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Daily-current-affairs / 07 Apr 2022

क्या भारत अपनी निर्यात वृद्धि को बनाए रख सकता है? - समसामयिकी लेख

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की-वर्डस :- माल निर्यात, 400 बिलियन डॉलर से अधिक निर्यात, आयात-से-निर्यात अनुपात, ईएसजी नियम, निर्यात में बुल रन, निर्यात में रुझान

चर्चा में क्यों?

भारतीय निर्यात में 400 अरब डॉलर के आंकड़े को पार करने को, अर्थव्यवस्था में उछाल आने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन यह मील का पत्थर कितना महत्वपूर्ण है? इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए

मुख्य बिंदु :-

भारतीय निर्यात का 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार हो गया है, यह उसी प्रकार है जैसे 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का आंकड़ा, अगले 4-5 वर्षों में नोमिनल जीडीपी के संदर्भ में अर्थव्यवस्था 375 लाख करोड़ रुपये की संख्या को पार कर जाएगी।

इसलिए, इस लक्ष्य को प्राप्त करना मील का पत्थर नहीं है क्योंकि अतीत में कई बार निर्यात वृद्धि एक उच्च स्तर को छूने के बाद नकारात्मक हो हुई है।

पिछले 10 वर्षों में से पांच वर्ष में निर्यात वृद्धि नकारात्मक रही है, जो उच्च स्तर की अस्थिरता को दर्शाती है।

यह जीडीपी विकास के विपरीत है जो उत्तरोत्तर बढ़ता है और शायद ही कभी नकारात्मक क्षेत्र में गिरता है ( इस सन्दर्भ में कोरोना महामारी का वर्ष एक अपवाद है)।

इस अंतर का कारण यह है कि निर्यात मुख्य रूप से मांग आधारित होता है और इसलिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई भी मंदी उनके विकास को प्रभावित कर देती है।

निर्यात में वृद्धि :-

निर्यात वृद्धि की दिलचस्प है क्योंकि इनके रुझान विभिन्न अवधियों में भिन्न होते हैं।

1990-91 में, जब आर्थिक सुधारों को लागू किया गया था, निर्यात लगभग $ 18 बिलियन था।

  • वित्तीय वर्ष 92 से सदी के अंत तक सीएजीआर 8.2 प्रतिशत था, जबकि निरपेक्ष रूप से निर्यात लगभग दोगुना हो गया था।
  • हालांकि, अगले छह वर्षों में, सीएजीआर 18.7 प्रतिशत रहा क्योंकि निर्यात ने 100 बिलियन डॉलर के आंकड़े के स्तर पर पहुच गया था।
  • 2011 को समाप्त होने वाले (2006-2011) वित्तीय वर्ष 2011 तक, निर्यात 19.5 प्रतिशत के सीएजीआर के साथ 251 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।
  • वित्त वर्ष 2011 में, निर्यात में 178 अरब डॉलर से 251 अरब डॉलर तक 40 प्रतिशत की उच्चतम वृद्धि देखी गई थी।
  • निर्यात में बुल रन (तेजी की दौड़), वित्त वर्ष 2012 में 21.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ जारी रहा, जो 300 अरब डॉलर के स्तर को छूने तक रहा।

हालांकि, 300 बिलियन डॉलर से 400 बिलियन डॉलर तक के निर्यात की यात्रा कठिन रही है। इस मार्ग को महज 3 प्रतिशत सीएजीआर के साथ पार करने में एक दशक का समय लगा है।

  • यह वह अवधि थी जहां निर्यात के निरपेक्ष स्तर में पांच बार गिरावट आई थी। इसलिए, निर्यात में वृद्धि की निरंतरता एक ऐसा प्रश्न है जो नीति निर्माताओं को परेशान करता है।

विदेशी व्यापार का दूसरा दिलचस्प पहलू यह है कि निर्यात और आयात एक ही दिशा में आगे बढ़ते हैं।

  • वास्तव में, जब निर्यात उच्च दोहरे अंकों की दर से बढ़ता है, तो आयात तेजी से बढ़ता है। इस संदर्भ में आयात--निर्यात अनुपात को ट्रैक करना उपयोगी है। इस अनुपात में पिछले कुछ दशकों में वृद्धि देखी गई है।
  • 1980 के दशक में यह औसत 1.33 था और फिर नब्बे के दशक में 1.19 तक गिर गया जो सुधारों का पहला दशक था।
  • 2009-10 के अंत में इस सदी के पहले दशक में यह बढ़कर 1.37 हो गया और तब से यह औसत 1.49 तक बढ़ गया है।

स्पष्ट रूप से आयात पर निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से बढ़ी है जो वैश्वीकरण का एक प्राकृतिक परिणाम है, क्योंकि कंपनियां अपने कच्चे माल और मध्यस्थ वस्तुओं को उन देशों से प्राप्त करती हैं जो उन्हें बेहतर लागत (कीमत) पर प्रदान करते हैं।

