यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)
विषय (Topic): छठा व्यापक विलोपन (Sixth Mass Extinction)
चर्चा का कारण
- हाल ही में संयुत्तफ़ राज्य अमेरिका के जनरल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित नए शोध के अनुसार धरती छठी व्यापक विलुप्ति (Six Mass Extinction) के दौर से गुजर रही है। शोध में दावा किया गया है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां हर रोज विलुप्त हो रही हैं और ये दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। साथ ही मानव सभ्यता भी अपने अस्तित्व की समाप्ति की ओर बढ़ रही है।
प्रमुख बिन्दु
- शोध में दावा किया गया है कि यह विलुप्तता मानव-जनित है और जलवायु विनाश से अधिक प्रभावशाली है। इस शोध में कहा गया है कि भले ही प्रजातियों की संख्या अब पहले से कहीं अधिक है, फिर भी उन पर संकट बना हुआ है।
- शोधकर्ताओं ने इसे ष्सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याष् के रूप में वर्णित किया है क्योंकि उनका कहना है कि प्रजातियों का नुकसान स्थायी होगा।
- शोधकर्ताओं ने स्थलीय कशेरुकाओं की 29,400 प्रजातियों का विश्लेषण किया और निर्धारित किया कि इनमें से कौन सी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- अध्ययन की गई प्रजातियों में से शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि 1000 में से 515 से अधिक विलुप्त होने के करीब हैं, और प्रजातियों का मौजूदा नुकसान 1800 के दशक से होता रहा है।
- इन 515 प्रजातियों में से अधिकांश दक्षिण अमेरिका (30 प्रतिशत), इसके बाद ओशिनिया (21 प्रतिशत), एशिया (21 प्रतिशत) और अफ्रीका (16 प्रतिशत) में हैं।
प्रजातियों का बड़े पैमाने पर विलुप्त होने का तात्पर्य
- व्यापक जैविक विलोपन ऐसी वैश्विक घटना को कहते हैं जिसके दौरान पृथ्वी के 75 प्रतिशत से अधिक वन्य जीव विलुप्त हो जाते हैं। पिछले 50 करोड़ वर्षों में, इस तरह के व्यापक विलोपन की पांच घटनाएं हुई हैं।
- इनमें से सबसे हालिया विलोपन ने डायनासौर को हमेशा के लिए खत्म कर दिया था। लेकिन हाल ही में किए गए कई शोध अध्ययनों ने समय-समय पर यह दावा किया है कि पृथ्वी एक और व्यापक विलोपन घटना की गिरफ्रत में है, जिसे छठा व्यापक विलोपन कहा जा रहा है ।
- गौरतलब है कि एंथ्रोपोसीन (जिसे छठा व्यापक विलोपन कहा जा रहा) एक प्रस्तावित युग का नाम है जिसमें मानव के कार्यकलापों के कारण धरती के भौमिकी पर तथा उसके पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े हैं। इस शब्द को आधिकारिक स्वीकृति अभी नहीं मिली है।
- पिछले 450 मिलियन वर्षों में हुई पांच सामूहिक विलुप्तताएं हुईं जो पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की 70-95 प्रतिशत प्रजातियों को नष्ट करने का कारण बनीं, जो पहले मौजूद थीं।
- विनाशकारी परिवर्तन के कारण जैसे कि बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्री ऑक्सीजन की कमी या क्षुद्रग्रह के टकराने से कई प्रजातियां समाप्त हो गयी थीं, जिन्हे पुनर्जीवित होने में लाखों साल लग गए।
मानव प्रजाति के कारण नुकसान
- शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रजातियों का नुकसान तब से शुरू हुआ है जब मानव पूर्वजों ने 11,000 साल पहले कृषि का विकास किया था। विदित हो कि तब से, मानव आबादी लगभग 1 मिलियन से 7.7 बिलियन तक बढ़ गई है।
- अध्ययन से पता चलता है कि पिछली सदी में 400 से अधिक कशेरुक प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं, शोधकर्ताओं का कहना है कि विलुप्त हुई प्रजातियों के विकास में 10,000 से अधिक वर्षों का समय लगा होगा।
- गौरतलब है कि यह अध्ययन वन्यजीवों के व्यापार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का आ“वान करता है क्योंकि वर्तमान में लुप्तप्राय या विलुप्त होने की कगार पर आ रही कई प्रजातियों को कानूनी और अवैध वन्यजीव व्यापार द्वारा नष्ट किया जा रहा है