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Daily-current-affairs / 11 May 2024

भारत में माओवादी विद्रोह को नियंत्रित करना

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संदर्भ:

     छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ चलाए गए हालिया अभियानों ने, माओवादी संगठनों को निष्क्रिय करने और उनके समग्र विद्रोह के प्रभाव को कम करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है, जिससे यह मुद्दा राष्ट्रीय सुर्खियों में गया है। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त रूप से चलाए गए इन अभियानों के परिणामस्वरूप माओवादी गतिविधियों में स्पष्ट गिरावट देखी गई है, जो छत्तीसगढ़ में विद्रोह विरोधी कार्यों में एक संभावित निर्णायक मोड़ का संकेत देता है।

माओवादी विद्रोह के विरुद्ध सुरक्षा अभियानों में उल्लेखनीय प्रगति:

     सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए विभिन्न अभियानों ने कई महत्वपूर्ण परिणाम हासिल किए हैं, जिसने बड़ी संख्या में माओवादी विद्रोहियों को निष्क्रिय कर दिया है।

     उदाहरण:

     कांकेर जिले में किए गए संयुक्त अभियान में शीर्ष नेताओं लालिता और शंकर सहित 29 कथित माओवादियों को समाप्त कर दिया गया। इसी तरह की सफल मुठभेड़ें बस्तर संभाग के बीजापुर और नारायणपुर जिलों में भी हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रमुख माओवादी हस्तियों का अंत हुआ है।

     इन अभियानों ने माओवादी के बुनियादी ढांचे को काफी कमजोर कर दिया है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पहले उनका प्रभुत्व था। प्रमुख नेताओं और कार्रवाई करने वालों को समाप्त करने से संगठन की कमांड संरचना और कार्यात्मक क्षमता दोनों ही बाधित हुई है।

पिछले वर्षों की तुलना:

     वर्ष 2023 और 2024 के बीच हुए क्षति की तुलना माओवादी हताहतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि को प्रदर्शित करती है। वर्ष 2023 में, पूरे वर्ष में राज्य में 23 माओवादी नुक्सान दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2024 के पहले चार महीनों में ही 91 माओवादियों को निष्क्रिय कर दिया गया है। हताहतों में यह उल्लेखनीय वृद्धि विद्रोह का मुकाबला करने में सुरक्षा बलों के बढ़ते प्रयासों और प्रभावशीलता को दर्शाती है।

छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोह के दमन में सफलता के कारक:

     छत्तीसगढ़ में हालिया समय में माओवादी विद्रोह को कमजोर करने में कई कारकों का योगदान रहा है। इनमें सुरक्षा अभियानों में रणनीतिक बदलाव, बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के समाधान के लिए सक्रिय उपाय शामिल हैं।

     सुरक्षा अभियानों में रणनीतिक बदलाव

     राज्य सरकार की सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की प्रतिबद्धता ने माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस हेतु आंध्र ग्रेहाउंड मॉडल जैसी रणनीतियों को अपनाकर और कोबरा यूनिट जैसी विशेष इकाइयों की स्थापना करके सुरक्षा बलों ने अपनी कार्रवाई क्षमता को बढ़ाया है।

     इसके अतिरिक्त, राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय ने अधिक लक्षित और समन्वित विद्रोह-रोधी अभियानों को संभव बनाया है।

     बुनियादी ढांचे का विकास और पहुंच में सुधार:

     माओवादी विद्रोह के खिलाफ लड़ाई में सड़क संपर्क में सुधार एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में प्रमुख सड़क परियोजनाओं के निर्माण ने केवल सुरक्षा बलों की गतिविधियों को सुगम बनाया है, बल्कि पूर्व माओवादी गढ़ों में सुरक्षा शिविरों की स्थापना भी संभव की है।

     बढ़ी हुई पहुँच ने सुरक्षा बलों को विद्रोही-नियंत्रित क्षेत्रों में गहराई से प्रवेश करने का अधिकार दिया है, जिससे माओवादियों के लिए स्वतंत्र रूप से गतिविधियां चलाना चुनौतीपूर्ण हो गया है।

     सामाजिक-आर्थिक विकास पहल:

     सुरक्षा उपायों के साथ-साथ, राज्य सरकार ने विद्रोह के मूल कारणों को दूर करने के उद्देश्य से सामाजिक-आर्थिक विकास पहलों को प्राथमिकता दी है। साथ ही साथ आदिवासी आबादी के बीच खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी मानव विकास संकेतकों में निवेश ने सामाजिक-आर्थिक असंतोष को कम करने और माओवादी विचारधारा के आकर्षण को कमजोर करने में मदद की है।

