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Daily-current-affairs / 16 Jul 2024

इसरो की चुनौती: रॉकेट की अधिकता और उपग्रहों की कमी : डेली न्यूज़ एनालिसिस

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संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) वर्तमान में एक अप्रत्याशित समस्या का सामना कर रहा है: इसके पास रॉकेट की अधिकता है लेकिन लॉन्च करने के लिए उपग्रहों की कमी है। यह समस्या तब उभरी जब इसरो ने 2019-2020 में आपूर्ति-चालित मॉडल से मांग-चालित मॉडल में बदलाव किया, जिससे उपलब्ध लॉन्च वाहनों और उपग्रह लॉन्च की मांग के बीच असंगति पैदा हो गई।

मांग-चालित मॉडल की ओर बदलाव

  • आपूर्ति-चालित से मांग-चालित बदलाव: ऐतिहासिक रूप से, इसरो ने एक आपूर्ति-चालित दृष्टिकोण का पालन किया, जहां वह पहले उपग्रह लॉन्च करता था और फिर इन उपग्रहों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए ग्राहकों की तलाश करता था। हालांकि, 2019-2020 में भारतीय सरकार के अंतरिक्ष क्षेत्र के सुधारों के साथ, इसरो ने एक मांग-चालित मॉडल अपनाया। इस नए दृष्टिकोण में, उपग्रहों का निर्माण और लॉन्च केवल तभी किया जाता है जब उनकी मौजूदा मांग हो। इस बदलाव ने मौजूदा स्थिति में योगदान दिया है जहां इसरो की लॉन्च वाहन क्षमता उपग्रह लॉन्च की मांग से कहीं अधिक है।
  • विशेषज्ञ दृष्टिकोण : जून में, इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव एस. सोमनाथ ने बताया कि इसरो की लॉन्च वाहन क्षमता वर्तमान मांग की तुलना में तीन गुना अधिक है। इस बयान ने कई विशेषज्ञों को यह सोचने के लिए मजबूर किया कि अंतरिक्ष लॉन्च बाजार मंदी का सामना कर रहा है। सोमनाथ ने इस असंतुलन को दूर करने के लिए लॉन्च वाहनों की मजबूत घरेलू मांग की आवश्यकता पर जोर दिया।

भारत का लॉन्च वाहन बेड़ा

वर्तमान लॉन्च वाहन:

भारत के पास चार मुख्य लॉन्च वाहन हैं:

  1. स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी)
  2. पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी)
  3. जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी)
  4. लॉन्च व्हीकल मार्क-III (एलवीएम-3)

ये रॉकेट, उपग्रहों को चार टन तक के जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट तक लॉन्च कर सकते हैं। इससे अधिक वजन वाले उपग्रहों के लिए, भारत यूरोप के एरियन वी और स्पेसएक्स के फाल्कन 9 जैसे विदेशी लॉन्च वाहनों पर निर्भर है।

मांग संबंधित समस्या

  • ग्राहक को जागरूक करना: मांग-चालित मॉडल में परिवर्तन ने एक "अद्वितीय" समस्या पैदा की है। संभावित ग्राहकों को उपग्रह सेवाओं के लाभों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि मांग पैदा हो सके। यह मांग नए उपग्रहों के लॉन्च की आवश्यकता को बढ़ाएगी अगला सवाल यह उठता है: ग्राहकों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी किसकी है - इसरो या निजी उद्योग की?
  • मांग पैदा करना: पर्याप्त ग्राहक जागरूकता के बिना, इसरो की अपेक्षित मांग का पैमाना साकार नहीं होगा। संभावित ग्राहकों में कंपनियाँ, सरकारी संस्थान, रक्षा उद्यम और आम जनता जैसे किसान और बैंकर शामिल हैं। इन विविध ग्राहक समूहों को शिक्षित करने का कार्य काफी बड़ा है।

भविष्य के मांग चालक

  • मानव अंतरिक्ष उड़ान: एक महत्वपूर्ण भविष्य का मांग चालक मानव अंतरिक्ष उड़ान है। इसमें अंतरिक्ष यात्री और आपूर्ति को अंतरिक्ष स्टेशनों या चंद्रमा जैसी जगहों पर ले जाने के लिए मानव-रेटेड लॉन्च वाहन शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष पर्यटन की भी संभावना है, जो अतिरिक्त मांग पैदा कर सकता है।
  • लॉन्च क्षमता में वृद्धि: भारत के वर्तमान लॉन्च वाहन सीमित हैं। उदाहरण के लिए, एलवीएम-3 कि क्षमता, चीन के लॉन्ग मार्च 5 की क्षमता के एक तिहाई से भी कम है। स्पष्ट है कि चीन के चांग' 4 जैसे मिशनों को पूरा करने के लिए दो लॉन्च की आवश्यकता होगी। इसरो एलवीएम-3 को एक सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के साथ अपग्रेड करने की योजना बना रहा है ताकि इसकी पेलोड क्षमता को छह टन तक बढ़ाया जा सके। इसके अतिरिक्त, प्रस्तावित नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (एनजीएलवी), या प्रोजेक्ट सूर्य का लक्ष्य जीटीओ तक 10 टन तक का भार ले जाना है, इस प्रोजेक्ट को फंडिंग अनुमोदन लंबित है।

