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Daily-current-affairs / 30 Apr 2024

वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 का आकलन - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

  • विगत 19 फरवरी, 2024 के उच्चतम न्यायलय के आदेश के अनुपालन में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने अप्रैल में अपनी वेबसाइट पर विभिन्न राज्य विशेषज्ञ समिति (SEC) की रिपोर्ट अपलोड की थी। यह अंतरिम आदेश वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका के प्रत्युत्तर में था। याचिका में गैर-वर्गीकृत वनों की स्थिति, जिनकी पहचान SEC रिपोर्टों द्वारा की जानी थी, ज्ञात नहीं थी या उनकी पहचान नहीं की गई थी।

वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 भारत में, वन संरक्षण से संबंधित कानूनी ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। इसके अधिनियमन के साथ ही, गैर-वर्गीकृत वन, जिन्हें पहले ऐतिहासिक टी एन गोदावर्मन थिरुमलपाद (1996) मामले के तहत कानूनी सुरक्षा प्राप्त थी, इस सुरक्षा को खोने का खतरा है। इसलिए, यह संशोधन भारत के वन पारिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिक सुरक्षा संबंधी तथ्यों पर गहरा प्रभाव डालता है।
  • यदि कोई परियोजना प्रस्तावक गैर-वन उपयोग के लिए भूमि का उपयोग करना चाहता है, तो उस सन्दर्भ में FCAA यह निर्देशित करता है, कि गैरवर्गीकृत वनों, जिन्हें डीम्ड वनों के रूप में भी जाना जाता है, को केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी हालांकि, इस संशोधन का प्रवर्तन राज्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा वर्गीकृत वनों की पहचान और दस्तावेजीकरण पर निर्भर करता है (SECs) इन समितियों को वर्गीकृत वनों का परिसीमन और मूल्यांकन करने का काम सौंपा गया था, जिससे संशोधित अधिनियम के तहत उनकी कानूनी स्थिति और संरक्षण का निर्धारण किया जा सके।

संशोधित अधिनियम की आलोचना:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 के पीछे कथित तौर पर भले ही अच्छे इरादे रहे हों, लेकिन इसे व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा है, विशेषतः वन संरक्षण और प्रबंधन पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर। इसके प्राथमिक आलोचनाओं में से एक यह है, कि यह 1996 के गोदावरमन मामले में दिए गए निर्णय द्वारा स्थापित वर्गीकृत वनों को प्राप्त संरक्षण को कमजोर कर सकता है।
  • संशोधन के विरोधी तर्क देते हैं, कि बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के वर्गीकृत वनों को संभावित हनन के अधीन करके, FCAA दशकों के संरक्षण प्रयासों को कमजोर करता है और भारत की समृद्ध जैव विविधता को खतरे में डाल सकता है। इसके अलावा, राज्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा वर्गीकृत वनों की पहचान और दस्तावेजीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं।

गैर-वर्गीकृत वनों की पहचान:

  • वर्तमान में राज्य विशेषज्ञ समितियों (SEC) द्वारा गैर-वर्गीकृत वनों की पहचान और प्रलेखन महत्वपूर्ण चुनौतियों और कमियों से प्रभावित हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और इस कार्य की अनिवार्य प्रकृति के बावजूद, किसी भी राज्य ने वर्गीकृत वनों की पहचान, स्थिति और स्थान पर सत्यापन योग्य डेटा प्रदान नहीं किया है।
  • इसके अलावा, गोवा, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित सात राज्य और केंद्र शासित प्रदेश SEC का पूरी तरह से गठन करने में विफल रहे हैं। जिन राज्यों ने अपनी रिपोर्ट साझा की है, उनमें से 23 में से केवल 17 को अदालत के निर्देशों के अनुरूप माना जाता है, जो उक्त प्रक्रिया में व्यापक गैर-अनुपालन और अपर्याप्तताओं को उजागर करता है।

SEC रिपोर्टों में अपर्याप्तताएँ:

