संदर्भ:
वर्ष 2024 के केंद्रीय बजट में, वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न उपाय तंत्रों की एक श्रृंखला का अनावरण किया। इस संदर्भ में उनका विशेष ध्यान डीप टेक्नोलॉजी या डीप प्रौद्योगिकी (डीप टेक) अथवा डीप तकनीक और रक्षा क्षमताओं पर केंद्रित रहा। इस पहल की सहायता से भारत स्वयं को उन्नत और विघटनकारी प्रौद्योगिकियों में अग्रणी के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, जो वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। अतः अनुसंधान एवं विकास के लिए पर्याप्त धनराशि का आवंटन, विभिन्न क्षेत्रों में गहन तकनीकी स्टार्टअप को बढ़ावा देने के साथ-साथ, नवाचार और तकनीकी उन्नति के प्रोत्साहन के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
डीप टेक और उसका महत्व:
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डीप टेक उन्नत एवं विघटनकारी प्रौद्योगिकियों को संदर्भित करता है, जिनमें से कई अभी भी विकासात्मक चरण में हैं। साथ ही उनमें परिवर्तनशील रूपांतरण को उत्प्रेरित करने और भविष्य की चुनौतियों के लिए समाधान ढूंढने की अपार क्षमता है। इन प्रौद्योगिकियों में नैनोटेक्नोलॉजी, जैव प्रौद्योगिकी, सामग्री (मटेरियल) विज्ञान, क्वांटम प्रौद्योगिकी, अर्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा विज्ञान, रोबोटिक्स और 3डी प्रिंटिंग जैसे अत्याधुनिक अनुसंधान क्षेत्र शामिल हैं। उनसे जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, महामारी, ऊर्जा पहुंच, परिवहन, बुनियादी ढांचे और साइबर सुरक्षा जैसे जटिल वैश्विक मुद्दों को सुगमतापूर्वक हल करने की संभावना है।
- इसके अलावा, डीप अथवा गहन तकनीक में उन्नत क्षमताओं से उत्पादकता को बढ़ावा देने, आर्थिक विकास को गति देने और आने वाले वर्षों में रोजगार के अवसर भी सृजित होने की उम्मीद है। इन क्षेत्रों में व्यापक पहुँच वाले देश वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी हो सकते हैं। भारत के पास इस समय, कुशल विज्ञान और इंजीनियरिंग पेशेवरों के समूह और एक स्थापित प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र के साथ, इन क्षेत्रों में नेतृत्व करने की क्षमता है। भारत के पास इन प्रौद्योगिकियों के विकास, शीघ्र अपनाने, स्वदेशी नवाचार, बौद्धिक संपदा स्वामित्व और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में योगदान करने का पर्याप्त अवसर भी है। इसके अतिरिक्त, गहन तकनीक में प्रगति से स्पिन-ऑफ प्रौद्योगिकियों, कुशल कार्यबल विकास, उद्यमिता और प्रौद्योगिकी निर्यात जैसे लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
डीप तकनीक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार के प्रयास:
पिछले कुछ वर्षों में, भारत सरकार ने डीप तकनीकी क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रयास आरम्भ किये हैं। परिवर्तनकारी गतिशीलता और क्वांटम प्रौद्योगिकियों पर राष्ट्रीय मिशन की स्थापना से लेकर राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (NDTSP) जैसी नीतियां तैयार करने तक, तकनीकी स्टार्टअप और शोधकर्ताओं के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने के प्रयास किए गए हैं। सरकार की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे एनडीटीएसपी का उद्देश्य गहन तकनीकी स्टार्टअप के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के साथ-साथ उद्योग, शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करना है। प्रतिभा का पोषण करके, नवाचार को बढ़ावा देकर और आवश्यक सहायता प्रदान करके, ये पहल तकनीकी प्रगति के लिए अनुकूल और एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना चाहती है।
अनुसंधान हेतु वित्तीय और नीतिगत अनिवार्यताओं में चुनौतियाँ:
- NDTSP में उल्लिखित प्राथमिक सिफारिशों में से एक में अनुसंधान पहल के लिए दीर्घकालिक वित्त पोषण प्राप्त करने के अवसरों को बढ़ाना शामिल है। यह मान्यता इस बात पर आधारित है, कि अधिकांश डीप तकनीकी परियोजनाएं समय और वित्तीय संसाधन दोनों की मांग करती हैं।
