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Daily-current-affairs / 28 Nov 2024

भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न : स्वतंत्रता, समानता और न्याय में संतुलन -डेली न्यूज़ एनालिसिस

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सन्दर्भ:

26 नवंबर, 2024 को भारत ने अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ मनाई। यह दिन केवल संविधान के महत्व को याद करने का अवसर था, बल्कि संविधान को और अधिक प्रभावी, सशक्त और प्रगतिशील बनाने की दिशा में किए गए प्रयासों का भी विश्लेषण करने का भी हैं भारत का संविधान केवल देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को परिभाषित करता है, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और न्याय के बीच संतुलन स्थापित करने का भी मार्गदर्शक है। विभिन्न विचारधाराओं वाले नेताओं द्वारा निर्मित यह दस्तावेज़ सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए राज्य की भूमिका और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है।

संविधान की उदारवादी नींव:

संविधान निर्माता उदारवाद से प्रेरित थे, जोकि एक ऐसा दर्शन है जोकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और बिना किसी अनुचित हस्तक्षेप के अपनी क्षमता का उपयोग करने के अधिकार पर जोर देता है। हालांकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के समय मौजूद सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को पहचानते हुए, उन्होंने इन असमानताओं को दूर करने के लिए राज्य की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता भी महसूस की। इसके परिणामस्वरूप एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित हुआ, जिसमें राज्य को व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ असमानताओं को दूर करने का दायित्व सौंपा गया। आरक्षण  सहित सकारात्मक कार्रवाई  जैसी नीतियां वंचित समूहों को समान अवसर प्रदान करने के लिए पेश की गईं, जोकि केवल औपचारिक समानता के बजाय वास्तविक समानता को बढ़ावा देती हैं।

समानता का दृष्टिकोण:
भारतीय संविधान का उद्देश्य असमानताओं को कम करना और एक निष्पक्ष समाज की स्थापना करना है, जहाँ हर व्यक्ति को सफल होने के समान अवसर मिलें। यह दृष्टिकोण दार्शनिक जॉन रॉल्स द्वारा उल्लिखित समतावादी उदारवाद के सिद्धांतों के अनुरूप है, जिनमें शामिल हैं:

1.     सभी नागरिकों के लिए समान बुनियादी स्वतंत्रताएँ।

2.     जीवन में सफल होने के लिए सभी को समान अवसर मिलें।

3.     नीतियों का उद्देश्य लोगों और उनकी आवश्यकताओं के बीच अंतर को पहचानते हुए असमानताओं को कम करना है।

यह आदर्श संविधान में निम्नलिखित माध्यम से प्रतिबिंबित होते हैं:

  • मौलिक अधिकार (भाग III), जोकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार और भेदभाव से सुरक्षा करते हैं।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (भाग IV), जोकि असमानताओं को कम करने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य का मार्गदर्शन करते हैं।

उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 38(2) राज्य से आय और अवसर असमानताओं को कम करने का आग्रह करता है, जबकि अनुच्छेद 39(सी) कुछ हाथों में धन के संकेंद्रण को रोकने पर ध्यान केंद्रित करता है।

न्यायालयों ने समानता की व्याख्या कैसे की है?
न्यायपालिका ने ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से संविधान के समतावादी आदर्शों की व्याख्या और उन्हें सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है:

  • डीएस नाकारा बनाम भारत संघ (1982): इस मामले में सभी नागरिकों के लिए सभ्य जीवन स्तर और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में संविधान की भूमिका पर जोर दिया गया।
  • एयर इंडिया स्टैच्युटरी कॉरपोरेशन बनाम यूनाइटेड लेबर यूनियन (1996): इस निर्णय में समानता और न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था बनाने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • समथा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1997): इस मामले में संविधान के भीतर समाजवाद की व्याख्या आय असमानता को कम करने और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के एक उपकरण के रूप में की गई थी।

इन निर्णयों ने असमानता को कम करने के लिए संविधान की प्रतिबद्धता को मजबूत किया। हालाँकि, हाल के कुछ निर्णयों ने इन सिद्धांतों को नजरअंदाज कर दिया है, विशेषकर आर्थिक नीतियों के संबंध में जो अक्सर संविधान के समतावादी लक्ष्यों के अनुरूप नहीं होते हैं।

आर्थिक सुधार और बढ़ती असमानताएँ:

