संदर्भ:
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में ट्रेन की टक्कर से 36 हाथियों की मौतें दर्ज की गई हैं और राज्य के रेलवे ट्रैक पर एवं उसके आस-पास हाथियों की मौत की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह लेख चर्चा करता है कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग भारत में हाथियों को बचाने के लिए किया जा सकता
भारत में हाथियों की स्थिति
हाथी भारत की एक मुख्य प्रजाति है और इसे भारत के प्राकृतिक धरोहर पशु के रूप में नामित किया गया है। भारत में हाथियों की संख्या 25,000 से 30,000 के बीच है, जिसके कारण इस प्रजाति को "संकटग्रस्त" घोषित किया गया है। आज इनका विचरण क्षेत्र पहले के मुकाबले केवल 3.5% रह गया है, जो अब हिमालय की तलहटी, उत्तर-पूर्व, मध्य भारत के कुछ जंगलों और पश्चिमी और पूर्वी घाटों के पहाड़ी जंगलों तक ही सीमित है। कर्नाटक देश में इन हाथियों की सबसे अधिक संख्या वाला राज्य है।
संरक्षण की स्थिति
हाथियों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संरक्षण स्थितियों के तहत संरक्षित किया गया है:
- वन्य जीव प्रवासीय प्रजाति सम्मेलन (CMS): परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I में शामिल
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) रेड लिस्ट:
- एशियाई हाथी: लुप्तप्राय
- अफ्रीकी वन हाथी: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- अफ्रीकी सवाना हाथी: लुप्तप्राय
- एशियाई हाथी: लुप्तप्राय
भारत में हाथियों के संरक्षण से जुड़ी चुनौतियां
● आवास विखंडन
भारत में हाथियों की आबादी के लिए एक गंभीर खतरा आवास विखंडन है । विशाल वन क्षेत्रों को मानव बस्तियों, कृषि भूमि और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं द्वारा छोटे-छोटे व अलग-अलग टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है। ये खंडित आवास, हाथियों के लिए कुछ भरण-पोषण प्रदान करते हुए, उनके आवागमन पैटर्न और महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच को प्रतिबंधित करते हैं। यह विखंडन प्रजनन विकल्पों को भी सीमित करता है, जिससे लंबे समय तक आनुवंशिक अड़चनें उत्पन्न होती हैं और झुंड की तंदुरुस्ती में कमी आती है।
● हाथी गलियारा व्यवधान और बुनियादी ढांचे के जोखिम
हाथियों का अपने आवास क्षेत्रों के बीच बार-बार आना-जाना उन्हें सड़कों और रेलवे लाइनों के संपर्क में लाता है। एक मादा हाथी का क्षेत्र लगभग 500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ होता है, और विखंडित आवासों के युग में इतनी दूरी तय करने पर सड़क या रेलवे क्रॉसिंग की संभावना बहुत अधिक हो जाती है।
सौभाग्य से, सभी हाथी के रास्ते ये खतरे पैदा नहीं करते हैं। बांदीपुर, मुदुमलाई और वायनाड के हाथी मौसमी ग्रीष्मकालीन प्रवास पर जाते हैं। वे पानी और हरी घास दोनों के लिए काबिनी बांध के बैकवाटर की ओर जाते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि तमिलनाडु और केरल के बीच हाथियों के 18 रास्ते हैं।
● मानव-हाथी संघर्ष
संसाधनों के लिए मनुष्यों और हाथियों के बीच प्रतिस्पर्धा एक और महत्वपूर्ण चुनौती है। जलवायु परिवर्तन जैसे कारक इस प्रतिस्पर्धा को संसाधन उपलब्धता को प्रभावित करके बढ़ा सकते हैं। जैसे-जैसे संसाधन कम होते जाते हैं, हाथी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए फसलों को चारे के स्थान पर उपयोग करने लगते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक नुकसान हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, शिकार और आवास विनाश जैसी मानवीय गतिविधियां पारिस्थितिक तंत्रों के भीतर शिकारी-शिकार संतुलन को बाधित करती हैं। यह व्यवधान कुछ शिकार प्रजातियों में जनसंख्या वृद्धि का कारण बन सकता है, हाथियों के साथ संसाधन प्रतिस्पर्धा को और तीव्र कर सकता है और संभावित रूप से फसलों पर हाथियों की निर्भरता और बढ़ सकती है।
हाथी मौतों को कम करने के उपाय
● वन्यजीव गलियारे
