संदर्भ -
बांग्लादेश में शेख हसीना के शासन का महत्वपूर्ण अंत एक अवसर और एक जोखिम दोनों प्रस्तुत करता है। इस राजनीतिक परिवर्तन को भलीभाँति समझने के लिए, हमें बांग्लादेश के लोकतांत्रिक संस्थागत संरचना एवं उसके अनुभव को व्यापक संदर्भ में देखना आवश्यक है। भारत को इस संदर्भ में सिर्फ अपने नजरिए से देखने से बचने की जरूरत है यथा यह क्रांति बंग्लादेश के लोगों के अपने भाग्य को आकार देने के लिए चल रहे संघर्ष की परिणति है।
बांग्लादेश में भारत के हित
बांग्लादेश से भारत के अनेकों हित जुड़े हुए हैं। परंतु वर्तमान समय में यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बांग्लादेश पूर्वोत्तर में भारत विरोधी समूहों के लिए कोई मंच स्थल के रुप में न उभर जाए। उम्मीद रखा जा सकता हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ी हिंसा, बस एक विचलन की तरह हो। विचलन के संदर्भ में भी भारत की घरेलू राजनीति इससे काफी प्रभावित होगी जो बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है। हालांकि अब तक, बांग्लादेश में सेना और छात्र आंदोलनकारियों दोनों ने संकेत दिया है कि वे ऐसा नहीं होने देंगे।
सरकारी और नागरिक समाज का दृष्टिकोण
सरकारी स्तर पर, भारत के दृष्टिकोण को कुछ हद तक अहंकार द्वारा चिह्नित किया गया है। इसने हमें आधुनिक राजनीति के एक केंद्रीय तथ्य की ओर अंधा कर दिया है। यह समझने की जरूरत हैं कि सत्तावादी दमन केवल एक बिंदु तक काम कर सकता है। भारत ने बांग्लादेश की राजनीति में एक पक्षपाती अभिनेता बनने का जोखिम उठाते हुए न केवल एक विशेष पार्टी बल्कि अधिनायकवाद का समर्थन करते हुए शेख हसीना का पक्ष लिया है।
नागरिक समाज और मीडिया के स्तर पर, बांग्लादेशी समाज की जटिलताओं को स्वीकार करने से इनकार किया गया है। भारतीय दक्षिणपंथी द्वारा बांग्लादेश की घटनाओं को एक विदेशी साजिश या एक इस्लामी साजिश के रूप में चित्रित करना बांग्लादेशी लोगों को अलग-थलग कर देता है। बंग्लादेश के बारे में ऐसे चर्चा किया जाना यह दर्शाता है कि मानो उनके पास अपनी कोई एजेंसी ही न हो।
बांग्लादेश की राजनीति की जटिलताएँ
- पहचान और धर्मनिरपेक्षता
बांग्लादेश की राजनीति में दो महत्वपूर्ण तनाव रहे हैं।
1. बांग्लादेश ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में एक प्रमुख भाषा के साथ एक धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में अपनी पहचान को पूरी तरह से हल नहीं किया। अथार्थ उत्तरोत्तर शासकों, विशेष रूप से जियाउर रहमान ने संविधान में अधिक इस्लामी तत्वों और इस्लामी समूहों को शामिल कर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के भविष्य की क्षमता से समझौता किया।
2. शेख हसीना ने भी इन समूहों को समायोजित किया, जैसे नास्तिकब्लॉगर्स के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलनों के जवाब देने में। विडंबना यह है कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने की कोशिश की, साथ ही उन कानूनों को वैध बनाने के लिए धार्मिक बहाने का इस्तेमाल किया, जिसका इस्तेमाल उनके विरोधियों के खिलाफ भी किया जा सकता था। नतीजतन, बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामवाद एक निरंतर तनाव बना हुआ है।
- अधिनायकवाद और इस्लामवाद
भारतीय दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो “केवल भारत समर्थक सत्तावादी शासन ही इस्लामवाद को दूर रख सकता है,” यह कथन गुमराह करने वाला प्रतीत होता है। इस्लामवाद के कारणों के संदर्भ में देखा जाए तो यह, या तो तानाशाहों के संरक्षण के कारण पनपता है या धर्मनिरपेक्ष विपक्ष को अधिक दबा दिए जाने के कारण। फलस्वरूप धार्मिक आंदोलन असंतोष का एकमात्र उपलब्ध रूप रह जाता है। हालांकि विदित है कि जैसे-जैसे लोकतांत्रिक संस्थान विकसित होते हैं, इस्लामी समूह शुरू में अधिक हावी दिखाई देते हैं। परंतु लंबे समय में,एक आधुनिक समाज के रुप में देखा जाना संभव हो सकता है। मुख्यत: लोकतांत्रिक संस्थान, इस्लामवाद रूपी दृश्यता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संभावनाएँ
