंक 150 शब्द)

2.    भारत के विज्ञान प्रशासन में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की भूमिका जांच का विषय रही है। वैज्ञानिकों द्वारा प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ संभालने से जुड़ी चुनौतियों का मूल्यांकन करें और देश में अधिक कुशल और जवाबदेह विज्ञान प्रबंधन प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुधारों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत- हिंदू

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