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Daily-current-affairs / 24 Jan 2025

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न: कारण, सुझाव और कानूनी उपाय

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सन्दर्भ: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक व्यापक और चिंताजनक मुद्दा है, जो विशेष रूप से महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और समानता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यद्यपि यौन उत्पीड़न निवारण (पीओएसएच) अधिनियम, 2013 जैसे कानूनी ढांचे के माध्यम से इसे संबोधित करने के प्रयास किए गए हैं लेकिन यह समस्या गहरी सामाजिक मान्यताओं, लैंगिक रूढ़िवादिता और अपर्याप्त प्रवर्तन तंत्रों के कारण बनी हुई है। यह जटिल मुद्दा केवल महिलाओं के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि संगठनात्मक विकास में भी बाधा उत्पन्न करता है, क्योंकि यह विषाक्त वातावरण पैदा करता है जो उत्पादकता, सहयोग और विश्वास को प्रभावित करता है।

·        यौन उत्पीड़न के अंतर्निहित कारणों को समझना इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या है, जो पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं, असमान शक्ति संरचनाओं और सामाजिक मान्यताओं से उत्पन्न होती है। कार्यस्थल पर उत्पीड़न का प्रभाव केवल पीड़ित व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे संगठन को प्रभावित करता है। यह संगठनात्मक संस्कृति को विषाक्त बनाता है, जिससे कर्मचारियों के बीच सहयोग में कमी आती है और काम करने का वातावरण असुरक्षित और असंवेदनशील बनता है।

यौन उत्पीड़न के कारणों को समझना:

यौन उत्पीड़न सत्ता की स्थापित गतिशीलता, लैंगिक रूढ़िवादिता और अपर्याप्त संगठनात्मक प्रथाओं से उत्पन्न होता है। प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

1.   कार्यस्थलों में पुरुष वर्चस्व: पुरुष-प्रधान कार्यस्थल अक्सर सत्ता असंतुलन को बढ़ावा देते हैं, जहां महिलाओं को करियर प्रगति के लिए यौन मांगों का पालन करने का दबाव पड़ता है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व और समर्थन नेटवर्क की कमी इन चुनौतियों को बढ़ाती है, जिससे ऐसे वातावरण का निर्माण होता है, जहां उत्पीड़न सामान्य हो जाता है।

2.   ऑनलाइन उत्पीड़न और साइबर हमले: डिजिटल युग ने कार्यस्थल उत्पीड़न के नए रूपों को पेश किया है, जैसे ट्रोलिंग, धमकी और अश्लील संदेश या छवियों जैसी अपमानजनक सामग्री का प्रसार। इंटरनेट की गुमनामी अपराधियों को साहस देती है, जबकि दूरस्थ कार्य ने महिलाओं को साइबर उत्पीड़न के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।

3.   नियोक्ताओं द्वारा कानूनी गैर-अनुपालन: कई संगठन यौन उत्पीड़न निवारण (पीओएसएच) अधिनियम, 2013 का पालन करने में विफल रहते हैं, जो 10 या अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों में आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के गठन का आदेश देता है।

अप्रभावी आईसीसी, अपर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण की कमी पीड़ितों को घटनाओं की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करती है, जिससे मौन की संस्कृति कायम रहती है।

यौन उत्पीड़न का समाधान करने के लिए सिफारिशें :

यौन उत्पीड़न का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए एक बहुआयामी रणनीति आवश्यक है, जोकि शिक्षा, नीतिगत परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन पर केंद्रित हो।

1.   सिनेमा में महिलाओं का चित्रण: मीडिया सामाजिक दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सिनेमा अक्सर महिलाओं को निष्क्रिय भूमिकाओं में चित्रित करके लैंगिक रूढ़िवादों को सुदृढ़ करता है।

·        नेतृत्वकर्ताओं, राजनयिकों, व्यवसायिक अधिकारियों और अन्य शक्तिशाली भूमिकाओं में महिलाओं को चित्रित करके कथा को बदलना समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान को प्रेरित कर सकता है।

2.   लैंगिक जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम: यह कार्यक्रम कर्मचारियों को सत्ता की गतिशीलता, लैंगिक असमानता और उपयुक्त कार्यस्थल व्यवहार के बारे में शिक्षित कर सकते हैं।

·        प्रशिक्षण को व्यवस्थित बाधाओं को चुनौती देना चाहिए, समानता को बढ़ावा देना चाहिए और पुरुषों को उत्पीड़न का मुकाबला करने में सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

3.   मर्दानगी और नारीत्व को फिर से परिभाषित करना: आक्रामकता और प्रभुत्व से जुड़ी मर्दानगी की पारंपरिक धारणाएँ और निष्क्रियता और अधीनता से जुड़ी स्त्रीत्व उत्पीड़न को कायम रखती हैं।

·        मर्दानगी को न्याय, करुणा और समानता को प्रतिबिंबित करने के लिए फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए, जबकि स्त्रीत्व को शक्ति, स्वायत्तता और सक्रिय भागीदारी का प्रतीक होना चाहिए।

4.   महिलाओं के लिए कल्याण निधि का सृजन: महिलाएँ अक्सर मातृत्व, देखभाल की जिम्मेदारियों या स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण करियर में व्यवधान का सामना करती हैं, जिससे वित्तीय अस्थिरता होती है।