1990 के दशक में भारत के आर्थिक सुधारों ने बाजार संचालित विकास की ओर एक बदलाव को चिह्नित किया, जिससे असमानताओं को दूर करने में राज्य की भूमिका कम हो गई। इन सुधारों ने निजी निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, लेकिन इसके साथ ही आय असमानता में भी वृद्धि हुई। अर्थशास्त्री लुकास चांसल और थॉमस पिकेटी द्वारा किए गए शोध इस प्रवृत्ति को उजागर करते हैं। 1980 के दशक में ही, राज्य कल्याण नीतियों ने शीर्ष 1% की आय हिस्सेदारी को घटाकर केवल 6% कर दिया था। हालांकि, 2020 तक यह हिस्सा बढ़कर 22% हो गया, जोकि स्वतंत्रता-पूर्व के स्तर को भी पार कर गया। 2022-23 तक, शीर्ष 1% कमाने वालों के पास कुल आय का 22.6% और संपत्ति का 40.1% हिस्सा होने का अनुमान है, जो धन के अत्यधिक संकेंद्रण को दर्शाता है।

भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट" (2022)  इस बढ़ती असमानता को और अधिक स्पष्ट करती है, जिसमें दिखाया गया है कि:

  • शीर्ष 10% कमाने वाले व्यक्ति 25,000 या उससे अधिक मासिक आय प्राप्त करते हैं।
  • जबकि शेष 90% लोग 25,000 प्रति माह से कम कमाते हैं, जो यह दर्शाता है कि बड़ी जनसंख्या आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही है।

आर्थिक और सामाजिक असमानता के बीच संबंध:

भारत में आर्थिक असमानता सामाजिक पदानुक्रम, विशेष रूप से जाति-आधारित असमानताओं से बहुत करीब से जुड़ी हुई है। वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (2024) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि:

  • अरबपतियों की 90% संपत्ति उच्च जातियों के पास है।
  • अनुसूचित जाति (एससी) के पास अरबपतियों की संपत्ति का केवल 2.6% हिस्सा है, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) का इस कुलीन समूह में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के पास संपत्ति का हिस्सा 2014 में 20% से घटकर 2022 में 10% हो गया है, जबकि इसी अवधि में उच्च जाति का हिस्सा 80% से बढ़कर 90% हो गया है।

जाति और धन असमानता के बीच यह ओवरलैप दिखाता है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक नुकसान अक्सर एक दूसरे को मजबूत करते हैं। ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने भी असमानता की सीमा को उजागर करते हुए कहा है कि न्यूनतम वेतन पाने वाले कर्मचारी को एक शीर्ष कॉर्पोरेट कार्यकारी के एक साल के बराबर कमाने के लिए 941 साल की आवश्यकता होगी।

संवैधानिक आदर्शों के लिए चुनौतियाँ:
भारत में बढ़ती असमानताएँ संविधान के न्याय और समानता के आदर्शों के लिए एक सीधी चुनौती पेश करती हैं। अनुच्छेद 38 और 39, जो असमानताओं को कम करने और धन के संकेंद्रण को रोकने पर जोर देते हैं, पूरी तरह से लागू नहीं किए गए हैं। इसके बजाय, आर्थिक नीतियों ने बाजार विकास और निजीकरण को प्राथमिकता दी है, जो अक्सर सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने की कीमत पर होती हैं। यह बढ़ता हुआ अंतर केवल संविधान के लक्ष्यों को, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी खतरे में डालता है। जैसा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने चेतावनी दी थी, यदि सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ बनी रहती हैं, तो राजनीतिक लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता।

संविधान के आदर्शों की पुनः पुष्टि और समावेशी विकास की आवश्यकता:

भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ, इसकी उपलब्धियों और चुनौतियों पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है। संविधान के आदर्शों को सही मायनों में सम्मानित करने के लिए भारत को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

1.     असमानताओं को कम करने के उद्देश्य से कल्याणकारी नीतियों को मजबूत करना।

2.     अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए संसाधनों के निष्पक्ष वितरण को बढ़ावा देना।

3.     यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक नीतियाँ संविधान के समतावादी आदर्शों के अनुरूप हों।

हालाँकि कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है, भारत में बढ़ती असमानता संविधान के न्यायपूर्ण समाज बनाने के दृष्टिकोण को खतरे में डालती है। संविधान दिवस देश की नीतियों और प्रथाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखें। इस प्रकार, भारत अपने संस्थापक दस्तावेज़ के पूर्ण दृष्टिकोण को साकार करने के और करीब पहुँच सकता है और एक ऐसा समाज बना सकता है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को फलने-फूलने का समान अवसर मिले।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

भारत में आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय के बीच संबंध का विश्लेषण करें, विशेषकर जाति-आधारित असमानताओं के संदर्भ में। मौजूदा आर्थिक नीतियाँ किस प्रकार से जाति विभाजन को बढ़ावा देती हैं और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य को इन व्यवस्थागत मुद्दों को कैसे संबोधित करना चाहिए?