हाल ही में इजराइल और लेबनान ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थित एक युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य हिजबुल्लाह के साथ शत्रुता समाप्त कर, इजराइल-लेबनान सीमा पर स्थायित्व और सुरक्षा बहाल करना है। यह निर्णय विशेष रूप से सितंबर 2024 में बढ़ते संघर्ष और 13 महीने तक चले तनावपूर्ण माहौल के बाद लिया गया।
· यह युद्ध विराम 2006 में पारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 के ढांचे पर आधारित है, जोकि उस समय इजराइल-हिजबुल्लाह युद्ध को समाप्त करने के लिए लागू किया गया था। इस समझौते के मुख्य तत्वों और इसके ऐतिहासिक संदर्भ को समझना मध्य पूर्व की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा परिदृश्य के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक संदर्भ: 2006 का इज़राइल-हिज़्बुल्लाह संघर्ष और UNSC संकल्प 1701
इजरायल और हिज़्बुल्लाह के बीच संबंध दशकों से संघर्ष और तनाव से ग्रस्त रहे हैं। 2006 का युद्ध उस समय शुरू हुआ जब हिज़्बुल्लाह ने इजरायली सैनिकों पर हमला किया, जिसमें तीन सैनिक मारे गए और दो का अपहरण कर लिया गया। यह युद्ध एक महीने से अधिक चला, जिसके परिणामस्वरूप 1,000 से अधिक लेबनानी नागरिकों और 170 इजरायली नागरिकों की मौत हुई। युद्ध ने लेबनान में व्यापक विनाश और विस्थापन को जन्म दिया।
इस स्थिति के समाधान हेतु 11 अगस्त 2006 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1701 पारित किया, जिसका उद्देश्य इजरायल और हिज़्बुल्लाह के बीच शत्रुता को समाप्त करना था। प्रस्ताव के प्रमुख प्रावधान थे:
· लेबनान में सभी सशस्त्र समूहों का निरस्त्रीकरण, लेबनान की राज्य सैन्य बलों को छोड़कर।
· सरकार की सहमति के बिना किसी भी विदेशी सेना की उपस्थिति पर प्रतिबंध।
· इजरायल और लेबनान के बीच एक बफर ज़ोन का निर्माण, जिसकी निगरानी संयुक्त राष्ट्र बल (UNIFIL) और लेबनानी सेना द्वारा की जाएगी।
· युद्ध विराम के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए UNIFIL (लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल) की तैनाती।
हालांकि, प्रस्ताव ने सक्रिय शत्रुता को रोक दिया, लेकिन विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह के निरस्त्रीकरण जैसे प्रावधानों का पूर्ण कार्यान्वयन नहीं हो सका। 2024 के युद्धविराम समझौते में इन प्रावधानों को फिर से सुदृढ़ करने और शांति प्रक्रिया को प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है।
2024 के युद्ध विराम प्रस्ताव का विवरण :
इज़राइल और हिज़्बुल्लाह के बीच 2024 का युद्धविराम समझौता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1701 के आधार पर किया गया है, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण संशोधन जोड़े गए हैं। इसके प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
- शत्रुता की समाप्ति:
युद्धविराम प्रारंभिक रूप से 60 दिनों के लिए निर्धारित है। हिज़्बुल्लाह के लड़ाकों को इज़राइल-लेबनान सीमा से 40 किलोमीटर पीछे हटने की आवश्यकता होगी। अक्टूबर 2023 से दक्षिणी लेबनान पर कब्ज़ा कर रहे इज़राइली बलों को भी पीछे हटने की उम्मीद है। - लेबनान और हिज़्बुल्लाह की भूमिका:
लिटानी नदी के दक्षिण में हिज़्बुल्लाह की गतिविधियों की निगरानी लेबनानी सेना करेगी। इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UNIFIL) और एक बहुराष्ट्रीय समिति स्थिति की निगरानी में सहयोग करेंगे। - इज़राइली शर्तें:
यदि हिज़्बुल्लाह युद्धविराम की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो इज़राइल को सैन्य अभियान पुनः शुरू करने का अधिकार होगा। - अमेरिका और फ्रांस की भूमिका: प्रस्ताव में युद्ध विराम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए त्रिपक्षीय तंत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस की भागीदारी शामिल है। इस तंत्र में लेबनान, इज़राइल, यूनिफ़िल और दो पश्चिमी शक्तियों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
यह समझौता 2006 के युद्धविराम से अलग है, क्योंकि इसमें अधिक अंतरराष्ट्रीय निगरानी और समन्वय का प्रावधान है। हालांकि, हिज़्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण अब भी विवाद का विषय बना हुआ है, क्योंकि इस प्रस्ताव में दक्षिणी लेबनान में पूर्ण निरस्त्रीकरण का आह्वान नहीं किया गया है।
इज़राइल द्वारा युद्धविराम के लिए सहमति:
इज़राइल का 2024 के युद्धविराम पर सहमत होना कई सैन्य और राजनीतिक कारकों से प्रेरित है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस निर्णय के तीन प्रमुख कारणों को रेखांकित किया:
