खबरों में क्यों?
- भारतीय रुपया जून के अंतिम सप्ताह में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 79 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया ।
रुपये की गिरावटः
- भारतीय रुपये में इस वर्ष लगातार गिरावट देखी जा रही है, 2022 की शुरुआत से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6% से अधिक की गिरावट आई है।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी $600 बिलियन से नीचे आ गया है, जो 3 सितंबर, 2021 से $50 बिलियन से अधिक कम हुआ है।
मुद्रा मूल्य का निर्धारणः
- किसी भी मुद्रा का मूल्य मुद्रा की मांग के साथ-साथ उसकी आपूर्ति से निर्धारित होता है।
- जब किसी मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है, तो उसका मूल्य गिर जाता है।
- दूसरी ओर, जब किसी मुद्रा की मांग बढ़ती है, तो उसका मूल्य बढ़ जाता है।
- व्यापक अर्थव्यवस्था में, केंद्रीय बैंक मुद्राओं की आपूर्ति का निर्धारण करते हैं, जबकि मुद्राओं की मांग अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा पर निर्भर करती है।
- विदेशी मुद्रा बाजार में, रुपये की आपूर्ति आयात, निर्यात और विभिन्न विदेशी संपत्तियों की मांग से निर्धारित होती है।
विनिमय दर का निर्धारणः
- अन्य मुद्राओं के सापेक्ष आपूर्ति और मांग के आधार पर विदेशी मुद्रा बाजार द्वारा एक अस्थायी विनिमय दर निर्धारित की जाती है।
- एक निश्चित या आंकी गई दर वह दर है जिसे सरकार (केंद्रीय बैंक) आधिकारिक विनिमय दर के रूप में निर्धारित करती है और बनाए रखती है।
- इसकी कीमत एक प्रमुख वैश्विक मुद्रा जैसे डॉलर, यूरो आदि के आधार पर निर्धारित होती है।
मुद्रा मूल्य में उतार चढ़ावः
- किसी मुद्रा का पुनर्मूल्यन (Revaluation) तब होता है जब एक मुद्रा का
मूल्य एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था में किसी अन्य मुद्रा के सापेक्ष बढ़ जाता
है, जबकि इसका विपरीत अवमूल्यन
(Devaluation) कहलाता है। - किसी मुद्रा का मूल्य वृद्धि (Appreciation) एक अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में एक या एक से अधिक विदेष्ठी संदर्भ मुद्राओं के संबंध में देष्ठा की मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है, जबकि इसका विपरीत मूलयह्वास (Depreciation) कहलाता है।
रुपये में गिरावट के कारणः
- यू. एस. फेडरल रिजर्व अपनी बेंचमार्क ब्याज दर बढ़ा रहा है जिससे निवेशक भारत जैसे उभरते बाजारों से पूंजी खींच रहे हैं और डॉलर की मांग में वृद्धि कर रहे हैं।
- भारत का चालू खाता घाटा, (वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात के मूल्य के बीच का अंतर) चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 3.3% के 10 साल के उच्च स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है।
- इससे रुपये पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। अन्य प्रमुख कारण भारत में लगातार उच्च घरेलू मूल्य मुद्रास्फीति है।
प्रभावः
a) सकारात्मकः
- कमजोर रुपये को सैद्धांतिक रूप से भारत के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन अनिश्चितता के माहौल में उच्च निर्यात में तब्दील नहीं हो पाता है।
b) नकारात्मकः
- यह आयातित मुद्रास्फीति जोखिम पैदा करता है ।
- भारत का आयात मूल्य और चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़ता है जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
आगे की राहः
- विनिमय दर को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई खुले बाजार में डॉलर की आपूर्ति शुरू कर सकता है।
- आरबीआई को डॉलर की मांग के अन्य घटकों की निगरानी करनी चाहिए।
- बाह्य वाणिज्यिक उधारी के माध्यमों को विवेकपूर्ण बनाया जाना चाहिए।
- सॉवरेन बांड या ऐसी किसी भी योजना को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई जानी चाहिए जिसमें निवेश करने के लिए प्रवासियों एवं विदेशियों को प्रोत्साहित किया जा सके।