संदर्भ:
● 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है । यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है जो भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक प्रमुख शैली है। यह शैली अपने सुंदर और भव्य वास्तुकला के लिए जानी जाती है।
● राम की कहानी न केवल भारत के भीतर गूंजती है बल्कि एशिया के लाओस, कंबोडिया और थाईलैंड से लेकर दक्षिण अमेरिका के गुयाना एवं अफ्रीका के मॉरीशस तक अपना प्रभाव फैलाती है। रामायण की लोकप्रियता विश्व भर में है, जो इसकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता को दर्शाती है।
राम मंदिर की विशिष्टता:
● पारंपरिक वास्तुकला और निर्माण: पारंपरिक नागर शैली में निर्मित 3 मंजिला राम मंदिर का निर्माण मिर्ज़ापुर और बंसी-पहाड़पुर (राजस्थान) की पहाड़ियों से प्राप्त गुलाबी बलुआ पत्थर से किया गया है। मंदिर की वास्तुशिल्प शैली में निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल हैं:
○ त्रिकोणीय स्वरूप: मंदिर का स्वरूप एक त्रिभुज के समान है जो हिंदू धर्म में पवित्रता और शक्ति का प्रतीक है।
○ शिखर: मंदिर की छत पर एक विशाल शिखर है जो इसकी ऊंचाई और भव्यता को दर्शाता है।
○ स्तंभ: मंदिर में 390 स्तंभ हैं जो इसकी स्थिरता और शक्ति को बढ़ाते हैं। स्तंभों को विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं के चित्रों से सजाया गया है।
○ मंडप: मंदिर में 5 मंडप हैं जिनका उपयोग पूजा, समारोहों और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है। मंडपों को विभिन्न हिंदू धार्मिक विषयों के चित्रों से सजाया गया है।
● मंदिर के आयाम:71 एकड़ में फैला विशाल परिसर वास्तुशिल्प कौशल का अनूठा नमूना है। 250 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊँचा मुख्य मंदिर क्षेत्र 2.67 एकड़ में फैला है। उल्लेखनीय विशेषताओं में 390 स्तंभ, 46 द्वार और 5 मंडप शामिल हैं।
● अंदर की अनूठी विशेषताएं: मंदिर के भीतर, मुख्य गर्भ गृह में राम लला की मूर्ति हैं, जो रंग मंडप और नृत्य मंडप जैसे विभिन्न मंडपों से परिपूर्ण हैं।
● अभिनव अभिषेक परम्परा: हर राम नवमी को दोपहर के समय एक विशिष्ट परंपरा शुरू होती है जहां दर्पण और लेंस सूर्य की किरणों को राम लला की मूर्ति पर केंद्रित करते हैं। इस अनोखे अभिषेक अनुष्ठान के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती, इसमें लोहे या स्टील के बजाय पीतल का उपयोग किया जाता है।
● मूर्तिकार का योगदान: मैसूरु के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा तैयार की गई राम लला की मूर्ति 51 इंच की है ।
● स्थायित्व और प्रतीकवाद: उल्लेखनीय रूप से मंदिर के निर्माण में किसी भी लोहे को शामिल नहीं किया गया है जो कम से कम एक सहस्राब्दी तक बने रहने वाले डिजाइन के साथ स्थायित्व पर जोर देता है।
शैलियाँ: भारतीय स्थापत्य कला व शिल्पशास्त्रों के अनुसार मंदिरों विशेषत: हिंदू मंदिरों की तीन मुख्य शैलियाँ हैं: ● नागर शैली : मुख्यत: उत्तर भारतीय शैली ● द्रविड़ शैली : मुख्यत: दक्षिण भारतीय शैली ● वेसर शैली : नागर-द्रविड़ मिश्रित मुख्यत: दक्षिण-पश्चिमी भारतीय शैली