वन्यजीव गलियारे एक प्रभावी समाधान हैं जो प्रबंधित भूमि से न्यूनतम मानवीय संपर्क के साथ आवास की सुविधा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में मोतीचूर-चिल्ला कॉरिडोर है, जो कॉर्बेट और राजाजी राष्ट्रीय उद्यानों के बीच हाथियों के आवागमन को सुगम बनाते हैं । यद्यपि मनुष्यों के साथ संघर्ष का हमेशा खतरा उन स्थानों पर सदैव बना रहता है, जहां हाथी कभी-कभी फसलों को खा लेते हैं, या सड़क और रेल की पटरियों को पार कर जाते हैं।
● ट्रेन-पशु टक्करों को कम करना
ट्रेन-पशु टक्कर हाथियों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। कनाडा में किए गए अध्ययनों ने ट्रेन-चालित चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता का पता लगाया है जो चमकती रोशनी और ध्वनियों का उपयोग करके ट्रेनों के करीब आने वाले जानवरों को सचेत करती हैं। कैमरों से एल्क और भालू जैसे बड़े जानवरों में सकारात्मक प्रतिक्रिया दर्ज की गई , जिन्होंने चेतावनी प्रणाली सक्रिय होने के साथ ही पटरियों को जल्दी छोड़ दिया।
हालांकि, इन प्रणालियों की सीमाएं हैं, खासकर सीमित दृश्यता वाले क्षेत्रों जैसे घुमावदार पटरियों में। यहां, श्रव्य चेतावनी महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त, उच्च ट्रेन गति एक जानवर की आने वाली ट्रेन को सुनने की क्षमता में बाधा डाल सकती है।
● ट्रेन की गति नियमन के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के तरीके
जंगलों से गुजरते समय इंजन चालक को कब गति कम करनी चाहिए जहां हाथियों के आवास हैं तथा वहाँ कितनी गति रखनी चाहिए ? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारतीय रेलवे के पास ऑप्टिकल फाइबर केबल्स (ओएफसी) का एक विशाल नेटवर्क है। ये दूरसंचार का समर्थन करते हैं और डेटा प्रदान करते और महत्वपूर्ण रूप से ट्रेन नियंत्रण के लिए संकेत संचारित करते हैं। हाल ही में शुरू की गई गजराज नामक प्रणाली में, इन ओएफसी लाइनों पर जियोफोनिक सेंसर गुजरते हाथियों के गहरे और गुंजायमान कदमों के कंपन को लेने के लिए तैयार किए गए हैं।
● यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित घुसपैठ का पता लगाने वाला सिस्टम सेंसर से डेटा का विश्लेषण करता है, प्रासंगिक विशेषताओं जैसे आवृत्ति घटकों और कंपन की अवधि को निकालता है। यदि हाथी-विशिष्ट कंपन का पता चलता है, तो क्षेत्र में लोकोमोटिव ड्राइवरों को तुरंत एक अलर्ट भेजा जाता है और ट्रेन की गति कम हो जाती है। यह प्रणाली अब उत्तर पश्चिम बंगाल के अलीपुरदुआर क्षेत्र में कार्यशील है, जो अतीत में कई दुखद दुर्घटनाओं का स्थल रहा है।
निष्कर्ष
हाथियों को बचाने के प्रयासों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) एक मजबूत सहयोगी के रूप में तेजी से उभर रही है। जटिल निगरानी और शिकार-रोधी उपायों से लेकर मानव-हाथी द्वंद्व को कम करने तक, एआई अभिनव समाधानों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। हालांकि, सफल कार्यान्वयन के लिए डेटा की उपलब्धता, बुनियादी ढांचे की सीमाओं और नैतिक सवालों जैसी चुनौतियों से पार पाना आवश्यक है।
हाथियों के संरक्षण में एआई का भविष्य आशाजनक है, जिसमें जाल-विरोधी उपाय, बीमारी का पता लगाना और अवैध हाथी दांत के व्यापार को रोकने जैसी संभावनाएं शामिल हैं। परंपरागत संरक्षण विधियों और मजबूत सामुदायिक सहयोग के साथ मिलकर एआई की शक्ति का उपयोग करके, हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहां ये शानदार जीव आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी पर स्वछंद विचरण कर सकते हैं ।
संभावित UPSC मुख्य परीक्षा प्रश्न
प्रश्न 1: दुर्गम वर्षा वन आवासों में संरक्षण प्रयासों के लिए प्रतिक्रिया समय कम करने और अवैध शिकार की घटनाओं को रोकने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और ध्वनिक निगरानी प्रौद्योगिकियां कितनी प्रभावी हैं? प्रश्न 2: दूरस्थ वर्षा वन क्षेत्रों में ध्वनिक सेंसरों को तैनात करने और बनाए रखने से जुड़ी प्राथमिक लॉजिस्टिक और तकनीकी चुनौतियां क्या हैं, और इन चुनौतियों को कैसे कम किया जा सकता है? |
Source: The Hindu