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Daily-current-affairs / 08 Nov 2024

भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) शिक्षा: प्रगति, चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा -डेली न्यूज़ एनालिसिस

भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) शिक्षा: प्रगति, चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा -डेली न्यूज़ एनालिसिस

सन्दर्भ:

भारत विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है, विशेषकर महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने STEM विषयों में महिलाओं के 40% नामांकन का रिकॉर्ड स्तर प्राप्त किया है, जोकि विश्व में सर्वाधिक है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत शिक्षा में समान पहुँच को प्रोत्साहित कर अपने आर्थिक और तकनीकी विकास को सशक्त बनाता है।

 भारत के विकास के लिए STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) शिक्षा की आवश्यकता:

STEM शिक्षा आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान और नवाचार जैसे महत्वपूर्ण कौशल प्रदान करती है, जो आधुनिक उद्योगों में प्रभावी योगदान के लिए आवश्यक हैं। ये कौशल एक दक्ष कार्यबल का निर्माण करते हैं, जो जटिल तकनीकी चुनौतियों का समाधान कर सकता है और भारत की आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करता है। एक कुशल STEM कार्यबल का विकास भारत के प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और अनुसंधान क्षेत्रों के विस्तार में सहायक है, जिससे देश विज्ञान और नवाचार का वैश्विक केंद्र बन सकता है।

1.     आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता:
STEM
क्षेत्र सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे तकनीक-प्रधान क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देते हैं। STEM शिक्षा से छात्रों को सशक्त बनाकर, भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान मजबूत कर सकता है। यह केवल घरेलू आर्थिक विकास को गति देता है बल्कि विदेशी निवेश आकर्षित करने और वैश्विक प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की भूमिका को भी मजबूत करता है।

2.     समानता और पहुँच:
महिलाओं और हाशिये पर मौजूद समुदायों में STEM शिक्षा को बढ़ावा देना समावेशी कार्यबल के निर्माण के लिए जरूरी है। STEM में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भारत की लैंगिक समानता और रोजगार में अंतर को कम करने की क्षमता को दर्शाती है। STEM में महिलाओं का सशक्तिकरण नवाचार को भी प्रोत्साहित करता है, क्योंकि विविध दृष्टिकोण समस्या-समाधान को बेहतर बनाते हैं और समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं।

3.     पाठ्यक्रम नवाचार:
STEM
शिक्षा पारंपरिक रटने की बजाय व्यावहारिक और परियोजना-आधारित शिक्षा पर जोर देती है। यह जिज्ञासा और स्वतंत्र सोच को प्रोत्साहित करती है, जिससे छात्र वास्तविक समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटने के लिए तैयार होते हैं। इसे साकार करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता होती है, जो STEM कार्यक्रमों को कुशलता से संचालित कर सकें और नई शिक्षण विधियों का समर्थन कर सकें।

 भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सतत विकास लक्ष्य प्राप्ति की प्रगति:

·        नीति आयोग द्वारा विकसित एसडीजी इंडिया इंडेक्स में भारत के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के स्कोर में समग्र सुधार देखा गया है, जो 100 में से 66 से बढ़कर 71 तक पहुँच गया है। एसडीजी 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) का स्कोर 66 से बढ़कर 75 हो गया, जो शिक्षा तक पहुँच और गुणवत्ता में सुधार की दिशा में सकारात्मक प्रगति को दर्शाता है। यह प्रगति एसडीजी 4.4 के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य 2030 तक युवाओं और वयस्कों को रोजगार, उद्यमिता और अच्छी नौकरियों के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल प्रदान करना है।

·        एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य एसडीजी 8 है, जो समावेशी और सतत आर्थिक विकास, उत्पादक रोजगार और सभ्य कार्य को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। STEM शिक्षा में निवेश के माध्यम से, भारत इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में कार्य कर रहा है, युवाओं को ऐसे कौशल प्रदान कर रहा है जो नए रोजगार के अवसर उत्पन्न कर सकते हैं और सतत आर्थिक विकास में योगदान दे सकते हैं।

