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Daily-current-affairs / 08 May 2024

कार्बन फार्मिंग की क्षमता - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -

कार्बन फार्मिंग का लक्ष्य वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करके जलवायु परिवर्तन को रोकना है। 

कार्बन खेती क्या है?

कार्बन फार्मिंग खेती की उन तकनीकों का मिश्रण है जो मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के साथ फसल उत्पादन को बढ़ाती हैं और पर्यावरण को स्वस्थ बनाती हैं।  यह तकनीक वातावरण से कार्बन डाई आक्साइड सोखने और भूमि में जमा करने की क्षमता को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करती है। कार्बन खेती की तकनीक को अपनाना सरल हैं और इनसे कई फायदे होते हैं, जैसे मिट्टी का क्षरण रोकना, जल की कमी दूर करना और जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से लड़ना आदि।

कार्बन फार्मिंग की तकनीकें और उनके लाभ

कार्बन फार्मिंग जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करती है। कार्बन खेती से संबंधित कुछ तकनीकें निम्नलिखित हैं:

  • घुमंतू चराई (Rotational Grazing): इसमें जानवरों को अलग-अलग चरागाहों में चराया जाता है, जिससे घास वापस उग आती है, मिट्टी स्वस्थ होती है और कार्बन का भंडारण बढ़ता है। इससे मिट्टी की सेहत अच्छी होने के साथ पेड़-पौधों की विविधता बढ़ती है और पशुओं से निकलने वाली हानिकारक गैसें कम होती हैं।
  • कृषि वानिकी (Agroforestry): कृषि वानिकी भूमि उपयोग की वह प्रणाली है, जिसमें सुनियोजित ढंग से वृक्षों की खेती की जाती है | इसके अंतर्गत काष्ठ वृक्ष (timber) या झाड़ीदार पौधों / बांस के साथ खाद्यान्न फसलों का उत्पादन, चारा उत्पादन के साथ पशुपालन आदि किया जाता है। इससे ना सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ती है, बल्कि उगाए गए पेड़ कार्बन को सोख लेते हैं, मिट्टी उपजाऊ बनती है और तीव्र वायु प्रवाह रोकने में भी मदद मिलती है।
  • संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture): इसमें कम से कम जुताई, फसल चक्र, मिट्टी को ढकने वाली फसलें लगाना और फसल अवशेषों का प्रबंधन शामिल है। इससे मिट्टी की संरचना मजबूत होती है, पानी रुकता है और मिट्टी का कटाव कम होता है, जो कार्बन जमा करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करता है।
  • पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Nutrient Management): इसके तहत जैविक खाद और कम्पोस्ट का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जाती है और रासायनिक खादों का न्यूनतम इस्तेमाल किया जाता है। इससे पोषक तत्वों का सही चक्र चलता रहता है, मिट्टी की सेहत अच्छी होती है और फसल की पैदावार बढ़ती है, साथ ही भूमि में कार्बन का भंडारण भी बढ़ता है।
  • कृषि पारिस्थिकी (Agro-ecology): कृषि-पारिस्थितिक दृष्टिकोण में फसल विविधीकरण और अंतः फसल शस्यन, पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को बढ़ाते हैं और कीटनाशकों एवं कृत्रिम उर्वरकों जैसे बाहरी निवेशों पर निर्भरता को कम करते हैं। प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की नकल करके, ये प्रथाएं मिट्टी की जैव विविधता में सुधार करती हैं, कार्बन पृथक्करण और कृषि स्थिरता को बढ़ाती हैं।
  • पशुधन प्रबंधन (Livestock Management): घुमंतू चराई, पशुओं के चारे की गुणवत्ता में सुधार और पशुओं के मलमूत्र का सही प्रबंधन करके मीथेन गैस का उत्सर्जन कम किया जा सकता है, और चरागाहों में कार्बन का भंडारण बढ़ाया जा सकता है। चराने के तरीकों को बेहतर बनाकर और पोषक तत्वों के चक्र को दुरुस्त रखने से कार्बन जमा होता है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।