· ईरान पर ध्यान केंद्रित करना:
हिज़्बुल्लाह को ईरानी प्रॉक्सी मानते हुए, इज़राइल लेबनान में संघर्ष को समाप्त कर सीरिया, इराक और यमन में ईरानी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अपने सैन्य प्रयासों को पुनः केंद्रित करना चाहता है।
· सैन्य संसाधनों की पुनः पूर्ति:
युद्धविराम इज़राइली रक्षा बलों (IDF) को लंबे और महंगे सैन्य अभियान के बाद अपने संसाधनों को पुनः संगठित और मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
· मोर्चों का पृथक्करण:
हिज़्बुल्लाह के साथ संघर्ष समाप्त कर, इज़राइल गाजा में हमास पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे कई मोर्चों पर लड़ाई का जोखिम कम होता है
इसके अतिरिक्त, आंतरिक राजनीतिक कारकों ने भी इस निर्णय को प्रभावित किया। पूर्व रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने लेबनान और गाजा दोनों में युद्धविराम की वकालत की थी। गैलेंट और IDF के एक गुट का मानना था कि लेबनान में सैन्य अभियान जारी रखना रणनीतिक रूप से अस्थिर होगा। उनकी चिंताओं और सैन्य दृष्टिकोण ने नेतन्याहू के फैसले में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इज़राइल-लेबनान सीमा के लिए निहितार्थ :
इज़राइल-लेबनान युद्धविराम का सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ब्लू लाइन, जो दोनों देशों को अलग करती है, लंबे समय से इज़राइल और हिज़्बुल्लाह के बीच तनाव का केंद्र रही है। हालाँकि युद्धविराम लागू हो गया है, स्थिति अब भी नाजुक बनी हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- सैन्य संतुलन: हालाँकि हिज़्बुल्लाह कमज़ोर हो गया है, फिर भी उसके पास इज़रायल पर हमला करने की क्षमता है, जिसका अर्थ है कि भविष्य में संघर्ष की संभावना अधिक बनी हुई है।
- लेबनान की सेना की भूमिका: अब लिटानी नदी और ब्लू लाइन के बीच लेबनान की सेना एकमात्र मान्यता प्राप्त सशस्त्र बल है। हिज़्बुल्लाह को पुनर्गठित होने से रोकना और क्षेत्र में शांति बनाए रखना सेना की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होगी।
- हिज़्बुल्लाह का सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव: लेबनान में हिज़्बुल्लाह का महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव है। समूह के पास लेबनानी संसद में सीटें हैं और सरकार में एक मजबूत उपस्थिति है। युद्ध विराम के बाद, हिजबुल्लाह को राजनीतिक समर्थन फिर से मिलने और अपने बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण करने की संभावना है।
मध्य पूर्व के लिए निहितार्थ :
मध्य पूर्वी संदर्भ इजरायल-लेबनान युद्ध विराम के निहितार्थों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रमुख कारकों में शामिल हैं:
· ईरान का प्रभाव: ईरान हिज़्बुल्लाह का प्रमुख प्रायोजक है और इसे इज़राइल के खिलाफ एक प्रॉक्सी बल के रूप में उपयोग करता है। युद्धविराम को ईरान के लिए कूटनीतिक जीत माना जा सकता है, क्योंकि यह उसके प्रॉक्सी पर तत्काल सैन्य खतरे को कम करता है और उसे अन्य रणनीतिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर देता है।
· इज़राइल की रणनीतिक प्राथमिकताएं: युद्धविराम के माध्यम से, इज़राइल अब गाजा में हमास और सीरिया-इराक में ईरानी सैन्य गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। उसकी रणनीति मुख्य रूप से ईरानी प्रभाव का मुकाबला करने पर आधारित रहेगी।
भारत की भूमिका और स्थिति :
भारत ने इजरायल-लेबनान युद्ध विराम के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक भूमिका निभाई है। भारत सरकार ने युद्ध विराम का स्वागत किया, उम्मीद जताई कि इससे व्यापक क्षेत्र में शांति और स्थिरता आएगी।
निष्कर्ष :
इज़राइल और हिज़्बुल्लाह के बीच युद्धविराम इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। हालाँकि, तत्काल सैन्य लक्ष्यों की पूर्ति के बावजूद, इज़राइल-लेबनान सीमा की दीर्घकालिक स्थिरता अभी भी अनिश्चित बनी हुई है। UNSC संकल्प 1701 और 2024 के संशोधित युद्धविराम प्रस्ताव एक केस स्टडी प्रस्तुत करते हैं कि किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, सैन्य रणनीति और क्षेत्रीय राजनीति संघर्ष को रोकने और स्थिरता सुनिश्चित करने में परस्पर जुड़ी हुई हैं। अमेरिका और फ्रांस के अलावा, भारत के कूटनीतिक प्रयासों ने भी इस अस्थायी शांति को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह बहुपक्षीय संवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों के समाधान में समावेशी जुड़ाव के महत्व को रेखांकित करता है।