संदर्भ:
राज्यों के बीच वित्तीय हस्तांतरण, भारत की संघीय संरचना का एक अनिवार्य पहलू है, जो संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करता है और सभी क्षेत्रों में संतुलित विकास को बढ़ावा देता है। इस तंत्र के मूल में वित्त आयोग (FC) की भूमिका निहित है, जो एक संवैधानिक निकाय है और केंद्र एवं राज्यों के बीच कर आय के वितरण की सिफारिश के लिए जिम्मेदार है।
अपने आवधिक मूल्यांकन और सिफारिशों के माध्यम से, वित्त आयोग राजकोषीय संबंधों को आकार देने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कि राज्यों को संसाधनों का उचित हिस्सा मिल सके। हालाँकि, विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों, विशेष रूप से दक्षिणी भारत में; उत्पन्न विभिन्न मुद्दों ने राजस्व आवंटन में असमानताओं को रेखांकित किया है, जिससे मौजूदा संघीय शासन प्रणाली की प्रभावकारिता और निष्पक्षता को लेकर चर्चाएं बनी हुई है।
वित्त आयोग की भूमिका:
प्रत्येक पांच वर्ष में गठित वित्त आयोग, भारत के राजकोषीय संघवाद की आधारशिला के रूप में कार्य करता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और सदस्यों से युक्त, यह आयोग राज्यों की वित्तीय जरूरतों का आकलन करने और तदनुसार सिफारिशें करने के लिए स्वतंत्र रूप से काम करता है। इसके अधिदेश में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज दोनों प्रकार के हस्तांतरण, विभाज्य पूल से राज्यों को आवंटित करों की हिस्सेदारी का निर्धारण और राज्यों के बीच वितरण के लिए मानदंड तैयार करना जैसे कार्य शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग सहायता अनुदान पर सलाह देता है; यह सुनिश्चित करते हुए कि विशिष्ट आवश्यकताओं वाले राज्यों को पर्याप्त वित्तीय सहायता मिल सके। साथ ही साथ संसाधन आवंटन के लिए एक वस्तुनिष्ठ ढांचा प्रदान करके, वित्त आयोग सहकारी संघवाद को सुविधाजनक बनाता है और सभी क्षेत्रों में संतुलित विकास को बढ़ावा देता है।
कर राजस्व के आवंटन का आधार
विभिन्न राज्यों को कर राजस्व का आवंटन वित्त आयोग द्वारा स्थापित मानदंडों के एक समूह द्वारा निर्देशित होता है। ये मानदंड, आय की विषमता से लेकर जनसांख्यिकीय प्रदर्शन, राज्यों के बीच आर्थिक विकास, जनसंख्या आकार और पर्यावरणीय कारकों में असमानता जैसे कारकों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं।
उदाहरण
आय विषमता किसी राज्य की आय और उच्चतम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य के बीच अंतर को मापती है, जिससे आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों को अधिक सहायता सुनिश्चित होती है।
जनसांख्यिकीय और पारिस्थितिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए जनसंख्या और वन क्षेत्र को ध्यान में रखा जाता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विविध मापदंडों को शामिल करके, वित्त आयोग सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को दर्शाते हुए, राजस्व वितरण में समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
विभाज्य पूल आवंटन की प्रवृत्ति:
हाल के वर्षों में, दक्षिणी राज्यों को आवंटित करों के विभाज्य पूल की घटती प्रतिशत हिस्सेदारी को लेकर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। विभिन्न वित्त आयोग के विश्लेषणों ने एक प्रवृत्ति को उजागर किया है, जिसमें दक्षिणी राज्यों ने कर राजस्व के अपने हिस्से में धीरे-धीरे गिरावट का अनुभव किया है। इस घटना को आय विषमता और जनसंख्या आकार जैसे मानदंडों पर दिए गए जोर के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो अधिक आर्थिक असमानताओं और बड़ी आबादी वाले राज्यों का पक्ष लेते हैं।
नतीजतन, कर संग्रह में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, दक्षिणी राज्यों को विभाज्य पूल का घटता अनुपात प्रचलन में है, जिससे संसाधन आवंटन में असमानताएं बढ़ रही हैं। राजकोषीय संघवाद के सिद्धांतों को बनाए रखने और सभी राज्यों में समान विकास सुनिश्चित करने के लिए इस प्रवृत्ति को समाप्त करना अनिवार्य है।
चुनौतियाँ और संभावित समाधान:
वित्तीय हस्तांतरण से जुड़ी चुनौतियाँ इस वित्तीय आवंटन प्रणाली को पुनः व्यवस्थित करने और मौजूदा असमानताओं को दूर करने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता पर जोर देती हैं। एक प्रमुख मुद्दा विभाज्य पूल से उपकर और अधिभार को बाहर करने से संबंधित है, जिससे राज्य कर-राजस्व के एक महत्वपूर्ण हिस्से से वंचित हो जाते हैं। इसे कम करने हेतु, कुछ उपकरों और अधिभारों को शामिल करके विभाज्य पूल को बढ़ाना एक संभावित प्रयास हो सकता है, जिससे राज्यों के संसाधनों की हिस्सेदारी में वृद्धि होगी।
इसके अतिरिक्त, कर-संग्रह प्रयास जैसे दक्षता संकेतकों पर अधिक जोर देते हुए, क्षैतिज हस्तांतरण के मानदंडों को पुनर्संतुलित करने की तत्काल आवश्यकता है। राज्यों को उनकी कर संग्रह दक्षता के लिए पुरस्कृत करके, वित्तीय आवंटन प्रणाली राजकोषीय विवेक को प्रोत्साहित कर सकती है और संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित कर सकती है।
आगे का रास्ता
राज्यों के बीच इष्टतम वित्तीय हस्तांतरण प्राप्त करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो समानता, दक्षता और संघवाद के सिद्धांतों को संतुलित करता है। वित्त आयोग इस संबंध में एक महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में कार्य करता है। अतः इसकी सिफारिशें उभरती चुनौतियों का समाधान करने और मौजूदा असमानताओं को दूर करने के लिए विकसित होनी चाहिए। विभाज्य पूल को बढ़ाना, आवंटन के मानदंडों का पुनर्मूल्यांकन करना और निर्णय लेने की प्रक्रिया में राज्य की भागीदारी को बढ़ाना सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और संतुलित विकास को बढ़ावा देने की दिशा में आवश्यक प्रयास हो सकते हैं। इन सुधारों को अपनाकर, भारत सभी क्षेत्रों में समावेशी विकास और समान समृद्धि के अपने दृष्टिकोण को साकार कर सकता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत: The Hindu