- इसके साथ ही शोध कर रहे वैज्ञानिक समुदाय के भीतर एक प्रमुख चिंता अनुसंधान निधि का अपर्याप्त आवंटन रहा है। भारत का अनुसंधान व्यय वैश्विक औसत से काफी कम है। परिणामतः यह वैज्ञानिक रूप से प्रतिस्पर्धा करने वाले सभी उन्नत देशों से पीछे है।
- दो दशकों से अधिक समय से अनुसंधान और विकास के लिए सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2% व्यय करने के भारत सरकार के दीर्घकालिक लक्ष्य के बावजूद, वास्तविक व्यय इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है। हाल के वर्षों में अनुसंधान के लिए आवंटित सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में गिरावट हुई है, जो वर्तमान में केवल 0.65% है। यह लगभग 1.8% के वैश्विक औसत से बहुत ही कम है।
- हाल के सरकारी निर्णय यह सुझाव देते हैं, कि अनुसंधान एवं विकास व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि केवल निजी क्षेत्र के सहयोग से ही प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए उद्योग, अनुसंधान संस्थानों और शैक्षिक प्रतिष्ठानों के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं, जिसका लक्ष्य अनुसंधान गतिविधियों में विविधता लाना और वित्त पोषण स्रोतों को मजबूत करना है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) की स्थापना, का लक्ष्य इस उद्देश्य को पूरा करना है। इस संबंध में अगले पांच वर्षों में इसके 50,000 करोड़ रुपये के आवंटन में से लगभग 70% निजी उद्योग द्वारा योगदान किए जाने की उम्मीद है।
अनुसंधान वित्तीयन पर केंद्रीय बजट का ध्यान:
- अनुसंधान और विकास वित्तपोषण हेतु शुरुआती फंडिंग चाहने वाले स्टार्टअप और निजी क्षेत्र के उद्यमों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन का उद्देश्य अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर निवेश को प्रोत्साहित करना है। इस सहायता से सफल परियोजनाएं आगे उद्योग निवेश को प्रोत्साहित करेंगी, जिससे अनुसंधान समुदाय के लिए समग्र विकास और लाभ के अवसर उपलब्ध होंगे।
- हालाँकि, वैज्ञानिक समुदायों में यह संदेहास्पद स्थिति अभी भी बनी हुई है। पिछले कई अनुभवों के आधार पर यह संभव है, कि अनुसंधान में निजी क्षेत्र का निवेश असंगत और अपर्याप्त हो सकता है। कई वैज्ञानिकों का तर्क है कि निजी क्षेत्र से लगाई गई अपेक्षाओं और सरकार की फंडिंग प्रतिबद्धताओं के बीच असंतुलन उत्पन्न कर सकता है।
- कभी-कभी पर्याप्त धन उपलब्ध होने पर भी, परियोजना की प्रगति अक्सर विलंब और नौकरशाही बाधाओं के कारण बाधित होती रहती है। अनुसंधान में धन लगाने के लिए नई सरकारी पहलों पर वर्तमान निर्भरता उनकी सफलता के महत्व को रेखांकित करती है।
- इसके बावजूद, अंतरिम बजट में विज्ञान और अनुसंधान विभागों के लिए बजटीय आवंटन में केवल मामूली वृद्धि देखी गई है। 37 प्रयोगशालाओं का प्रबंधन करने वाले वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) में लगभग 9% की उच्चतम वृद्धि देखी गई, जबकि अंतरिक्ष विभाग में केवल 4% की वृद्धि मिली। इसके विपरीत, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा और जैव प्रौद्योगिकी विभाग को बजट में कटौती का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः, केंद्रीय बजट में डीप तकनीक और अनुसंधान वित्तपोषण पर जोर; भारत में नवाचार और तकनीकी प्रगति के लिए एक नए युग की शुरुआत मानी जा सकती है। अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्राथमिकता देकर, हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर और नीतिगत ढांचे को सुव्यवस्थित करके, सरकार का लक्ष्य भारत के वैज्ञानिक समुदाय की क्षमता को मजबूत करना है। हालाँकि, इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिए धन की कमी को दूर करने, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और नवाचार की संस्कृति विकसित करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत प्रौद्योगिकी और नवाचार के लिए एक वैश्विक केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, सार्थक प्रगति और समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की निरंतर प्रतिबद्धता आवश्यक होगी।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:
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स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस