सन्दर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। यह ऐतिहासिक फैसला असम में रहने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देता है और इस बात पर जोर देता है कि यह कानून प्रस्तावना में वर्णित भाईचारे के मूल्य के अनुरूप है।
· यह फैसला एक याचिकाकर्ता एनजीओ द्वारा उठाई गई चिंताओं के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि धारा 6ए असमिया लोगों के अपनी राजनीतिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के अधिकारों को खतरे में डालती है, जिससे जनसांख्यिकीय परिदृश्य में संभावित बदलाव आ सकता है।
1. संवैधानिक वैधता की पुनः पुष्टि:
o न्यायालय ने इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि धारा 6ए संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं करती है, जोकि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की अंतिम तिथि 26 जनवरी, 1950 निर्धारित करते हैं।
o इसने स्पष्ट किया कि धारा 6ए अलग से संचालित होती है तथा इसकी कट-ऑफ तिथि 25 मार्च, 1971 है, जोकि बांग्लादेशी राष्ट्रवादी आंदोलन के विरुद्ध पाकिस्तानी सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सर्चलाइट के ऐतिहासिक संदर्भ द्वारा उचित है।
2. सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा:
o न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि धारा 6ए असमिया लोगों की अपनी संस्कृति की रक्षा करने की क्षमता से समझौता करती है। इसने जोर देकर कहा कि मौजूदा संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान असम के सांस्कृतिक और भाषाई हितों की पर्याप्त सुरक्षा करते हैं।
3. संसदीय प्राधिकार:
o निर्णय में इस बात की पुष्टि की गई कि संसद ने अनुच्छेद 246 और संघ सूची की प्रविष्टि 17 से प्राप्त शक्तियों के आधार पर धारा 6ए को अधिनियमित किया है, जोकि नागरिकता, प्राकृतिककरण और विदेशियों से संबंधित है।
o न्यायालय ने माना कि असम में प्रवासियों की स्थिति इतनी विशेष है कि धारा 6ए के प्रावधानों को लागू करना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
4. प्रवासन चुनौतियों की पहचान:
o न्यायालय ने बांग्लादेश से चल रहे प्रवासन को असम पर भार के रूप में स्वीकार किया। फिर भी, इसने जोर देकर कहा कि एक राष्ट्र सतत विकास और समान संसाधन वितरण को आगे बढ़ाते हुए अप्रवासियों और शरणार्थियों दोनों को समायोजित कर सकता है।
5. जवाबदेही का स्पष्टीकरण:
o फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि धारा 6ए को वर्तमान जनसांख्यिकीय स्थिति के लिए अकेले जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए; 1971 के बाद के आप्रवासियों का समय पर पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने में सरकार की विफलता एक महत्वपूर्ण कारक थी।
6. मौजूदा व्यवस्थाओं की आलोचना:
o न्यायालय ने असम में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के लिए जिम्मेदार मौजूदा तंत्र और न्यायाधिकरणों की आलोचना की और कहा कि वे अपर्याप्त हैं।
7. निगरानी की आवश्यकता:
o न्यायालय ने आव्रजन और नागरिकता कानूनों के क्रियान्वयन में न्यायिक निगरानी का आह्वान किया तथा सुझाव दिया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश असम में इनके क्रियान्वयन की निगरानी के लिए एक पीठ की स्थापना करें।
8. असहमतिपूर्ण राय: न्यायमूर्ति पारदीवाला की असहमतिपूर्ण राय ने धारा 6ए के दो प्रमुख उद्देश्यों को रेखांकित किया—असम के लोगों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाना और क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण।
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A को समझना:
· इसे वर्ष 1985 के असम समझौते के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1985 के भाग के रूप में अधिनियमित किया गया था। जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध अप्रवास के मुद्दे को संबोधित करना था। यह प्रावधान 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।
· 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले लोग कुछ प्रक्रियाओं और शर्तों को पूरा करने के बाद नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। यह 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आने वाले अप्रवासियों को नागरिकता देने से इनकार करता है।
असम समझौता:
· असम समझौता केंद्र सरकार, असम राज्य सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता है। इसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के आने पर रोक लगाना था।
· यह प्रावधान 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का आदेश देता है, जोकि बांग्लादेश के निर्माण का प्रतीक है। धारा 6A को शामिल करना इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान असम की अनूठी ऐतिहासिक और जनसांख्यिकीय चुनौतियों को दर्शाता है।
1. आप्रवासियों को मान्यता:
o धारा 6A को बरकरार रखते हुए, यह निर्णय 25 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी आप्रवासियों के लिए कानूनी सुरक्षा और नागरिकता के अधिकार सुनिश्चित करता है तथा बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान विस्थापित लोगों की सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।
2. असमिया पहचान का संरक्षण: बहुमत की राय इस धारणा को चुनौती देती है कि आप्रवासियों की उपस्थिति स्वाभाविक रूप से असमिया लोगों के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों के लिए खतरा है।
· मौजूदा संवैधानिक सुरक्षा उपाय (अनुच्छेद 29(1)) असमिया समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते हैं, जिससे उन्हें संभावित जनसांख्यिकीय बदलावों के बावजूद अपनी पहचान बनाए रखने की अनुमति मिलती है।
3. संसाधन वितरण: अप्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र मानने से असम के पहले से ही सीमित आर्थिक संसाधनों पर दबाव और बढ़ सकता है। नीति निर्माताओं को संसाधनों का समान आवंटन सुनिश्चित करने और आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए अधिक प्रभावी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता हो सकती है।
4. बांग्लादेश संबंधों पर प्रभाव: 1971 के बाद के अप्रवासियों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता न देकर, यह निर्णय बांग्लादेश के साथ राजनयिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि ऐसा लग सकता है कि भारत इन अप्रवासियों की जिम्मेदारी अपने पड़ोसी पर डाल रहा है। यह स्थिति सीमा प्रबंधन, प्रवासन नियंत्रण और सुरक्षा मुद्दों पर क्षेत्रीय सहयोग को जटिल बना सकती है।
5. जनसांख्यिकीय चिंताएँ: आलोचकों का तर्क है कि निरंतर आप्रवासन असम के जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिससे इसकी सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक संसाधन संभावित रूप से खतरे में पड़ सकते हैं। इससे सख्त आप्रवासन नियंत्रण और सांस्कृतिक संरक्षण पर केंद्रित राजनीतिक लामबंदी के लिए स्थानीय मांगें बढ़ सकती हैं।
6. आव्रजन कानून प्रवर्तन: इस निर्णय में आव्रजन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है, विशेष रूप से 1971 की निर्धारित तिथि के बाद आने वाले अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन के संबंध में।
निष्कर्ष:
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत में आव्रजन, पहचान और संस्कृति संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर चल रही बहस में एक अहम कदम है। यह फैसला नागरिकता से जुड़े नियमों को और मजबूत करता है और आव्रजन के मामले में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत को भी रेखांकित करता है। जैसे-जैसे भारत प्रवास और पहचान की जटिलताओं से निपट रहा है, यह निर्णय भविष्य में नागरिकता और सामाजिक न्याय पर होने वाली चर्चाओं को प्रभावित करेगा, जोकि मानवीय संवेदनाओं और विविध सांस्कृतिक परिदृश्य के संरक्षण में देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न: नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के असम की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान के संदर्भ में निहितार्थों पर चर्चा करें। यह फैसला अप्रवासियों के अधिकारों और स्थानीय आबादी की चिंताओं के बीच किस तरह संतुलन स्थापित करता है? |