Date : 14/12/2023
प्रासंगिकता: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कीवर्ड्स: नैतिकता, रणनीतिक स्वायत्तता, इज़राइल-गाजा संघर्ष, पीएलओ (PLO)
संदर्भ:
गुटनिरपेक्षता और उपनिवेशवाद विरोध जैसे प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित भारत की विदेश नीति पर उपनिवेशवाद का प्रभाव लंबे समय तक रहा। लेकिन वर्तमान सरकार के तहत, भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन आया है। हाल के भू-राजनीतिक परिवर्तन वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। इस बदलाव को समझने के लिए इजरायल-गाजा संघर्ष एक महत्वपूर्ण मानक बनकर उभरा है।
ऐतिहासिक संदर्भ:
स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने शीत युद्ध के दौरान "रणनीतिक स्वायत्तता" और “गुटनिरपेक्षता” की नीति का अनुकरण किया । भारत की लोकतंत्र और विविधता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद साम्राज्यवाद के खिलाफ नैतिकता कभी-कभी पश्चिम विरोधी रुख में बदल जाती थी। 1947 में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ भारत का प्रारंभिक मतदान उसके खुद के ब्रिटिशकालीन विभाजन के अनुभव को प्रदर्शित करता है।
भारत का इज़राइल-फिलिस्तीन संबंधों के प्रति दृष्टिकोण:
- 1947 में, संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के पूर्व ब्रिटिश निर्धारित क्षेत्र को इज़राइल और फिलिस्तीन में विभाजित करने के लिए मतदान कराया गया ।
- भारत ने अपने स्वयं के ब्रिटिश-संचालित विभाजन के अनुभव के समानांतर इज़राइल और फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ मतदान किया।
- भारत ने फिलिस्तीन में अपने स्वयं के पंथनिरपेक्ष राज्य के समान एकल पंथनिरपेक्ष राज्य का समर्थन किया।
- प्रारंभिक विरोध के बावजूद भारत ने इजरायल की स्थापना के बाद उसे मान्यता प्रदान की, किन्तु चार दशकों से अधिक समय तक द्विपक्षीय संबंध राजनयिक स्तर के ही बने रहे।
- 1974 में, भारत फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organisation- PLO) को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना।
- 1988 में भारत ने औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी।
- 1992 में भारत ने इजरायल के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को राजदूत स्तर तक उन्नत किया।
भारत-इज़राइल संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव:
- पाकिस्तान समर्थित इस्लामी उग्रवाद के कारण भारत ने तेल अवीव के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा दिया है।
- भारत और इज़राइल दोनों ने इस्लामिक चरमपंथियों और आतंकवादी हमलों का सामना किया था । , जिससे दोनों देशों के मध्य सुरक्षा और खुफिया सहयोग को बढ़ावा मिला।
- समय के साथ भारत और इज़राइल के बीच राजनीतिक और राजनयिक संबंध समृद्ध होते रहे।
- उत्तरोत्तर सरकारों ने पीएलओ का समर्थन करना निरंतर जारी रखा।
- जब यासिर अराफात ने एक शांतिपूर्ण समाधान का रुख किया, तो भारत ने फिलिस्तीनियों और इजरायलियों के लिए सुरक्षा और गरिमा का आह्वान करते हुए दो-राज्य समाधान (two-state solution) का समर्थन किया।
- भारत ने इस क्षेत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए तेल अवीव और रामल्ला दोनों में राजदूत नियुक्त किए हैं।
- रक्षा उपकरणों और खुफिया सहयोग के साथ भारत-इज़राइल संबंध मजबूत हुए हैं।
- ऐसा आरोप भी लगाया गया कि इज़राइल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को घरेलू विरोधियों और आलोचकों के खिलाफ उपयोग के लिए एक निगरानी सॉफ्टवेयर प्रदान किया था।
- प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और नरेंद्र मोदी के बीच व्यक्तिगत जुड़ाव उनकी घनिष्ठता का प्रतीक है।
- 7 अक्टूबर को आतंकवादी हमले के बाद श्री मोदी ने तुरंत इजराइल के साथ एकजुटता प्रदर्शित की थी। उन्होंने सोशल मीडिया और टेलीफोन कॉल के माध्यम से अपना समर्थन भी व्यक्त किया।
- इजरायली प्रतिशोध पर राजनीतिक संबद्धता के बावजूद मोदी सरकार के समर्थकों ने भी इस एकजुटता का प्रदर्शन किया।
एकतरफा समर्थन में कमी:
- इज़राइल के लिए भारत के शुरुआती समर्थन को गाजा संघर्ष में बढ़ती हुई मृत्यु दर और मीडिया कवरेज के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा।
- कुछ दिनों के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने एक संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य के लिए प्रत्यक्ष वार्ता फिर से शुरू करने के समर्थन में एक बयान जारी किया।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्दोषों की जान जाने पर शोक व्यक्त करने के लिए फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को फोन कॉल किया।
