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Daily-current-affairs / 27 Feb 2024

भारत में सरोगेसी विनियमों का विकसित परिदृश्य

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संदर्भ

वैश्विक स्तर पर सरोगेसी, यानी किसी अन्य व्यक्ति या दंपत्ति के लिए गर्भधारण करना, लंबे समय से कानूनी और नैतिक बहस का विषय रहा है। भारत में, सरोगेसी के विनियमन में हाल के वर्षों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, परिणामतः सरोगेसी (विनियमन) नियमों में संशोधनों ने कई विषयों पर राहत और विवाद दोनों को जन्म दिया है। फरवरी 2024 में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नवीनतम संशोधनों ने एक बार फिर दाता दंपत्तियों और इच्छुक माता-पिता के लिए पात्रता मानदंड संबंधी विषयों को नैतिक बहस का विषय बना दिया है।

सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के संशोधन की चुनौतियाँ

सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022, ने शुरू में सरोगेसी के लिए दाता अंडे या दाता शुक्राणु के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया था, जिस निर्णय को कानूनी चुनौती और जांच का सामना करना पड़ा। एक उल्लेखनीय मामले, जिसमें मेयर-रॉकिटांस्की-कुस्टर-हॉसर (MRKH) सिंड्रोम से पीड़ित एक महिला शामिल थी; का विवाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मेयर-रॉकिटांस्की-कुस्टर-हॉसर (MRKH) सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जो किसी महिला को अन्डोत्सर्ग करने में असमर्थ बनाती है।

याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि इस संशोधन ने उनके माता-पिता के अधिकार का उल्लंघन किया और सरोगेसी अधिनियम, 2021 की धाराओं का खंडन किया। इस प्रकार इस संशोधन को प्रतिबंधात्मक माना जाने लगा, विशेषकर उन दंपत्तियों के लिए जिन्हें चिकित्सकीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था और जिनके लिए दाता युग्मकों के उपयोग की आवश्यकता थी।

सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप

कानूनी चुनौती के जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सा चुनौतियों का सामना करने वाले इच्छुक जोड़ों के लिए सरोगेसी तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व को पहचानते हुए हस्तक्षेप किया। इसके साथ ही साथ न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां ने सरोगेसी अधिनियम, 2021 के उद्देश्यों के साथ विनियमों को संरेखित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस अधिनियम का उद्देश्य अक्षम दम्पत्तियों को चिकित्सा आवश्यकता के मामलों में सरोगेसी के माध्यम से माता-पिता बनने की सुविधा प्रदान करना था। उक्त के अलावा संशोधन के संचालन पर रोक लगाने के न्यायालय के फैसले ने सहायक प्रजनन विकल्पों की मांग करने वाले व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया। विशेषकर ऐसे मामलों में जहां पारंपरिक गर्भधारण के तरीके संभव नहीं थे।

सरोगेसी नियमों में संशोधन

उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों के बाद, केंद्र सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 पर फिर से विचार किया गया और व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए संशोधन किए गए। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी इस नवीन संशोधन ने, विवाहित जोड़ों को विशिष्ट परिस्थितियों में दाता युग्मकों (अंडे और शुक्राणु) का उपयोग करने की अनुमति दी।

हालाँकि, यह आवश्यकता कि सरोगेसी के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चे में इच्छुक माता-पिता से कम से कम एक युग्मक (अंडा या शुक्राणु) होना चाहिए, जो उन दंपत्तियों के लिए दायरा सीमित कर देता है, जहां दोनों साथी चिकित्सीय कारणों से युग्मक प्रदान करने में असमर्थ हैं। हालाँकि यह संशोधन कुछ दंपत्तियों को राहत प्रदान करता है, जबकि अभी भी कुछ विशिष्ट चिकित्सीय स्थितियों वाले लोगों के लिए चुनौतियां उत्पन्न करता है।

अविवाहित महिलाओं का बहिष्कार

विवाहित जोड़ों द्वारा दाता युग्मकों के उपयोग की अनुमति देने वाले संशोधनों के बावजूद, संशोधित नियम सरोगेसी चाहने वाली अविवाहित महिलाओं पर प्रतिबंध बनाए रखती है। ये विनियमन निर्धारित करते हैं, कि एकल महिलाओं, चाहे विधवा हों या तलाकशुदा, उन्हें अपने स्वयं के अंडे और दाता शुक्राणु का उपयोग करना होगा, जिससे उन्हें सरोगेसी सेवाओं तक पहुंचने से प्रभावी रूप से बाहर रखा जाएगा।

इस बहिष्कार ने कानूनी चुनौतियों और सहायक प्रजनन तकनीकों के माध्यम से माता-पिता बनने के इच्छुक अविवाहित व्यक्तियों के अधिकारों पर बहस को जन्म दिया है। दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका चिकित्सा सिफारिशों और विकसित सामाजिक मानदंडों के आलोक में, विनियमों के भेदभावपूर्ण स्वरूप को उजागर करती है।

निष्कर्ष

भारत में सरोगेसी नियमों का विकास सहायक प्रजनन तकनीकों, माता-पिता बनने के अधिकार और कानून एवं चिकित्सा नैतिकता के अंतर्संबंध को लेकर चल रही बहस को दर्शाता है। जबकि हालिया संशोधन संतानोत्पत्ति की चुनौतियों का सामना करने वाले विवाहित जोड़ों के लिए कुछ लचीलापन प्रदान करते हैं। जैसे-जैसे कानूनी परिदृश्य विकसित हो रहा है, सरोगेसी चाहने वाले व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और सहायक प्रजनन के व्यापक सामाजिक और नैतिक विचारों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। अंततः, सरोगेसी सेवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सा प्रगति, कानूनी सिद्धांतों और विकसित होते सामाजिक मानदंडों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1. भारत के सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में हाल के संशोधनों के निहितार्थों पर चर्चा करें, विशेष रूप से विवाहित जोड़ों द्वारा दाता युग्मकों के उपयोग के संबंध में। चिकित्सा चुनौतियों का सामना करने वाले इच्छुक माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करने और सहायक प्रजनन तकनीकों से जुड़ी नैतिक चिंताओं को दूर करने के मध्य संतुलन का मूल्यांकन करें। (10 अंक, 150 शब्द)

2. भारत के संशोधित सरोगेसी नियमों के तहत एकल महिलाओं को सरोगेसी सेवाओं तक पहुंचने से बाहर करने से संबंधित कानूनी और नैतिक विचारों का विश्लेषण करें। माता-पिता बनने के व्यक्तिगत अधिकारों, पारिवारिक संरचनाओं की सामाजिक धारणाओं और देश में प्रजनन अधिकारों के उभरते परिदृश्य पर ऐसे बहिष्करणों के निहितार्थ का मूल्यांकन करें। (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत: हिन्दू