कार्बन खेती को अपनाने में चुनौतियाँ

  • भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ:  कार्बन खेती कितनी कारगर होगी, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जैसेभौगोलिक स्थिति, मिट्टी की गुणवत्ता, फसल प्रकार, पानी की उपलब्धता और जैवविविधता आदि  लंबा खेती का मौसम, अच्छी बारिश और उपजाऊ ज़मीन कार्बन खेती के लिए सबसे अनुकूल हैं। जबकि, गर्म और शुष्क जगहों पर जहां जल की कमी होती है, वहां पेड़-पौधे उगाना और भूमि में कार्बन जमा करना काफी मुश्किल होता है।
  • वित्त कमी: कार्बन फार्मिंग प्रथाओं को अपनाने के लिए किसानों को कार्यान्वयन की लागत को दूर करने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है। भारत जैसे विकासशील देशों में, छोटे किसानों के पास अक्सर स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं में निवेश करने के लिए संसाधनों की कमी होती है और उन्हें सब्सिडी, अनुदान या ऋण सुविधाओं के माध्यम से समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • सरकारी नीतियाँ: कार्बन फार्मिंग की सफलता उन सहायक नीतियों पर निर्भर करती है जो स्थायी कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और उन्हें सुविधाजनक बनाती हैं। हालांकि, अपर्याप्त नीतिगत समर्थन, असंगत विनियम और नौकरशाही बाधाएं कार्बन कृषि की पहलों के व्यापक कार्यान्वयन में बाधा डाल सकती हैं।
  • तकनीक का अभाव: सटीक कृषि, रिमोट सेंसिंग और कार्बन निगरानी जैसी उन्नत तकनीकों और प्रथाओं को अपनाने से कार्बन खेती की प्रभावशीलता में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और किसानों के बीच कम डिजिटल साक्षरता कार्बन फ़ार्मिंग अपनाने और इसके कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।
  • समुदाय की सहभागिता: कार्बन फार्मिंग पहलों के सफल कार्यान्वयन के लिए प्रभावी सामुदायिक जुड़ाव और हितधारकों की भागीदारी आवश्यक है। हालांकि, सीमित जागरूकता, परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध और सांस्कृतिक बाधाएं नई कृषि प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बाधा डालती हैं।

कार्बन खेती में वैश्विक पहल (Global Initiatives in Carbon Farming)

  • कार्बन व्यापार बाजार (Carbon Trading Markets): हाल के वर्षों में, कृषि क्षेत्र में कार्बन व्यापार ने वैश्विक स्तर पर महत्व प्राप्त किया है, स्वैच्छिक कार्बन बाजार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा जैसे देशों में उभर रहे हैं। शिकागो जलवायु विनिमय और ऑस्ट्रेलिया में कार्बन खेती पहल जैसी पहलें वित्तीय तंत्र और बाजार-आधारित प्रोत्साहनों के माध्यम से कृषि में कार्बन शमन गतिविधियों को प्रोत्साहित करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और परियोजनाएं (International Partnerships and Projects): विश्व बैंक जैसे संगठनों द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और परियोजनाओं का लक्ष्य विकासशील देशों में कार्बन खेती और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना है। केन्या में कृषि कार्बन परियोजना जैसी पहल आर्थिक रूप से विकासशील क्षेत्रों में जलवायु शमन, अनुकूलन और खाद्य सुरक्षा चुनौतियों को दूर करने के लिए कार्बन खेती की क्षमता को उजागर करती है।
  • COP21 की '4 प्रति 1000' पहल (COP21's '4 per 1000' Initiative): पेरिस में COP21 जलवायु वार्ता के दौरान शुरू की गई '4 प्रति 1000' पहल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मिट्टी के कार्बन पृथक्करण की भूमिका पर जोर देती है। मिट्टी के ऑर्गैनिक कार्बन को सालाना 0.4% बढ़ाने वाले कार्यों को बढ़ावा देकर, यह पहल मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने, कृषि उत्पादकता में सुधार करने और विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में योगदान करने का लक्ष्य रखती है।
  • अनुसंधान और नवाचार (Research and Innovation): विश्व भर के अनुसंधान संस्थान, विश्वविद्यालय और कृषि संगठन कार्बन फ़ार्मिंग प्रथाओं को विकसित और बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और नवाचार परियोजनाएं चला रहे हैं। ये पहल पारस्परिक दृष्टिकोण और सहयोग के माध्यम से मिट्टी के कार्बन पृथक्करण में सुधार, पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन को बढ़ाने और कृषि की स्थिरता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