छोटे उपग्रहों को प्रोत्साहित करना

  • एसएसएलवी विकास: इसरो को छोटे उपग्रहों के लॉन्च के लिए एसएसएलवी की क्षमता को मान्य करने के लिए एक और सफल उड़ान की आवश्यकता है, जो अक्सर प्रयोगात्मक या विश्वविद्यालय निर्मित होते हैं। इस क्षेत्र में सफलता अंतरिक्ष कंपनियों को बड़े उपग्रह विकसित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, अंततः लॉन्च वाहनों की मांग को बढ़ा सकती है।

लॉन्च वाहन का अर्थशास्त्र

  • उपग्रह जीवनकाल और प्रतिस्थापन: उपग्रहों का जीवन काल सीमित होता है और जैसे-जैसे वे पुराने होते हैं, उन्हें बदलने की आवश्यकता होती है, जिससे लॉन्च वाहनों की निरंतर मांग उत्पन्न होती है। हालांकि, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में प्रगति उपग्रहों के जीवनकाल को बढ़ा रही है, अतः लॉन्च वाहन आवश्यकताओं का अनुमान जटिल हो रहा है।
  • तकनीकी सुधार: समय के साथ लॉन्च वाहन अधिक कुशल हो रहे हैं। पीएसएलवी अब एकल लॉन्च में कई उपग्रहों को विभिन्न कक्षाओं में पहुंचा सकता है। पुन: प्रयोज्य रॉकेट चरण लागत को कम करते हैं और लाभप्रदता को बढ़ाते हैं। इसरो पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (आरएलवी) तकनीक विकसित कर रहा है और विषाक्त रॉकेट ईंधन के लिए हरित विकल्पों का पता लगा रहा है।

निजी क्षेत्र की भूमिका

  • पारिस्थितिकी तंत्र विकास: सोमनाथ ने सुझाव दिया कि उपग्रह सेवाओं के लिए मांग पैदा करने के लिए एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है, जो बदले में लॉन्च वाहनों की आवश्यकता को बढ़ाएगा। भारतीय सरकार का मानना है निजी क्षेत्र इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों के निर्माण, लॉन्च और सेवाएं प्रदान करके इस मांग को उत्पन्न करेंगें।
  • सरकार के रूप में एंकर ग्राहक: निजी कंपनियाँ चाहती हैं कि सरकार उनकी ग्राहक बने, जिससे समय के साथ एक विश्वसनीय राजस्व सुनिश्चित हो। यह दृष्टिकोण यू.एस. मॉडल को दर्शाता है, जहां सरकारी अनुबंध निजी अंतरिक्ष कंपनियों जैसे स्पेसएक्स और ब्लू ओरिजिन का समर्थन करते हैं। एंकर ग्राहक के रूप में कार्य करके, भारतीय सरकार निजी कंपनियों को उनके प्रारंभिक चरणों में सहायता कर सकती है।
  • सरकारी से निजी क्षेत्र में संक्रमण: अंततः, सरकार का लक्ष्य लॉन्च व्हीकल व्यवसाय से बाहर निकलना है, और जब पर्याप्त मांग हो तब इसे निजी कंपनियों के लिए छोड़ देना है इस संक्रमण में आपूर्ति-चालित से मांग-चालित मॉडल में बदलाव की लागत को सरकार द्वारा वहन करना और उपग्रहों एवं लॉन्च वाहनों के लिए एंकर मांग पैदा करने के लिए अपने स्वयं के मंत्रालयों को जागरूक करना शामिल है।

निष्कर्ष

इसरो की वर्तमान चुनौती लॉन्च करने के लिए उपग्रहों की तुलना में अधिक रॉकेट हैं।  मांग-चालित मॉडल में संक्रमण और पर्याप्त मांग पैदा करने के लिए ग्राहक जागरूकता की आवश्यकता है। भविष्य के मांग चालक, जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ान एवं तकनीकी उन्नति, संभावित समाधान प्रदान कर सकते हैं। हालांकि, एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का विकास, जिसमें निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी और एंकर ग्राहक के रूप में सरकारी समर्थन शामिल हो, भारत में एक स्थायी और समृद्ध अंतरिक्ष उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के संभावित प्रश्न

  1. किन कारकों ने इसरो के आपूर्ति-चालित से मांग-चालित मॉडल में परिवर्तन में योगदान दिया, और इस बदलाव ने संगठन के वर्तमान संचालन और लॉन्च वाहन उपयोग पर कैसे प्रभाव डाला है? (10 अंक, 150 शब्द)
  2. भारतीय सरकार और निजी क्षेत्र किस प्रकार संभावित ग्राहकों को शिक्षित करने और उपग्रह सेवाओं के लिए पर्याप्त मांग उत्पन्न करने के लिए सहयोग कर सकते हैं, जिससे इसरो की लॉन्च वाहनों की अधिकता की चुनौती का समाधान हो सके? (15 अंक, 250 शब्द)

स्रोत: हिंदू

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