की-वर्ड्स :- बजट 2022-23, टेली-स्वास्थ्य कार्यक्रम, सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र।
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में प्रस्तुत बजट 2022-23 में स्वास्थ्य के लिए व्यापक दृष्टिकोण और रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसकी देश को तत्काल आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए टेली हेल्थ कार्यक्रम एवं आंगनबाडी केन्द्रों की घोषणा स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सराहनीय पहल हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी प्रयासों का संपादकीय विश्लेषण :-
1. कोविड के कारण कमजोर वित्तीय क्षमता :-
- कोविड 19 महामारी के होते हुए या शायद महामारी के प्रभाव के कारण ही, स्वास्थ्य खर्च के लिए संसाधन सीमित हैं।
- कोविड-19 टीकाकरण के लिए देश ने एक बड़ा अनियोजित और अपरिहार्य खर्च किया है।
- प्रमुख प्राथमिकताओं जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा और सब्सिडी आदि को तत्काल प्रभाव से संबोधित नहीं किया जा सकता।
- गैर-संचारी रोगों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के चलते ही शायद तंबाकू पर करों में वृद्धि की गई है। एक अर्थव्यवस्था में राजस्व बढ़ाने के सीमित विकल्प होते हैं। ऐसे में वित्त मंत्रालय ने तम्बाकू पर करों में वृद्धि का निर्णय लिया है।
2. सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद :-
- केंद्र सरकार कुल सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय का एक तिहाई और समग्र स्वास्थ्य व्यय का लगभग 8 प्रतिशत वहन करती है।
- राज्य सामूहिक रूप से स्वास्थ्य पर केंद्र सरकार की तुलना में दोगुना खर्च करते हैं, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय का है।
- केंद्रीय बजट की तुलना में, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों द्वारा स्वास्थ्य के लिए आवंटित वित्तीय सहयता का औसत भारतीय के स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
3. बजटीय घाटा :-
- दीर्घकालिक योजना के अभाव में, स्वास्थ्य के लिए एक साल के बजटीय आवंटन के बहुत प्रभावी होने की संभावना नहीं है।
- बहुप्रतीक्षित स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र की स्थापना अभी नहीं हो पायी है।
- स्वास्थ्य बीमा सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का विकल्प नहीं हो सकता है।
स्वास्थ्य में निवेश की आवश्यकता क्यों?
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और पोषण पर व्यय कर दक्ष श्रमबल का निर्माण किया जा सकता है।
- इन क्षेत्रों में शुरुआती निवेश से संज्ञानात्मक क्षमता में सुधार होता है जो कौशल विकास और तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने में सहायक होता है।
- स्वास्थ्य में निवेश बड़ी आबादी को वित्तीय जोखिम सुरक्षा प्रदान करता है। कोविड महामारी के चलते आज भारत को इसकी सख्त आवश्यकता है। क्योंकि कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य व्यय बढ़ जाने से बहुत से परिवार गरीबी रेखा के नीचे चले गये हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्रों में चुनौतियां: जनसंख्या, श्रम
- जनसंख्या विस्फोट :- भारत में स्वास्थ्य के लिए बड़े योजना को लागू करने के सीमित अवसर हैं। क्योंकि भारत में प्रति वर्ष 26 मिलियन बच्चे जन्म लेते हैंI जो किसी भी देश में नए नागरिकों की सबसे बड़ी संख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- कम निवेश :- शुरुआती दिनों में बच्चों पर अच्छा निवेश न करके, हम उनके भविष्य की संभावनाओं को नष्ट कर देते हैं जहां वे वैश्विक स्तर पर नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैंI
- श्रम की गुणवत्ता संबंधी मुद्दे :- भारत में काम करने वाले व्यवसायी भलीभांति जानते हैं कि देश में रोजगार के अवसर तो हैं, किन्तु कौशलयुक्त श्रमिकों का आभाव है।
- स्वास्थ्य के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 से 3% का खर्च करने का लक्ष्य अतार्किक और अपर्याप्त है, स्वास्थ्य क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियों को हासिल करने के लिए निरंतर 20-वर्षीय योजना के अंतर्गत निम्न बिन्दुओ पर विशेष रूप से कार्य करना होगा :-
- शिशु मृत्यु दर :– उच्च शिशु मृत्यु दर के कारण देश के कुछ सबसे बड़े राज्यों की तुलना उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के अविकसित देशों से की जाती है।
- पोषण :- भारत में अन्य देशों की तुलना में उच्च कुपोषण दर है जो उच्च स्टंटिंग और उच्च एनीमिया दर के रूप में प्रकट होती है।
- बाल टीकाकरण कवरेज :- इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है।
- संक्रामक रोगों में कमी :- (भारत में टीबी, मलेरिया और एंटीमिक्रोबिअल रेजिस्टेंस की उच्च दर है।)
- गैर-संचारी रोगों में कमी :- (मधुमेह और मोटापे के मामले अधिक है और उनमे तीव्र गति से वृद्धि हो रही है।)
आगे का राह : मानव पूंजी, सीख, समन्वित प्रयास
- वैश्विक महाशक्ति बनने में मानव शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत का उद्देश्य आर्थिक विकास के मामले में एशिया के अग्रणी देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करना है।
- चीन से सीख :- चीन ने महत्वाकांक्षी योजना के तहत 50 साल पहले स्वास्थ्य और शिक्षा में समान निवेश कर, करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि हासिल की है, जिसका लाभ अब चीन विनिर्माण आधारित अर्थव्यवस्था बनकर उठा रहा है।
- भारत का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल है। लेकिन इसमें व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। .
- भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल कर सकता है। इसके लिए संसद में वार्षिक रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा पर विशेष सत्र का आयोजन वार्षिक बजट के समय किया जान चाहिए।
- मंत्रालयों द्वारा समन्वित प्रयास :- देश का स्वास्थ्य सिर्फ वित्त मंत्री का उत्तरदायित्व नहीं हो सकता। वार्षिक स्वास्थ्य योजना को वित्त, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग के मंत्रियों द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
- स्वास्थ्य बजट को स्वास्थ्य में निवेश संबंधी अन्य कार्यों से अलग करके भारत सरकार अपने प्रचुर और मूल्यवान पूंजी अर्थात अपने नागरिक संसाधन की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष प्रयास कर सकती है।
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2
- सामाजिक क्षेत्र, स्वास्थ्य
मुख्य परीक्षा प्रश्न:
- शिक्षा में निवेश से व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं, फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में भारत के प्रयास बहुत प्रभावशाली नहीं हैं। क्या आप सहमत हैं?