चिंताए :-

वित्त वर्ष-23 यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि में शुरू हुआ है इसका मतलब है कि वैश्विक विकास में अनिश्चितता की बाधा बनी हुई है, जो निर्यात को नुकसान पहुंचाएगा।

वित्तीय वर्ष 2022 में 400 बिलियन डॉलर से अधिक का उच्च आधार, विकास के लिए एक प्रतिकूल आधार प्रभाव प्रदान करेगा। माल निर्यात में विनिर्माण का प्रभुत्व रहा है, जिसकी वार्षिक वृद्धि पिछले दशक में 5.9 प्रतिशत पर संतोषजनक रही है।

  • इसका तात्पर्य यह है कि निर्यात वृद्धि मुख्य रूप से वैश्विक कारकों से प्रभावित हुई थी जहां मांग की स्थिति कम थी।

केंद्रीय बैंकों ने 2008 के लेहमन संकट के बाद से विकास का समर्थन करने के लिए असाधारण सहायता प्रदान की है।

  • तरलता का रोलिंग बैक, वैश्विक विकास की संभावनाओं और विशेष रूप से विदेशी व्यापार को प्रभावित करेगा।

निर्यात बास्केट :- निर्यात के लिए दो मुख्य चुनौतियां प्रतिस्पर्धा और उत्पाद संरचना हैं। दोनों आपस में जुड़े हुए हैं।

  • वस्तुओं की संरचना हालांकि बदल रही है, फिर भी भारतीय निर्यात रत्न और आभूषण, कपड़ा, हस्तशिल्प, चमड़े के उत्पादों आदि जैसे पारंपरिक सामानों की ओर झुकी हुई है, जो आमतौर पर अन्य विकासशील देशों से प्रतिस्पर्धा का भी सामना करते हैं।
  • इस बास्केट की हिस्सेदारी 25-27 प्रतिशत है।
  • अन्य प्रतिस्पर्धी देशों द्वारा प्राप्त मूल्य लाभ घरेलू निर्यात को प्रभावित करता है।
  • इंजीनियरिंग और रसायन कुल निर्यात का लगभग 38 प्रतिशत है।
  • यहां एमएसएमई के वर्चस्व का तात्पर्य है कि उन्हें एक समूह के रूप में कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है, क्योंकि गुणवत्ता के मुद्दों के साथ-साथ तेजी से विकास करने में लागत भी एक चुनौती के रूप में होगी।

इसलिए, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का अनुमान लगाना और 5 ट्रिलियन डॉलर का अंक प्राप्त करना संभव है, यह संभावना नहीं है कि निर्यात $ 1 ट्रिलियन के स्तर तक पहुंच जाएगा।

आगे की राह :-

सरकार विशेष रूप से एमएसएमई के लिए निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों से लेकर आरबीआई द्वारा सुविधाजनक वित्त पोषण के लिए कई प्रोत्साहन प्रदान कर रही है।

  • हालांकि, यहां एसएमई को निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बेहतर संगठित होने की आवश्यकता है।
  • लगभग 60 मिलियन इकाइयां हैं जिनमें से आधी विनिर्माण में हैं, जो सूक्ष्म और छोटे क्षेत्रों में केंद्रित हैं, इन्हें संगठित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

निर्यात का भविष्य अधिक चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि ईएसजी नियम (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) मानक को कठिन करते हैं और देश अपने आयात को चुनने में अधिक सजग रहते हैं।

  • मूल्य और गुणवत्ता कारक जो प्रमुख रहे हैं, उन्हें ईएसजी मानकों के अनुपालन के साथ बदल दिया जाएगा।
  • जैसा कि दुनिया इस दिशा (ईएसजी नियमों के अनुरूप) में आगे बढ़ती है, पूरे निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को तथा उत्पादन प्रक्रियाओं को फिर से तैयार करना होगा।

निष्कर्ष :-

विकासशील देशों ने अब तक अपने सस्ते श्रम का लाभ उठाया है जिसे अक्सर विभिन्न मंचों पर उजागर किया गया है लेकिन यह एक बहिष्करण कारक नहीं रहा है। चीजें बदल रही हैं और हमें इसे ध्यान में रखना होगा क्योंकि हम निर्यात को बढ़ाकर 500 अरब डॉलर प्रति वर्ष करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

स्रोत :- The Hindu

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3:
  • भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों का जुटान, विकास, विकास और रोजगार से संबंधित मुद्दे; अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण के प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन और औद्योगिक विकास पर उनके प्रभाव।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • भारत का निर्यात 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार करना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, हालांकि समस्या इसकी स्थिरता में निहित है। कथन का विश्लेषण करें।

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