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नागर शैली मंदिर वास्तुकला
उद्गम काल: नागर शैली मंदिर वास्तुकला का उद्गम उत्तरी भारत में लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त काल के अंत में हुआ था। लगभग उसी समय दक्षिणी भारत में द्रविड़ शैली का भी विकास हुआ।
नागर शैली की विशेषताएं:
● अधिष्ठान : नागर शैली के मंदिरों का आधार एक ऊंचा चबूतरा होता है जो भवन को गरिमा प्रदान करता है।
● गर्भगृह: देवता की मूर्ति को समाहित करने वाला गर्भगृह मंदिर का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।
● शिखर: पहाड़ की चोटी के समान ऊंचा और विशाल शिखर गर्भगृह के ऊपर स्थित होता है और हिंदू परंपरा में प्राकृतिक और ब्रह्म वैज्ञानिक व्यवस्था का प्रतीक है।
● प्रदक्षिणा पथ: मंदिर परिसर में प्रायः गर्भगृह के चारों ओर घूमने के लिए एक परिक्रमा पथ होता है।
● मंडप: गर्भगृह के समक्ष एक या अधिक मंडप (हॉल) होते हैं, जिनका उपयोग सभाओं और समारोहों के लिए किया जाता है।
● मूर्तिकला और चित्रकारी: नागर शैली के मंदिरों की दीवारों पर प्रायः विस्तृत भित्ति चित्र और नक्काशी देखने को मिलती है, जो उनकी दृश्य समृद्धि और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाते हैं।
नोट - प्रारंभिक ग्रंथों में वर्णित बीस प्रकार के मंदिरों में मेरु, मंदरा और कैलास पहले तीन नाम हैं। मान्यता है की ये तीनों उस पर्वत के नाम हैं जो विश्व की धुरी है। |
नागर वास्तुकला के पांच रूप:
1. वल्लभी:
नागर वास्तुकला का वल्लभी रूप मूल रूप से लकड़ी की छत वाली संरचना का एक ठोस रूप था जो बौद्ध मंदिरों के प्रार्थना कक्षों से मिलता-जुलता था। समय के साथ यह विकसित होकर बहु-छज्जों वाले मीनारों का एक औपचारिक संस्करण बन गया। इस शैली में अक्सर स्लैबों को ऊपर-ऊपर रखकर एक विशिष्ट स्थापत्य रूप बनाया जाता है।
फाम्साना शैली:
फाम्साना शैली को बहु-छज्जों वाले मीनारों के औपचारिक स्वरूप द्वारा पहचाना जाता है, जिसमें स्लैबों को ऊपर-ऊपर रखकर विशिष्ट स्थापत्य रूप बनाया जाता है। यह शैली प्रारंभिक नागर शैली से जुड़ी हुई है और वल्लभी शैली के विकास का अगला चरण दर्शाती है
लटिना शैली:
लटिना शैली एक ऐसे शिखर को दर्शाती है जो एकल, हल्के घुमावदार टॉवर के रूप में होती है जिसकी सभी भुजाओं की लंबाई समान होती है। गुप्त काल में उत्पन्न इस शैली ने सातवीं शताब्दी के प्रारंभ तक पूर्णता प्राप्त की और बाद में पूरे उत्तरी भारत में फैल गई। यह शैली तीन शताब्दियों तक नागर शैली मंदिर वास्तुकला की प्रमुख शैली बनी रही ।
शेखारी शैली: लघु शिखरों का मनोरम सजावट
● शेखारी शैली में, शिखर की प्रमुख आकृति का अनुकरण करते हुए छोटे-छोटे उप-शिखर या शिखरिकाएँ जुड़ी होती हैं। ये अतिरिक्त तत्व शिखर के अधिकांश भाग तक फैल सकते हैं और आकार में भिन्न हो सकते हैं जिससे समग्र वास्तुशिल्प रचना में विविधता आती है।
भूमिजा:
भूमिजा शैली की विशेषता क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर पंक्तियों में व्यवस्थित लघु शिखर हैं, जो शिखरों का एक ग्रिड जैसा पैटर्न बनाते हैं। शिखर स्वयं एक पिरामिड आकार की ओर बढ़ता है, जिससे लैटिना शैली की वक्रता कम प्रमुख हो जाती है। यह स्थापत्य शैली दसवीं शताब्दी में मिश्रित लटिना शैली से और उसके बाद नागर वास्तुकला में उभरी।