प्रभावी STEM शिक्षा में चुनौतियाँ:

प्रगति के बावजूद, भारत को गुणवत्तापूर्ण STEM शिक्षा प्रदान करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

1. स्कूल से जुड़ी चुनौतियाँ:
कई स्कूलों में STEM विषयों के लिए आवश्यक प्रयोगशाला सुविधाओं और उपकरणों की कमी है। इसके अतिरिक्त, छात्र-शिक्षक का उच्च अनुपात व्यक्तिगत ध्यान को बाधित करता है, जिससे छात्रों को प्रभावी रूप से शिक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

2. शिक्षक-संबंधी चुनौतियाँ:
योग्य STEM शिक्षकों की कमी और उनके व्यावसायिक विकास के अवसरों का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है। कई शिक्षकों के पास प्रभावी शिक्षण रणनीतियों की कमी होती है, जिससे STEM शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। निरंतर प्रशिक्षण के अभाव में, शिक्षकों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा जैसे तेजी से उभरते क्षेत्रों के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई होती है

    • छात्र-संबंधी चुनौतियाँ:
      कई छात्र STEM विषयों को अत्यधिक चुनौतीपूर्ण मानते हैं, अक्सर कठोर पाठ्यक्रम के कारण जो पाठ्यक्रम की सामग्री को छात्रों के जीवन से जोड़ने में विफल हो जाते हैं। STEM क्षेत्रों के प्रति छात्रों में कम प्रेरणा भारत की कुशल कार्यबल विकसित करने की क्षमता को सीमित कर सकती है।
    • पाठ्यक्रम और निर्देशात्मक चुनौतियाँ:
      वर्तमान पाठ्यक्रम अक्सर कठोर और पारंपरिक होते हैं, जो अंतःविषय दृष्टिकोणों का समर्थन नहीं करते। इससे छात्रों के लिए विभिन्न STEM क्षेत्रों के बीच संबंधों को समझना कठिन हो जाता है। एक अधिक एकीकृत दृष्टिकोण उन्हें अपने ज्ञान को नए और अभिनव तरीकों से लागू करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
    • प्रौद्योगिकी से संबंधित चुनौतियाँ:
      विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच बनी हुई है। यह संसाधनों की कमी छात्रों के लिए आधुनिक STEM शिक्षण उपकरणों और प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा का अंतर और गहराता है।

 

STEM क्षेत्र में शिक्षण पद्धतियों को अपनाना:
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, भारतीय शिक्षण संस्थान को अधिक लचीली और छात्र-केंद्रित शिक्षण पद्धतियों को अपनाना चाहिए:

1.     प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा (PBL):
प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा छात्रों को ऐसे प्रोजेक्ट्स करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिनमें महत्वपूर्ण सोच और टीमवर्क की आवश्यकता होती है, जिससे STEM अवधारणाओं की गहरी समझ विकसित होती है। इस पद्धति में, छात्र योजना बनाने से लेकर क्रियान्वयन तक अपने सीखने की जिम्मेदारी लेते हैं, जिससे उनके समस्या-समाधान कौशल और व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती है।

2.     समस्या-आधारित और विश्लेषणात्मक सोच (PBAT):
यह विधि छात्रों को जटिल समस्याओं से सामना कराती है, जिनके लिए विश्लेषण और अभिनव सोच की आवश्यकता होती है, जिससे उनके समस्याओं का रचनात्मक तरीके से समाधान करने की क्षमता में सुधार होता है। यह छात्रों को समस्या-समाधान पर एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है, जो STEM जैसे गतिशील क्षेत्रों में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

3.     जिज्ञासा और अन्वेषण को प्रोत्साहित करना:
छात्रों को उनकी रुचियों का पता लगाने और प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता देने से एक अधिक आकर्षक और प्रेरक शिक्षण वातावरण का निर्माण होता है। प्रयोग और जांच द्वारा, छात्रों को STEM के व्यावहारिक पहलुओं की समझ प्राप्त होती है, जो उन्हें इन क्षेत्रों में नवाचार और योगदान करने के लिए प्रेरित करती है।

