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Brain-booster / 04 Aug 2020

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (विषय: रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman Spectroscopy)

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यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman Spectroscopy)

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman Spectroscopy)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में टाटा मेमोरियल सेंटर की एक टीम ने लार के नमूनों में मौजूद RNA वायरस का पता लगाने के लिये रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman spectroscopy) का प्रयोग किया।

परीक्षण विधि

  • अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने गैर-संक्रामक आरएनए वायरस के साथ लार के नमूनों को मिलाया और रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के साथ इसका विश्लेषण किया। इसके बाद रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के प्रारम्भिक डेटा का विश्लेषण किया गया तथा पॉजिटिव तथा निगेटिव संक्रमण वाले दोनों नमूनों के साथ इसकी तुलना की गयी।
  • शोधकर्ताओं को प्रत्येक नमूने से प्राप्त सभी 1,400 वर्णक्रमों (spectra) के सांख्यिकीय विश्लेषण से पता चला है कि 65 रमन वर्णक्रमीय विशेषताओं (Raman Spectral features) का एक सेट, पॉजिटिव संक्रमण की पहचान करने हेतु पर्याप्त है।

महत्त्व

  • शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 महामारी के संदर्भ में, इसका उपयोग मात्र स्क्रीनिंग के लिए किया जा सकता है क्योंकि, इसमें पता लगाये गए त्छ। वायरस, सामान्य सर्दी-जुखाम अथवा एचआईवी जैसे किसी बीमारी के भी हो सकते हैं।
  • इस परीक्षण में डेटा एकत्रीकरण तथा विश्लेषण की पूरी प्रक्रिया मात्र एक मिनट के भीतर की जा सकती है। दूसरे शब्दों में इसके द्वारा त्वरित परीक्षण परिणाम हासिल किये जा सकते हैं।
  • पोर्टेबल रमन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर को हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार अथवा किसी भी प्रवेश द्वार पर स्थापित किया जा सकता है, जहाँ इससे कुछ ही मिनटों में यात्रियों की शीघ्रता से जाँच की जा सकती है।

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जीवाणु संक्रमण के इलाज में कारगर

  • आमतौर पर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग पदार्थों में रासायनिक बंधन (bond) को पहचानने के लिए किया जाता है, इस अध्ययन की खासियत है कि यह अत्यंत संवेदनशील और त्वरित परिणाम देने वाला है।
  • रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के उपयोग से रोगजनक जीवाणुओं के व्यवहार की पहचान भी की जाती है जिससे चिकित्सकों को एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक निर्धारित करने में भी मदद मिलती है। इससे ओवेरडोज की संभावना भी कम होती है जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध का कारक बनता है।