द्रविड़ शैली से तुलना
मंदिरों की नागर व द्रविड शैलियों में सामान्य अन्तर:
क्र.सं. |
नागर शैली |
द्रविड़ शैली |
1 |
वर्गाकार आधार पर निर्मित |
आयताकार आधार पर निर्मित |
2 |
शिखर की संरचना पर्वतश्रृंग के समान |
शिखर की संरचना प्रिज्म या पिरामिड के समान |
3 |
शिखर के साथ उपशिखर की ऊर्ध्व-रैखिक परम्परा |
शिखर का क्षैतिज विभाजन और शिखर पर भी मूर्तियों की परम्परा |
4 |
शिखर के शीर्ष भाग पर ऊर्ध्व-रैखिक आमलक एवं उसके ऊपर कलश |
शिखर के शीर्ष भाग पर कलश की जगह बेलनाकार व एक ओर से अर्धचंद्राकार संरचना एवं उसके ऊपर अनेक कलशवत् स्तूपिकाएं |
5 |
शिखर सामान्यतः एक-मंजिले |
शिखर सामान्यतः बहु-मंजिले |
6 |
गर्भगृह के सामने मण्डप व अर्द्धमण्डप |
गर्भगृह के सामने मण्डप आवश्यक नहीं, प्रायः शिखरविहीन मंडप, चावड़ी या चौलत्री के रूप में स्तंभ युक्त महाकक्ष |
7 |
द्वार के रूप में सामान्यतः तोरण द्वार |
द्वार के रूप में सामान्यतः विशाल गोपुरम् |
8 |
मंदिर का सामान्य परिसर |
मंदिर का विशाल प्रांगण |
9 |
परिसर में जलाशय आवश्यक नहीं |
परिसर में कल्याणी या पुष्करिणी के रूप में जलाशय |
10 |
मंदिर प्रांगण में पृथक दीप स्तंभ व ध्वज स्तंभ का भी विधान नहीं |
प्रायः मंदिर प्रांगण में विशाल दीप स्तंभ व ध्वज स्तंभ का भी विधान |
11 |
सामान्यतः द्रविड़ शैली की तुलना में कम ऊँचाई |
सामान्यतः नागऱ शैली की तुलना में अधिक ऊँचाई |
वेसर शैली-
● नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर शैली की संज्ञा दी गई है। वेसर शब्द कन्नड़ भाषा के 'वेशर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- रूप।
● नवीन प्रकार की रूप-आकृति होने के कारण इसे वेशर शैली कहा गया, जो भाषांतर होने पर वेसर या बेसर बन गया।
● यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर जैसा होता है। इस शैली के मंदिरों की संख्या सबसे कम है। इस शैली के मंदिर विन्ध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं। कर्नाटक व महाराष्ट्र इन मंदिरों के केंद्र माने जाते हैं। विशेषत: राष्ट्रकूट, होयसल व चालुक्य वंशीय कतिपय मंदिर इसी शैली में हैं।
निष्कर्ष
● अयोध्या का राम मंदिर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, स्थापत्य और आर्थिक केंद्र है। मंदिर हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक है, जो भगवान राम के जीवन और कार्यों को याद दिलाता है। मंदिर हिंदू धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को भी दर्शाता है, जैसे कि प्रेम, करुणा, और न्याय।
● जबकि मंदिर नागर शैली की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है, जो इसकी सुंदरता और भव्यता को बढ़ाता है।
● इसी प्रकार यह मंदिर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र बनने की क्षमता रखता है। मंदिर का निर्माण और संचालन लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करेगा। मंदिर के एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बनने की संभावना है जो भारत के आर्थिक विकास में योगदान देगा।
Source – The Indian Express