भारत में कार्बन खेती के अवसर:

  • जलवायु अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए कार्बन खेती मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाकर, जल प्रबंधन में सुधार कर खेतों को मौसम की अनिश्चितता और अतिवृष्टि/सूखे से बचाने में मदद करती है।

·        आर्थिक लाभ: भारत में जमीनी स्तर की पहल और कृषि अनुसंधान कार्बन पृथक्करण के लिए जैविक खेती और कृषि-पारिस्थितिक प्रथाओं की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करते हैं। इन प्रथाओं में कार्बन ऋण प्रणालियों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान के माध्यम से किसानों के लिए अतिरिक्त आय सहित महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ उत्पन्न करने की क्षमता है।

  • क्षेत्रीय उपयुक्तता: गंगा के मैदानी इलाके और दक्कन के पठार जैसे कृषि भूमि वाले क्षेत्र कार्बन खेती के लिए उपयुक्त हैं। हालांकि, पहाड़ी और तटीय इलाकों में मिट्टी का कटाव, जल की कमी और खारेपन जैसी चुनौतियां हो सकती हैं।
  • सरकारी नीतियां और प्रोत्साहन: टिकाऊ कृषि और कार्बन खेती को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियां कार्यान्वयन में मदद करती हैं। सब्सिडी, अनुदान और तकनीकी सहायता जैसी प्रोत्साहन राशि वित्तीय बाधाओं को दूर करने और किसानों को कार्बन खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
  • कार्बन क्रेडिट प्रणाली: कार्बन क्रेडिट प्रणाली और बाज़ार आधारित व्यवस्थाएं किसानों को मिट्टी और पेड़-पौधों में कार्बन जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कार्बन खेती के पर्यावरणीय लाभों को आर्थिक रूप से मूल्यवान बनाकर ये प्रणालियां किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया मुहैया कराती हैं और राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देती हैं।

निष्कर्ष

कार्बन खेती जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ कृषि की दोहरी चुनौतियों से निपटने का एक शानदार तरीका है। खेती की तकनीकों को प्राकृतिक सुधार लाने वाली विधियों के साथ मिलाकर, कार्बन खेती मिट्टी की सेहत को बेहतर बना सकती है, कृषि उत्पादन बढ़ा सकती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकती है। हालांकि, कार्बन खेती की पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए भौगोलिक, आर्थिक, नीतिगत, तकनीकी और सामाजिक कारकों से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों का समाधान करना होगा। वैश्विक पहल, शोध प्रयास और नीतिगत समर्थन कार्बन खेती को बढ़ावा देने और किसानों, समुदायों एवं पर्यावरण के लिए इसके लाभों को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. "कार्बन खेती की अवधारणा और जलवायु परिवर्तन से निपटने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में इसके महत्व पर चर्चा करें। कार्बन खेती की दो प्रमुख तकनीकों और उनके लाभों को उदाहरणों के साथ समझाइए। (10 Marks, 150 words)
  2. विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में कार्बन खेती को लागू करने में चुनौतियों का मूल्यांकन करें। इन चुनौतियों पर काबू पाने और कार्बन खेती प्रथाओं को अपनाने को बढ़ावा देने में नीतिगत समर्थन, तकनीकी नवाचारों और सामुदायिक भागीदारी की भूमिका पर चर्चा करें। (15 Marks, 250 words)

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