4.     प्रौद्योगिकी का एकीकरण:
कक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोग, जैसे सिमुलेशन, कोडिंग प्लेटफार्म और सहयोगात्मक उपकरण, सैद्धांतिक ज्ञान और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोग के बीच की खाई को पाटने में मदद करता है। इन संसाधनों तक पहुँच से छात्रों का जुड़ाव बढ़ सकता है और उन्हें आधुनिक उद्योग की मांगों के अनुसार कौशल प्राप्त हो सकते हैं।

 STEM शिक्षा को मजबूत करने में उद्योग क्षेत्र की भूमिका:

उद्योग के साथ सहयोग छात्रों को STEM अवधारणाओं को व्यावहारिक संदर्भों में लागू करने के अवसर प्रदान करता है, जिससे शिक्षा अधिक प्रासंगिक और प्रेरक बनती है। उद्योग साझेदारी कई लाभ प्रदान करती है:

1.     वास्तविक दुनिया के ज्ञान तक पहुँच :
उद्योग सहयोग छात्रों को यह समझने का अवसर प्रदान करता है कि STEM सिद्धांतों का वास्तविक दुनिया में कैसे अनुप्रयोग होता है, जिससे उनकी शिक्षा का मूल्य और प्रभाव बढ़ता है। इस प्रकार के संपर्क से छात्रों में STEM करियर की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा उत्पन्न होती है और उनके अध्ययन के वास्तविक जीवन के निहितार्थों को स्पष्टता मिलती है।

2.     अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और संसाधनों तक पहुँच:
उद्योग जगत के साथ साझेदारी के माध्यम से, शैक्षिक संस्थान अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, विशेषज्ञता और संसाधनों तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि छात्र वर्तमान बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप तकनीकी उपकरणों और ज्ञान से संपन्न हो रहे हैं।

3.     सामुदायिक और आर्थिक प्रभाव :
स्थानीय व्यवसायों के साथ सहयोग करके, शैक्षणिक संस्थान अपने समुदाय के साथ सशक्त संबंध स्थापित कर सकते हैं, जिससे स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार की साझेदारियाँ कुशल कार्यबल के निर्माण में भी सहायक होती हैं, जोकि निरंतर और समग्र क्षेत्रीय विकास के लिए आवश्यक है।

 आगे की राह:

STEM शिक्षा में सुधार की दिशा में भारत की यात्रा अत्यधिक आशाजनक है, किंतु इसके लिए शैक्षिक बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम सुधार में निरंतर निवेश की आवश्यकता है। प्रमुख अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं:

  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण में निवेश: यह सुनिश्चित करना कि शिक्षक STEM विषयों को प्रभावी रूप से पढ़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
  • अंतःविषयक पाठ्यक्रम पर जोर देना: एक ऐसे पाठ्यक्रम को बढ़ावा देना, जो समग्र समस्या-समाधान कौशल विकसित करने के लिए विभिन्न STEM विषयों को एकीकृत करता हो।
  • उद्योग के साथ सहयोग को बढ़ावा देना: व्यावहारिक अनुभव, उन्नत प्रौद्योगिकी तक पहुंच और STEM में करियर के विकल्पों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए उद्योगों के साथ साझेदारी करना।
  • संसाधनों तक पहुंच में समानता को प्रोत्साहित करना: प्रौद्योगिकी तक पहुँच में ग्रामीण-शहरी असमानताओं को दूर करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी छात्र आधुनिक STEM शिक्षा उपकरणों से समान रूप से लाभान्वित हो सकें।

STEM में भारत की प्रगति, विशेष रूप से महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि, समावेशी और कुशल कार्यबल के निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। मौजूदा चुनौतियों का समाधान और निरंतर सुधारों के माध्यम से, भारत अपने STEM शिक्षा परिदृश्य को सशक्त बनाने, अगली पीढ़ी को नवाचार के प्रति प्रेरित करने तथा सतत विकास की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए दृढ़ संकल्पित है