     इसके अलावा, वर्ष 2020 के बाद से सुरक्षा अभियानों के बढ़ते दबाव के साथ-साथ आकर्षक पुनर्वास नीति ने बड़ी संख्या में माओवादियों के समर्पण को प्रोत्साहित किया है।

छत्तीसगढ़ में चुनौतियां और सतर्कता की आवश्यकता:

     माओवादी विद्रोह की हालिया सफलताओं के बावजूद, छत्तीसगढ़ को माओवादी विद्रोह को पूरी तरह से खत्म करने में अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सुरक्षा बलों ने विद्रोहियों को निष्क्रिय करने और पूर्व माओवादी गढ़ों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में पर्याप्त प्रगति की है, फिर भी आगे बढ़ने के लिए कई कारक सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

     माओवादी गढ़ों का बने रहना:

     बस्तर और अबूझमाड़ के पहाड़ी और वनाच्छादित क्षेत्रों सहित कुछ इलाकों में माओवादियों की अब भी मजबूत उपस्थिति है। ये क्षेत्र अभी भी भारी मात्रा में बारूदी सुरंगों से युक्त हैं, जो सुरक्षा बलों की गतिशीलता और कार्यात्मक प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं। इसके अलावा, अप्रैल 2023 में दंतेवाड़ा में हुए घात जैसे हालिया घटनाक्रम बेहतर सुरक्षा तैयारियों के बावजूद विद्रोहियों की साहसी हमले करने की क्षमता को उजागर करते हैं।

     दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता:

     माओवादी विद्रोह का मुकाबला करने में स्थायी सफलता प्राप्त करने के लिए एक निरंतर और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। हालांकि हालिया अभियानों ने विद्रोहियों को गंभीर धक्का दिया है, लेकिन राज्य और उसके सुरक्षा बलों को लंबे समय तक सतर्क और प्रतिबद्ध रहना चाहिए। केवल माओवादी लड़ाकों का सफाया करना उन अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक शिकायतों को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है जो विद्रोह को हवा देते हैं।

     संवाद और मेल-मिलाप का महत्व:

     सैन्य कार्रवाईयों के अलावा, विद्रोहियों के साथ शांति वार्ता के लिए रास्ता खोलना संघर्ष के स्थायी समाधान को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह स्वीकार करते हुए कि लंबे समय से चले रहे विद्रोह को केवल सैन्य साधनों से खत्म नहीं किया जा सकता है, माओवादी गुटों के साथ बातचीत करने और उनकी शिकायतों को शांतिपूर्ण तरीकों से दूर करने के प्रयास आवश्यक हैं। छत्तीसगढ़ में स्थायी शांति और विकास के लिए सुरक्षा उपायों को संवाद और मेल-मिलाप पहल के साथ जोड़ने वाला एक व्यापक दृष्टिकोण अनिवार्य है।

निष्कर्ष:

     छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोह का मुकाबला करने में प्राप्त हालिया सफलताएं शांति और स्थिरता के लिए राज्य के निरंतर संघर्ष का एक सकारात्मक प्रयास है। हालांकि, यह जानना भी आवश्यक है कि स्थायी शांति की यात्रा जो चुनौतियों और अनिश्चितताओं से भरी हुई है। सुरक्षा बलों ने विद्रोहियों को निष्क्रिय करने और पूर्व माओवादी गढ़ों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में सराहनीय प्रगति की है, फिर भी अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक शिकायतों और नवीनीकृत विद्रोही गतिविधियों की संभावना एक सतर्क और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

     इसके अतिरिक्त सुरक्षा बुनियादी ढांचे, सामाजिक-आर्थिक विकास और वार्ता पहल में निरंतर निवेश करके, छत्तीसगढ़ अपनी उपलब्धियों को मजबूत कर सकता है और अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। आगे का रास्ता लंबा और कठिन हो सकता है, लेकिन निरंतर प्रतिबद्धता और सहयोग के साथ, राज्य माओवादी विद्रोह को खत्म कर सकता है और स्थायी शांति और विकास के युग का शुभारंभ कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

1.    आंध्र ग्रेहाउंड मॉडल को अपनाने और कोबरा यूनिट जैसी विशेष इकाइयों की स्थापना जैसे सुरक्षा अभियानों में रणनीतिक बदलाव ने छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोह का मुकाबला करने में हाल की सफलताओं में कैसे योगदान दिया है? (10 अंक, 150 शब्द)

2.    विद्रोहियों को निष्क्रिय करने और सुरक्षा उपस्थिति बढ़ाने में हाल की सफलताओं के बावजूद, छत्तीसगढ़ को माओवादी विद्रोह को पूरी तरह से खत्म करने में किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? एक व्यापक दृष्टिकोण जो सुरक्षा उपायों को बातचीत और सुलह पहल के साथ जोड़ता है, इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- ORF