बंग्लादेश में लोकतंत्र की कोई गारंटी तो नहीं है, लेकिन इसके पास लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाने का कुछ मौका जरूर है, भले ही संघर्ष हो। पाकिस्तान के संदर्भ में यदि देखा जाए तो इसका नागरिक समाज पाकिस्तान से काफी अलग है। हालांकि पाकिस्तान में भी अक्सर देखा गया हैं कि, धार्मिक दल चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं। साथ ही पाकिस्तान में अनेकों घटनाएँ धर्म के नाम पर देखा जाना आम सी बात हैं। इसके विपरीत, बांग्लादेश में एक मजबूत संस्थागत धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज है जो धर्मनिरपेक्ष विकास के लिए जोर देता रहा है।
- पार्टी प्रणाली को संस्थागत बनाना
बांग्लादेशी राजनीति में दूसरा तनाव पार्टी प्रणाली का संस्थागतकरण करना है। अंतरिम सरकार के लिए कामकाज का पहला काम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना होगा जिसमें सभी दल भाग लें। समस्या यह रही है कि बांग्लादेश में जीतने वाले दल अक्सर सत्ता पर एकाधिकार का आनंद लेते हैं, विरोधियों को निशाना बनाते हैं और स्वतंत्र चुनावों को कमजोर करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक पक्ष एक अपारदर्शी समूह द्वारा नियंत्रित होता हैं, जो अनुत्तरदायी की भूमिका निभाता है।
शेख हसीना और संभवतः खालिदा जिया के लुप्त होने की संभावना के साथ, एक अन्य पार्टी प्रणाली उभर सकती है। एक ऐसी पार्टी प्रणाली जो लोकतंत्ररूपी विशेषता साझा करने के लिए अधिक अनुकूल हो और मूल संस्थागत मूल्यों के लिए अधिक प्रतिबद्ध हो। अन्यथा, सामाजिक आंदोलन की वर्तमान प्रवृत्तियों के बाद एक संक्षिप्त लोकतंत्र आएगा जो बाद में एक निरंकुश पार्टी-संबद्ध राज्य को प्रोत्साहन देगा।
छात्र आंदोलनों की भूमिका
छात्र आंदोलनों ने बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में एक शक्तिशाली भूमिका निभाई है। वे 1952 में भाषा आंदोलन और 1971 में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे थे। बांग्लादेश इस हद तक अद्वितीय है कि छात्र, अधिनायकवाद को चुनौती देने एवं लोकतांत्रिक वैधता को बनाए रखने में काफी अहमियत रखते हैं। यहाँ छात्र आंदोलन एक ऐसी प्रणाली के रुप में देखी जाती है जो सत्तावादी अधिकार छीनने वाले सरकार को अस्थिर कर देती हैं।
भारत एवं बंग्लादेश के छात्र आंदोलन
भारत का अपना छात्र आंदोलन रहा है, विशेष रूप से आपातकाल के दौरान और असम जैसे क्षेत्रीय आंदोलनों में देखा गया था। छात्रों के नेतृत्व में अंतिम महत्वपूर्ण आंदोलन तेलंगाना के लिए आंदोलन था, जो हिंसक नहीं हुआ क्योंकि यहाँ राज्य उत्तरदायी था। बंग्लादेश के आंदोलन के तहत ऐसा कहा जा सकता है कि बांग्लादेश एक छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन का अनुभव कर रहा है,हालांकि इसके विपरीत भी हो सकते हैं जैसा की सैनिकों या अन्य हितधारकों का पीछे से समर्थन दिया जाना। परंतु यदि बंग्लादेश के छात्र एवं हितधारक एक ऐसे समाज के लिए आशा करते हैं जो अपने भविष्य को बनाने का प्रयास कर रहें हैं, तो उन्हें उचित माना जा सकता हैं। हालांकि इसके लिए आगे के पहलुओं को देखना आवश्यक है।
निष्कर्ष
दुनिया भर में लोकप्रिय विद्रोहों का हालिया अनुभव हमेशा उत्साहजनक नहीं होता है। अन्य चुनौतियों के अलावा, बांग्लादेश को आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। हालाँकि किसी भी शक्ति को, विशेष रूप से भारत को, आधुनिकीकरण की उस जटिल प्रक्रिया को शॉर्ट-सर्किट नहीं करना चाहिए। मुख्यत: बंग्लादेश का भविष्य, अब वहाँ के छात्र तथा अनेक हितधारकों के पास हैं समस्त विश्व को इस पर अपनी निगाहें बनाकर रखने की जरूरत हैं खासकर भारत को, जिसका एक प्रमुख पड़ोसी बंग्लादेश हैं। चिंतनीय प्रश्न बस यह हैं की बंग्लादेश में अब क्या बदलाव होने वाला है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न - 1. बांग्लादेश में छात्र आंदोलनों की अनूठी भूमिका ने इसके राजनीतिक परिदृश्य को कैसे प्रभावित किया है, विशेष रूप से अधिनायकवाद को चुनौती देने और लोकतांत्रिक वैधता को बढ़ावा देने में? (10 Marks, 150 Words) 2. भारत अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों को थोपे बिना या बांग्लादेश के आधुनिकीकरण की जटिल प्रक्रिया से समझौता किए बिना किस तरह से लोकतांत्रिक संस्थागतकरण की दिशा में बांग्लादेश की यात्रा का समर्थन कर सकता है? (15 Marks, 250 Words) |
स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस