चर्चा में क्यों?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के कार्यों एवं भूमिका पर चिंता व्यक्त की है। 2018 से जांच की मंजूरी के लिए लगभग 150 अनुरोध आठ राज्य सरकारों के पास लंबित हैं जिन्होंने एजेंसी से सामान्य सहमति वापस ले ली । क्योकि सीबीआई की जांच केंद्र और संबंधित राज्य की सहमति के बिना शुरू नहीं हो सकती है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई)
सीबीआई की स्थापना की अनुशंसा, भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए, संथानम आयोग ने की थी। सीबीआई कोई वैधानिक संस्था नहीं है क्योंकि सीबीआई की स्थापना 1963 मे गृह मंत्रालय की एक संकल्प के द्वारा की गई है। सीबीआई को शक्ति दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम, 1946 से प्राप्त होती है। सीबीआई केंद्र सरकार की मुख्य अनुसंधान एजेंसी है। शासन प्रशासन में भ्रष्टाचार की रोकथाम तथा सत्य निष्ठा एवं ईमानदारी बनाए रखने के लिए सीबीआई की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह केंद्रीय सतर्कता आयोग तथा लोकपाल की भी सहायता करती है। सीबीआई का आदर्श वाक्य उद्यम, निष्पक्षता तथा ईमानदारी है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति कि अनुसंशा पर की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री के आलावा लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश होता है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 द्वारा सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल दो वर्ष तय किया गया। सीबीआई की वर्तमान में सात शाखाएँ हैं।
- भ्रष्टाचार निरोधक शाखा
- आर्थिक अपराध शाखा
- विशेष अपराध शाखा
- नीतिगत समन्वय शाखा
- प्रशासनिक शाखा
- अभियोग निदेशालय
- केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला
सीबीआई अकादमी गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसने 1996 में कार्य करना आरंभ किया था। इसके पूर्व सीबीआई प्रशिक्षण नई दिल्ली में संचालित होते थे।
सीबीआई का कार्य
- केंद्र सरकार के कर्मचारिओं के भ्रष्टाचार और अनियमितता आदि के मामलों की जांच करना।
- राजकोषीय और आर्थिक कानूनों जैसे आयात-निर्यात से जुड़े कानून, विदेशी मुद्रा विनिमय आदि के उल्लंघन के मामलो की जांच करना।
- पेशेवर अपराधियों के संगठित गिरोहों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों की जांच करना।
- भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना।
- राज्य सरकारों के अनुरोध पर किसी सार्वजनिक महत्व के मामले की जांच करना।
- ऐसे मामले जो भारत सरकार से विशेषकर जिनका उदाहरण नीचे दिया गया है, से संबंधित हो, की प्रवर्तन के साथ केंद्रीय नियमों को भंग करने से संबंधित मामले की जांच करना।
- आयात तथा निर्यात नियंत्रण आदेशों को भंग करना।
- विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम का गंभीर उल्लंघन।
- पासपोर्ट धोखाधड़ी
- केन्द्रीय सरकार के कार्यों से संबंधित कार्यालय गुप्त अधिनियम के तहत मामले।
- भारत का सुरक्षा अधिनियम या वे नियम जो केंद्रीय सरकार के विशेष रूप से संबंधितों के तहत कुछ एक विशेष श्रेणी के मामले।
सामान्य सहमति का अर्थ
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ 1946 द्वारा शासित होता है। सीबीआई इस अधिनियम की धारा 6 के तहत कार्य करती है। सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके अंतर्गत सीबीआई अपना कार्य विभिन्न राज्यों में करती है,परन्तु राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पास केवल केंद्रीय कर्मचारियों की जांच करने की शक्ति प्राप्त है। यदि राज्य सरकार के क्षेत्र में जांच करना हो तो राज्यों की आम सहमति अनिवार्य है। हाल में ही देश के कुछ राज्यों ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को दी गई आम सहमति को वापस ले लिया है। वे राज्य निम्नलिखित हैं महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल और मिज़ोरम।
सामान्य सहमति वापस लेने का सीबीआई पर प्रभाव
राज्यों ने सहमति वापस लेते समय आरोप लगाया कि केंद्र सरकार विपक्ष को गलत तरीके से निशाना बनाने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है। सामान्य सहमति की वापसी सीबीआई की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को निम्नलिखित रूप से प्रभावित करती है।
- सीबीआई राज्य सरकार के किसी अधिकारी या किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ राज्य की सहमति के बिना कोई नया मामला दर्ज नहीं कर सकेगी।
- सीबीआई अधिकारी जब भी राज्य में प्रवेश करेंगे, एक पुलिस अधिकारी की सभी शक्तियों को खो देंगे।
- सहमति वापस लेने से पहले दर्ज किए गए मामलों की जांच करने की शक्ति बरकरार रहेंगी।
- यह केद्र राज्य के संबंधों और सहकारी संघवाद की भावना का प्रभावित करेगी।
- यदि तलाशी की आवश्यकता होती है, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 166 का उपयोग किया जा सकता है, जो एक क्षेत्राधिकार के एक पुलिस अधिकारी को दूसरे के एक अधिकारी को उनकी ओर से तलाशी करने के लिए कहने की अनुमति देता है।
विनय मिश्रा बनाम सीबीआई वाद, 2021
विनय मिश्रा बनाम सीबीआई में, कलकत्ता हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भ्रष्टाचार के मामलों को पूरे देश में समान रूप से माना जाना चाहिए। केंद्र सरकार के एक कर्मचारी को “प्रतिष्ठित” नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका कार्यालय उस राज्य में स्थित था जिसने सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 मे संशोधन
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रख्यापित किया गया था। भारतीय संसद ने 2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (संशोधन) अधिनियम, 2018 पारित किया। इसके तहत रिश्वत को एक प्रत्यक्ष अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया। रिश्वत लेने व देने वाले दोनों ही व्यक्ति पर 3 से 7 साल की कैद और जुर्माना आरोपित किया गया।
आगे की राह
सीबीआई और राज्य पुलिस के बीच संबंधों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए, सीबीआई सुधार को राज्य की सहमति की समस्याओं से भी निपटना होगा। इसके लिए संविधान संशोधन के माध्यम से “संघीय अपराधों” को संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची में शामिल किया जाना चाहिए। सरकार को राज्य पुलिस और सीबीआई को संघीय अपराधों की जांच पर समवर्ती क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देनी चाहिए। जिसमें सीबीआई को पुलिस पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सीबीआई को संघीय संवैधानिक ढांचे के भीतर कुशलतापूर्वक और अपनी भूमिका निभाने में सक्षम होना चाहिए। अगर जल्द से जल्द सीबीआई में सुधार नहीं किया गया तो भविष्य में भी सवाल उठते रहेंगे। सीबीआई को सरकारी हस्तक्षेप के बिना मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र निकाय के अधीन रखा जाना चाहिए। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू कर सीबीआई को और सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- शासन