- इस फोन कॉल ने भारत के रुख को संतुलित किया, क्योंकि अब्बास गाजा को नियंत्रित करने वाले हमास के विरोधी हैं।
- भारत ने इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर अपने लंबे समय से चले आ रहे सैद्धांतिक रुख को दोहराया है। साथ ही एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य का समर्थन किया है।
वैश्विक अलगाव और असामान्य गठबंधन:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हाल ही में "तत्काल, स्थायी और धारणीय मानवीय युद्धविराम" का आह्वान किया।
- भारत ने 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमलों की निंदा करने में प्रस्ताव की विफलता का हवाला देते हुए मतदान से अनुपस्थित रहने का फैसला किया।
- भारत का बहिष्कार फ्रांस के रुख की तुलना में अधिक इजरायल समर्थक दिखाई दिया, जिसे आलोचना का सामना करना पड़ा।
- इस निर्णय को महात्मा गांधी की भूमि के लिए असामान्य माना गया क्योंकि यह शांति को बढ़ावा देने वाले रुख की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं था।
- ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के इस कदम ने इसे शेष वैश्विक दक्षिण समूह से अलग कर दिया है, क्योंकि यह राष्ट्रों के इस समूह की आवाज के रूप में भारत की स्व-घोषित भूमिका के विपरीत है।
- बाद में एक सुधारात्मक कार्रवाई तब हुई जब भारत पहली बार तत्काल मानवीय युद्धविराम की मांग वाले प्रस्ताव के पक्ष में शामिल हुआ।
- इसके मतदान में भारत सहित 153 देश पक्ष में, 10 देश विपक्ष में और 23 देश अनुपस्थित रहे।
बदलते भू- राजनीतिक समीकरण और विदेश नीति का पुनर्गठन:
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में विशेष रूप से इज़राइल के प्रति भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
- चीन के संदर्भ में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की घनिष्ठता बढ़ी है, विशेष रूप से जून 2020 में गलवान घटना के बाद बीजिंग के इरादों के बारे में दोनों की साझा चिंताएँ हैं।
- अमेरिकी रणनीतिक सोच के प्रति अपनी ग्रहणशीलता के अनुरूप, भारत इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ "I2U2" वार्ता में शामिल हुआ। यह अब्राहम समझौते के बाद मध्य पूर्व की भू-राजनीति में पुनर्रचना को दर्शाता है।
- नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक आर्थिक सहयोग पहल के रूप में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप-आर्थिक गलियारा (IMEC) की शुरुआत की गई। यह प्रस्तावित व्यापार मार्ग भारत से सऊदी अरब होते हुए इज़रायली बंदरगाह हाइफ़ा तक विस्तृत होगा।
- वैश्विक भू-राजनीति में रूस की कम होती प्रासंगिकता और भारत की विवादित सीमा पर चीन की चुनौतियों ने भारत के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों की मौलिक पुनर्संरचना में योगदान दिया है।
- गाजा में हालिया संघर्ष भारत के वैश्विक मामलों पर विकसित हो रहे दृष्टिकोण में प्रत्यक्ष परिवर्तन को अभिव्यक्त करता है।
निष्कर्ष:
इज़राइल-गाजा संघर्ष पर भारत के रुख के साथ विदेश नीति की बदलती गतिशीलता वर्तमान सरकार के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करती है। भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक गुटनिरपेक्षता और उपनिवेशवाद-विरोधी भावनाओं से लेकर रणनीतिक गठबंधन बनाने और अधिक मुखर भूमिका अपनाने की समकालीन चुनौतियों के अनुरूप ढल रही है। इज़राइल-गाजा संघर्ष एक प्रिज्म के रूप में कार्य करता है, जिसके माध्यम से भारत के वैश्विक दृष्टिकोणों की पुनर्संरचना को समझा जा सकता है। यह दृष्टिकोण उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के साथ ऐतिहासिक गठबंधनों के संतुलन को दर्शाता है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-
- गलवान घटना और चीन के उदय ने भारत के क्षेत्रीय संरेखण, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इसके घनिष्ठ संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? मूल्यांकन करें। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप-आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसी पहलों और मध्य पूर्व में भारत की भागीदारी के बीच संबंधों का अन्वेषण करें । (15 अंक, 250 शब्द)
- भारत के उभरते वैश्विक दृष्टिकोण और वैश्विक मामलों पर बदलते परिप्रेक्ष्य पर इज़राइल-गाजा संघर्ष जैसी हाल की घटनाओं के प्रभाव का विश्लेषण करें। ये घटनाएँ भारत की विदेश नीति में प्रत्यक्ष बदलाव में कैसे योगदान करती हैं? (10 अंक, 150 शब्द)
Source- The Hindu