  • SEC की रिपोर्ट, जाँच करने पर, उनकी विश्वसनीयता और सटीकता सहित, कई अपर्याप्तताओं और कमियों को प्रकट करती है। इस सन्दर्भ में कई राज्यों ने केवल आंशिक या अपूर्ण डेटा प्रदान किया है, जो गैर-वर्गीकृत वनों के विस्तार और सीमाओं को प्रभावी ढंग से चित्रित करने में विफल रहे हैं।
  • इसके अलावा, भौगोलिक जानकारी और जमीनी स्तर पर सत्यापन की कमी, इन रिपोर्टों की विश्वसनीयता को और भी कम करती है। पुराने या अधूरे अभिलेखों पर निर्भरता; भौतिक सर्वेक्षणों की अनुपस्थिति के साथ प्रस्तुत किए गए आंकड़ों की प्रामाणिकता और व्यापकता को संदेहास्पद बनाती है।

संभावित पर्यावरणीय प्रभाव:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 के अधिनियमन के साथ-साथ वर्गीकृत वनों की शीघ्रता  में अपूर्ण पहचान, महत्वपूर्ण पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करती है। गैर-वर्गीकृत वनों के लिए कानूनी संरक्षण के नुकसान से गैर-वन उद्देश्यों के लिए उनका उपयोग बढ़ सकता है, जिससे वनों की कटाई और प्राकृतिक आवासों का विनाश बढ़ जाएगा।
  • इसके अलावा, सटीक आधारभूत आंकड़ों और निगरानी तंत्र की कमी, वनों के नुकसान और इसके पारिस्थितिक प्रभावों की सीमा का आकलन करने के प्रयासों में बाधा डालती है। गोदावरमन निर्णय और भारतीय वन नीति में उल्लिखित सिद्धांतों को बनाए रखने में विफलता भारत के जैव विविधता संरक्षण लक्ष्यों और पारिस्थितिक स्थिरता को खतरे में डालती है।

उचित कार्रवाई और जवाबदेही का आह्वान:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 के अधिनियमन के साथ वर्गीकृत वनों की पहचान और प्रलेखन में कमियां, उपचारात्मक कार्रवाई और जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और राज्य सरकारों सहित जिम्मेदार अधिकारियों को प्रक्रिया में खामियों और कमियों के समाधान के लिए समुचित प्रयास किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा, SEC रिपोर्टों में खामियों का पुनर्मूल्यांकन और सुधार करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, जिससे गैर-वर्गीकृत वनों का व्यापक और सटीक प्रलेखन सुनिश्चित किया जा सके। इसमें भौतिक सर्वेक्षण करना, सीमाओं का सीमांकन करना और वन संरक्षण तथा प्रबंधन के लिए एक विश्वसनीय आधार रेखा स्थापित करने के लिए जमीनी आकलन के माध्यम से डेटा का सत्यापन करना शामिल है।

निष्कर्ष:

  • निष्कर्षतः, गैर-वर्गीकृत वनों की पहचान और संरक्षण स्थायी वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण की दिशा में भारत के प्रयासों का अभिन्न अंग है। वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023, जिसका उद्देश्य वन प्रशासन को सुव्यवस्थित करना है, ने वन पारिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिक सुरक्षा पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों को लेकर महत्वपूर्ण चिंताएं जताई हैं।
  • उपर्युक्त समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारी एजेंसियों, पर्यावरण हितधारकों और नागरिक समाज संगठनों को शामिल करते हुए एक सहयोगी और ठोस प्रयास की आवश्यकता है। पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी सुरक्षा उपायों का पालन सुनिश्चित करके, भारत आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी समृद्ध प्राकृतिक विरासत की रक्षा करते हुए अपने वन संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास कर सकता है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

  1. भारत में गैर-वर्गीकृत वनों की सुरक्षा पर वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA) 2023 के निहितार्थों पर चर्चा करें। संशोधन के विरुद्ध आलोचनाओं और इसके संभावित पर्यावरणीय परिणामों पर प्रकाश डालें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेशित राज्य विशेषज्ञ समितियों (एसईसी) द्वारा गैर-वर्गीकृत वनों की पहचान और दस्तावेज़ीकरण में चुनौतियों और कमियों का मूल्यांकन करें। भारत के जैव विविधता संरक्षण प्रयासों पर अपर्याप्त वन पहचान के संभावित प्रभावों का आकलन करें। (15 अंक, 250 शब्द)

 

स्रोत- हिंदू