·        कल्याण निधि इन विरामों के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है और कौशल विकास कार्यक्रमों को निधि दे सकती है, जिससे महिलाओं को बिना किसी नुकसान के कार्यबल में फिर से प्रवेश करने में सक्षम बनाया जा सकता है।

कानूनी और सामाजिक उपाय:

भारत ने यौन उत्पीड़न का समाधान करने के लिए विभिन्न कानूनी और सामाजिक पहल लागू की हैं।

1.   कानूनी ढांचा:

o    महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1987: यह अधिनियम मीडिया में महिलाओं के वस्तुकरण को रोकता है, जोकि उत्पीड़न को सामान्य बनाने का कारण बनता है।

o    विशाखा दिशानिर्देश, 1997: यौन उत्पीड़न को रोकने और संबोधित करने के लिए नियोक्ता की जिम्मेदारी स्थापित की, जोकि पीओएसएच २०१३ अधिनियम के लिए आधार तैयार करता है।

o    भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएसएस): महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए विशिष्ट प्रावधानों को शामिल किया गया है, जो पीड़ितों के लिए कानूनी सहारा को मजबूत करते हैं।

2.   सरकारी पहल:

o    एसएचई-बॉक्स: यह एक ऑनलाइन पोर्टल है जो महिलाओं को गुमनाम रूप से उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है और गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

o    महिला कार्यकर्ता छात्रावास: यह शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सुरक्षित, किफायती आवास प्रदान करता है, जो गतिशीलता और सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करता है।

संगठनात्मक और सांस्कृतिक चुनौतियों का समाधान:

1.   पीओएसएच अधिनियम के कार्यान्वयन को मजबूत करना:

o    संगठनों को शिकायतों के निष्पक्ष और प्रभावी निपटान के लिए आईसीसी (आंतरिक शिकायत समिति) की स्थापना और प्रशिक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए।

o    नियमित ऑडिट, जागरूकता अभियान और अनुपालना जांच नियोक्ताओं को जवाबदेह बना सकती है।

2.   सहायक कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा देना:

o    उत्पीड़न और लैंगिक समानता पर खुली चर्चाओं को प्रोत्साहित करने से मौन की संस्कृति को तोड़ने में मदद मिल सकती है।

o    संगठनों को शून्य-सहिष्णुता नीतियां अपनानी चाहिए और कर्मचारियों के बीच विश्वास बनाने के लिए पारदर्शी शिकायत तंत्र विकसित करना चाहिए।

मीडिया और समाज की भूमिका:

सामाजिक मानदंडों को आकारने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। फिल्मों और विज्ञापनों में महिलाओं को निष्क्रिय या अधीनस्थ पात्रों के रूप में गलत तरीके से चित्रित करना हानिकारक रूढ़ियों को दर्शाता है। सत्ता के पदों पर महिलाओं को नेताओं, राजनयिकों, व्यवसायिक अधिकारियों और अन्य शक्तिशाली भूमिकाओं के रूप में चित्रित करने में बदलाव से लैंगिक पूर्वाग्रहों को चुनौती मिल सकती है।

मर्दानगी और स्त्रीत्व के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को भी परिवर्तन की आवश्यकता है। पुरुषों और महिलाओं दोनों में सहानुभूति, समानता और आपसी सम्मान जैसे मूल्यों को प्रोत्साहित करने से अधिक संतुलित और समावेशी कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।

चुनौतियाँ और भविष्य की दिशाएँ

प्रगति के बावजूद, चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

  • अल्प रिपोर्टिंग: कलंक का डर, प्रतिशोध और शिकायत तंत्रों में विश्वास की कमी महिलाओं को शिकायत दर्ज करने से हतोत्साहित करती है।
  • कमजोर कानूनी अनुपालन: कई कार्यस्थल पीओएसएच अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहते हैं, जिससे महिलाएं उत्पीड़न के प्रति कमजोर हो जाती हैं।
  • सांस्कृतिक प्रतिरोध: गहरे स्तर पर व्याप्त पितृसत्तात्मक मानदंड लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं, जिससे परिवर्तन धीमा और कठिन हो जाता है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीति निर्माताओं, संगठनों और समाज के सभी वर्गों द्वारा निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। कानूनी सुधारों, जागरूकता अभियानों और सांस्कृतिक बदलावों को एकीकृत करके, भारत सुरक्षित और अधिक समान कार्यस्थल बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

निष्कर्ष:

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक जटिल मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जबकि पीओएसएच अधिनियम, एसएचई-बॉक्स और विशाखा दिशानिर्देश जैसी पहल महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करती हैं, उनकी सफलता मजबूत कार्यान्वयन और सांस्कृतिक परिवर्तन पर निर्भर करती है। लैंगिक धारणाओं को फिर से परिभाषित करने, कार्यस्थल नीतियों को मजबूत करने और महिलाओं के लिए वित्तीय और पेशेवर सहायता सुनिश्चित करने के प्रयास समानता और सम्मान के वातावरण बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। उत्पीड़न के मूल कारणों को संबोधित करके और कानूनी, सामाजिक और संगठनात्मक सुधारों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाकर, भारत एक ऐसे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है जहां कार्यस्थल वास्तव में समावेशी और उत्पीड़न मुक्त हों।

मुख्य प्रश्न: कानूनी और संस्थागत तंत्र आवश्यक हैं, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को संबोधित करने में सामाजिक परिवर्तन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लैंगिक समानता और सत्ता की गतिशीलता के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को कैसे बदला जा सकता है, ताकि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोका जा सके?