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Daily-current-affairs / 05 Aug 2024

भारतीय सेना का परिवर्तन: आधुनिकीकरण में गुणवत्ता और मात्रा का संतुलन- डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ -

वर्तमान समय में भारतीय सेना का आधुनिकीकरण और परिवर्तन व्यापक चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। इन शब्दों को अक्सर भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से देखा जाता रहा हैं परंतु ये अपने उद्देश्य, प्रभाव, परिमाण और दायरे में काफी भिन्न होते हैं।

आधुनिकीकरण बनाम परिवर्तन

  • आधुनिकीकरण: सैन्य आधुनिकीकरण के अंतर्गत आधुनिक सैन्य तकनीक का अधिग्रहण, संचालन, रणनीति, कमान और नियंत्रण, सहायक बुनियादी ढाँचे, संगठनात्मक संरचना, प्रशिक्षण और कार्मिक नीतियों की नई अवधारणाओं के माध्यम से सैन्य प्रभावशीलता में सुधार करना शामिल है। इस प्रक्रिया के तहत सिर्फ आधुनिक सामग्री और तकनीक हासिल करना है, बल्कि सहायक बुनियादी ढाँचे से उचित रूप से जुड़ना भी शामिल है।
  • परिवर्तन: इसके तहत सैन्य परिवर्तन में संगठनात्मक संस्कृति में आमूल-चूल और गहन परिवर्तन शामिल हैं, जिससे भविष्य की रणनीतिक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नए संस्थान बनाए जा सके। इसके अंतर्गत भविष्य के युद्ध की कल्पना के आधार पर नए परिवर्तन शामिल किए जाने की जरूरत हैं, जिससे सभी स्तरों पर संघर्षों का जवाब देने के लिए नई सेना संरचनाओं, परिचालन तत्परता और स्थिरता की प्राप्ति हो सकें।

भविष्य के युद्ध की भविष्यवाणी करना

  • भविष्यवाणी में चुनौतियाँ: लॉरेंस फ्रीडमैन ने "युद्ध का भविष्य" में उल्लेख किया है कि "भविष्यवाणी करना कठिन है और इसके गलत होने की भी संभावना है।" ऐतिहासिक रूप से, युद्ध की बहुत कम भविष्यवाणियाँ सटीक रही हैं। हालांकि भविष्य के युद्धों की वर्तमान में परिकल्पना करते हुए भारतीय सशस्त्र बलों को बदलना एक अपर्याप्त आधार दिखता है। परंतु यथास्थिति बनाए रखना भी सही प्रतीत नहीं होगा, अंत: सशस्त्र बलों को सिद्धांतों, संरचनाओं और उपकरणों को बदलने के साथ बदलते युग के अंतर्गत आगे बढ़ने की जरूरत हैं।
  • पीएलए की युद्ध अवधारणा: हाल के कुछ वर्षों में पीएलए द्वारा अंतरराष्ट्रीय  संरचनाओं से टकराव, उसके विनियमों का विनाश और उसके द्वारा बहु-डोमेन सटीक युद्ध की प्रवृति को 21वीं सदी के युद्ध मोड के रूप में देखा जाना आवश्यक हैं। दरअसल पीएलए का मानना ​​है कि एक बार जब किसी दुश्मन के  परिचालन सिस्टम काम नहीं कर पाते हैं, तो दुश्मन "प्रतिरोध करने की इच्छा और क्षमता खो देता है", यथा युद्ध के माध्यम से संरचनाओं का विनाश जीत के सिद्धांत का मुख्य केंद्र होता है।

युद्धक्षेत्र की संभावना

  • चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता: सुमित गांगुली, मनजीत एस परदेसी और विलियम आर थॉम्पसन द्वारा लिखित "चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता" में उल्लेख किया गया है कि सैन्य आधुनिकीकरण में चीन भारत से तीन से पाँच गुना आगे है। हालांकि चीन तकनीक और सेन्सर जैसे क्षेत्रों में इतना भी आगे नहीं बढ़ पाया ही कि भारत को आसानी से मुश्किल हालात में डाल पाए।
  • चीन का उपग्रह बेड़ा: चीन ने अपने उपग्रह बेड़े का तेज़ी से विस्तार किया है, जिसमें 600 से अधिक उपग्रह हैं, जिनमें 360 से अधिक खुफिया, निगरानी या टोही (आईएसआर) के लिए हैं। ये उपग्रह निष्क्रिय और सक्रिय सेंसर प्रणाली के माध्यम से युद्धक्षेत्र की प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएँ: चीन की अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (ईडब्ल्यू) क्षमताएँ, हाल ही में अमेरिकी सेना के साथ मुठभेड़ में प्रदर्शित हुईं, एआई और क्वांटम प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करते हुए चीन ने बहु-डोमेन परिचालन रणनीति में काफी प्रगति को रेखांकित करती हैं।

भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन तत्परता

  • सीमा प्रबंधन: भारतीय सशस्त्र बलों के लिए परिचालन तत्परता सर्वोपरि है, जिसमें रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संतुलित युद्ध क्षमताओं को बनाए रखने और प्रशिक्षित करने की क्षमता शामिल है। सीमा प्रबंधन के मुख्य केंद्र बिन्दु के रूप में विवादित सीमाओं, जैसे कि LOC और LAC का शांति-समय प्रबंधन, मुख्य चिंता का विषय है।
  • LOC की गतिशीलता: LOC पाकिस्तान के साथ एक वास्तविक सीमा के रूप में कार्य करती है, जहाँ युद्धविराम उल्लंघन और आतंकवादी घुसपैठ आम बात है। जम्मू और कश्मीर पाकिस्तान के लिए एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर तनाव और छद्म युद्ध देखे जाते हैं।
  •  चीन के साथ LAC: 2020 के बाद की घुसपैठ के कारण चीन को अविश्वास के दृष्टिकोण से देखा जाना आवश्यक हो गया हैं, मुख्यत: LAC में पर्याप्त भारतीय सेना की तैनाती आवश्यक हो गई है। जम्मू और कश्मीर में आंतरिक सुरक्षा का माहौल भी खराब हो गया है, जिसमें मुख्य तौर पर अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना द्वारा छोड़े गए हथियारों का उपयोग पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवादी गतिविधियाँ देखी जा रही है। ये घटनाक्रम जनशक्ति और परिचालन प्रतिबद्धताओं के गतिशील पुनर्मूल्यांकन की मांग करते हैं।

संरचनात्मक और संगठनात्मक कठोरता

  •  लचीलेपन की आवश्यकता: इसके अंतर्गत सेना के भीतर संरचनात्मक और संगठनात्मक कठोरता को कम करना आवश्यक है।(यथा बजट के अनुसार तीनों सेनाओं में सामंजस्य के साथ अवसंरचनाओं का आदान प्रदान करते हुए कार्य करने की जरूरत) विदित है कि युद्ध के मैदान की पारदर्शिता और मारक क्षमता में प्रगति के बावजूद, स्वतंत्रता के बाद से युद्ध स्थापना तालिकाएँ (WET- WAR ESTABLISHMENT TABLE) काफी हद तक अपरिवर्तित रही हैं, जिस पर कार्य करने की जरूरत हैं।
  • क्षेत्रीय विशेषज्ञता: संचालन कार्यों के आधार पर गतिशीलता, क्षेत्रीय विशेषज्ञता और बलों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। आंतरिक मूल्यांकन में जनशक्ति की कमी को दूर करने और इकाइयों को फिर से तैयार करने एवं फिर से प्रशिक्षित करने के लिए पर्याप्त शांति अवधि सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

गुणात्मक परिवर्तन

  • क्षमता को बढ़ाया जाना : गुणात्मक परिवर्तन में मौजूदा क्षमताओं को बेहतर लोगों के साथ बदलना, मारक क्षमता, सटीकता, युद्धक्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ाना और एक डिजिटल बैकबोन नेटवर्क स्थापित करना शामिल है। इस परिवर्तन को युद्ध की अवधारणाओं के साथ समायोजित करना चाहिए, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सामरिक इकाइयाँ, संरचनाएँ, सेंसर, शूटर और कमांड और कंट्रोल सिस्टम आपस में जुड़े हुए हो।
  • प्राथमिकता गुणात्मक परिवर्तन: यह युद्ध की अवधारणाओं के अनुरूप होनी चाहिए, कि तकनीकी सेवन के पोस्टमार्टम के रूप में।

सिस्टम विनाश के खतरों को संबोधित करना

  •  रक्षात्मक उपाय: परिवर्तन के अंतर्गत मिसाइलों, रॉकेटों, EW, लोइटरिंग गोला-बारूद, ड्रोन और निर्देशित ऊर्जा हथियारों का उपयोग करके संरचनात्मक विनाश के खतरे को संबोधित करना चाहिए। साथ ही मिसाइल रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक प्रतिवाद, डिकॉय, मिसाइल दृष्टिकोण चेतावनी प्रणाली, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और विमान-रोधी बंदूकें सहित हार्ड और सॉफ्ट किल सिस्टम की आवश्यकता हैं।
  • साइबर सुरक्षा साइबर प्रतिवाद: सुरक्षित संचार प्रोटोकॉल और साइबर सुरक्षा उपाय सुरक्षा को बढ़ाने और खतरों से निपटने में काफी सहायक प्रतीत होंगे। कई एजेंसियों के बीच समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें क्षेत्रीय युद्धों पर लगाम लगाया जाना संभव हो पाए।

निष्कर्ष

सैन्य परिवर्तन एक सतत प्रगति है जिसमें नई युद्ध अवधारणाएँ, सिद्धांत, प्रक्रियाएँ, क्षमताएँ, संगठन, तकनीक और प्रशिक्षित कार्मिक कार्यक्रम शामिल हैं। जबकि कुछ कार्यक्षेत्रों में अंतराल को कम करने और बेहतर क्षमताएँ विकसित करने के लिए पुनर्रचना या आधुनिकीकरण की आवश्यकता है, वहीं अन्य को भविष्य की रणनीतिक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए गहन परिवर्तनों की। मुख्य रूप से भारतीय सशस्त्र बलों को गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तनों को संतुलित करने के साथ, परिचालन तत्परता, संरचनात्मक लचीलापन और भविष्य के संघर्षों में वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए उन्नत तकनीकों का एकीकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता हैं।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

1.    सैन्य आधुनिकीकरण और परिवर्तन के बीच का अंतर भारतीय सशस्त्र बलों की रणनीतिक योजना और परिचालन तत्परता को कैसे प्रभावित करता है, विशेष रूप से विकसित हो रही चीन-भारतीय प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए  ?

2.    सिस्टम विनाश के खतरों से उत्पन्न चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने और अपने युद्ध अवधारणाओं में उन्नत प्रौद्योगिकियों के निर्बाध एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना के भीतर कौन से प्रमुख संरचनात्मक और संगठनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं?

स्रोत- VIF