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Daily-current-affairs / 17 Oct 2024

भारत में दुर्लभ बीमारियों से निपटना: वर्तमान चुनौतियाँ और नीति निर्देश- डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

दुर्लभ बीमारियाँ गंभीर और आजीवन बनी रहने वाली स्वास्थ्य स्थितियाँ हैं, जोकि जनसंख्या के एक सीमित वर्ग को प्रभावित करती हैं। ये बीमारियाँ वैश्विक स्तर पर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरकर सामने आई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुर्लभ बीमारियाँ वे स्थितियाँ हैं जिनकी व्यापकता प्रति 1,000 व्यक्तियों में 1 या उससे कम होती है। इन बीमारियों का वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों पर प्रभाव पड़ता है, फिर भी, ये बीमारियाँ वित्तीय संसाधनों की कमी और अध्ययन के अभाव के कारण उपेक्षित रह जाती हैं। भारत में दुर्लभ बीमारियों से संबंधित चुनौतियाँ अधिक गंभीर हैं, क्योंकि यहाँ व्यापक महामारी विज्ञान डेटा की कमी है। इस कमी के कारण इन बीमारियों के प्रभाव, उपचार और प्रबंधन में जटिलता उत्पन्न हो गई है।

  •  हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक अनाथ दवाओं की पहुंच में सुधार हेतु एक महत्वपूर्ण निर्देश दिए है। वर्तमान में, भारत में लगभग 55 चिकित्सा स्थितियाँ इस वर्गीकरण के अंतर्गत आती हैं, जिनमें गौचर रोग (एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो माता-पिता से बच्चों में (वंशानुगत रूप से) स्थानांतरित होता है) और मांसपेशियों की दुर्बलता के विभिन्न रूप शामिल हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि इन दुर्लभ बीमारियों में से केवल 5% का ही प्रभावी उपचार उपलब्ध है। इसका परिणाम यह है कि अधिकांश रोगी विशिष्ट देखभाल के बिना रह जाते हैं, जो उनकी जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य निर्देश:

दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गये निर्देश में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:

1.     राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (एनआरडीएफ) का गठन: इस कोष का उद्देश्य कीमतों को कम करना और दवाओं की उपलब्धता में सुधार करना है।

2.     कंपनी अधिनियम, 2013 में समावेशन: दुर्लभ बीमारियों के लिए दान को अनुसूची VII के अंतर्गत मान्यता दी जाएगी, जिससे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) योगदान से वित्तपोषण का विस्तार होगा

3.     राष्ट्रीय दुर्लभ रोग प्रकोष्ठ द्वारा प्रशासन: एनआरडीएफ का प्रबंधन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंलालय (MoH&FW) के तहत राष्ट्रीय दुर्लभ रोग प्रकोष्ठ द्वारा किया जाएगा। इस प्रकोष्ठ में एक या अधिक नोडल अधिकारी होंगे।

4.     केंद्रीकृत सूचना पोर्टल का विकास: तीन महीने के भीतर एक राष्ट्रीय पोर्टल स्थापित किया जाएगा जिसमें रोगी रजिस्ट्री और उपलब्ध उपचारों की जानकारी शामिल होगी।

5.     फास्ट-ट्रैक अनुमोदन प्रक्रिया: भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) को निर्देश दिया गया है कि वे दुर्लभ बीमारियों से संबंधित दवाओं और उपचारों के लिए 60 दिनों के भीतर एक विशेष फास्ट-ट्रैक अनुमोदन प्रक्रिया स्थापित करें।

 

भारतीय परिदृश्य: वर्तमान परिदृश्य

·        भारत में दुर्लभ बीमारियों से संबंधित आंकड़ों की कमी है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा शुरू की गई दुर्लभ और अन्य वंशानुगत विकारों के लिए राष्ट्रीय रजिस्ट्री (NRROID) ने लगभग 14,472 दुर्लभ बीमारी के रोगियों को दर्ज किया है; हालाँकि, यह संख्या प्रभावित लोगों का केवल एक अंश दर्शाती है। अनुमान बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर, 7,000 से 8,000 अलग-अलग दुर्लभ बीमारियाँ हो सकती हैं, जिनमें गौचर रोग, सिस्टिक फाइब्रोसिस और लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर जैसी प्रचलित स्थितियाँ शामिल हैं।

·        दुर्लभ बीमारियों का आर्थिक बोझ बहुत अधिक है, क्योंकि उपचार अक्सर महंगे होते हैं। कई अनाथ दवाओं का पेटेंट कराया जाता है, जिससे उनकी कीमतें अत्यधिक बढ़ जाती हैं, जो उन्हें अधिकांश रोगियों के लिए दुर्गम बना देती हैं। वर्तमान में, 5% से भी कम दुर्लभ बीमारियों के लिए उपचार उपलब्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप 10 में से 1 से भी कम रोगियों को बीमारी-विशिष्ट देखभाल मिलती है। यह स्थिति नीति और व्यवहार में प्रणालीगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है

 

अनाथ दवाओं (Orphan drugs) की लागत और उपलब्धता:

·        अनाथ दवाओं की उच्च लागत उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा है। इनमें से कई दवाएँ पेटेंटेड हैं, जिसके कारण उनकी कीमतें अत्यधिक होती हैं। दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिए छोटे बाज़ार अक्सर दवा कंपनियों को उनके विकास में निवेश करने से रोकते हैं। न्यायालय ने दवा कंपनियों के साथ बातचीत करने और लागत कम करने के लिए घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया है।

·        इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने 2019 के उस आदेश पर चिंता व्यक्त की, जिसमें अनाथ दवाओं को मूल्य नियंत्रण से छूट दी गई थी, तथा इस क्षेत्र में विनियमन की आवश्यकता पर बल दिया गया था।

 

नीतिगत ढांचा और हालिया घटनाक्रम:

·        2021 में, भारत सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (NPRD) शुरू की, जिसका उद्देश्य व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से दुर्लभ बीमारियों की घटनाओं और व्यापकता को कम करना है। यह नीति एम्स दिल्ली और पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ जैसे पहचाने गए उत्कृष्टता केंद्रों (COE) में इलाज कराने वाले मरीजों को 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

·        हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनाथ दवाओं की उपलब्धता में सुधार करने के लिए निर्देश जारी किए, जिसमें उपचार तक बेहतर पहुंच की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पहचाना गया। न्यायालय ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (NRDF) की स्थापना का आदेश दिया, जिसका प्रबंधन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के भीतर एक समर्पित प्रकोष्ठ द्वारा किया जाएगा।

·        इस कोष का उद्देश्य दवाओं की कीमतें कम करना और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए दवाओं की उपलब्धता बढ़ाना है।

 

आर्थिक विचार और वित्तपोषण चुनौतियाँ:

·        दुर्लभ बीमारियों का उपचार महत्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों का सामना करता है, विशेषकर भारत जैसे सीमित संसाधन वाले देशों में। नीति निर्माताओं को संसाधनों का आवंटन करते समय प्रतिस्पर्धात्मक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना अनिवार्य है। दुर्लभ बीमारियों के उपचार की उच्च लागत के कारण प्राथमिकता निर्धारित करना जरूरी है। इसमें उन हस्तक्षेपों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो बड़ी जनसंख्या के लिए सबसे अधिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।

·        वर्तमान वित्तपोषण नीतियाँ, जैसे कि राष्ट्रीय आरोग्य निधि, दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित गरीब रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। इसके बावजूद, अनेक परिवार आवश्यक देखभाल तक पहुँचने में संघर्षरत हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2024 तक दुर्लभ बीमारियों के रोगियों के लिए 24 करोड़ की वित्तीय सहायता जारी की गई थी, किंतु आवश्यकता के मुकाबले यह धनराशि अपर्याप्त है। व्यवस्थित महामारी विज्ञान अध्ययनों की कमी दुर्लभ बीमारियों के बोझ के सटीक अनुमानों में बाधक बनती है, जिससे संसाधनों का उचित आवंटन जटिल हो जाता  हैं

 

आगे की राह : ढांचे को मजबूत करना

1.     दुर्लभ रोगों का डेटा विश्लेषण : दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या का निर्धारण और उनसे जुड़ी रुग्णता तथा मृत्यु दर को बेहतर ढंग से समझने के लिए व्यवस्थित अध्ययन की आवश्यकता है। प्रभावी स्वास्थ्य नीतियों को विकसित करने के लिए यह डेटा अत्यंत महत्वपूर्ण है।

2.     जन जागरूकता और शिक्षा : स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और आम जनता के बीच दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने से शीघ्र निदान और उपचार में सहायता मिल सकती है। शैक्षिक पहल इन स्थितियों की समझ को विकसित करने और संभावित उपचारों पर शोध को प्रोत्साहित कर सकती हैं।

3.     घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना : सरकार को दवा कंपनियों को स्थानीय स्तर पर दुर्लभ बीमारियों के उपचार विकसित करने और निर्माण करने के लिए प्रोत्साहन देने पर विचार करना चाहिए। इसमें कर में छूट या अनुसंधान एवं विकास के लिए अनुदान शामिल हो सकते हैं, जिससे लागत कम करने और पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी।

4.     औषधि अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना : दुर्लभ रोगों की औषधियों के लिए एक समर्पित त्वरित अनुमोदन प्रक्रिया की स्थापना से आवश्यक उपचारों तक पहुँच में तेजी लाने में सहायता मिल सकती है।

5.     वित्तपोषण तंत्र में वृद्धि : कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII में दुर्लभ बीमारियों के लिए दान को शामिल करने जैसे वित्तपोषण तंत्र का विस्तार करने से कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) योगदान को उपयोग किया जा सकेगा, जिससे प्रभावित रोगियों के लिए वित्तीय सहायता को बढ़ावा मिलेगा।

 

निष्कर्ष:

भारत में दुर्लभ बीमारियों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें नीति सुधार, वित्तीय संसाधनों में वृद्धि और बेहतर डेटा संग्रहण शामिल है। इस विशेष जनसंख्या की आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत सरकार स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकती है और उपचार तक समान पहुँच सुनिश्चित कर सकती है। जैसे-जैसे परिस्थितियाँ विकसित हो रही हैं, भारत में दुर्लभ बीमारियों के लिए एक समावेशी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के निर्माण हेतु हितधारकोंजिनमें रोगी, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, नीति निर्माता और दवा कंपनियाँ शामिल हैंके बीच निरंतर संवाद अत्यंत आवश्यक है।

 

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न:

भारत में दुर्लभ बीमारियों के बोझ को कम करने में दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2021 की भूमिका का मूल्यांकन करें। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं, और प्रभावित व्यक्तियों के लिए उपचार तक पहुँच सुनिश्चित करने में यह कितनी प्रभावी रही है? (250 शब्द)