पृष्ठभूमि
- प्रस्तावना लिखने वाला अमेरिकी संविधान सर्वप्रथम था. भारतीय संविधान की प्रस्तावना "उद्देश्य संकल्प" पर आधारित है, जिसे जवाहर लाल नेहरू द्वारा तैयार और प्रस्तुत किया गया तथा संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था
प्रस्तावना
- "हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास व उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली, बंधुत्व बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधि नियमित और आत्मार्पित करते हैं"
प्रस्तावना के तत्व
- अधिकार का स्रोतः प्रस्तावना में वर्णित है कि संविधान भारत के लोगों से अपनी शक्ति प्राप्त करता है
- भारत की प्रकृतिः प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राज्य घोषित करता है
- उद्देश्यः न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात करता है
- संविधान को अपनाने की तिथिः 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया
प्रस्तावना के निर्माण खंड
- संप्रभु:- बाह्य नियंत्रण से मुक्त
- समाजवादी:- सभी का कल्याण अर्थात सम्पदा का सभी में समान वितरण
- धर्मनिरपेक्ष:- राज्य का कोई धर्म नहीं होगा अर्थात सभी धर्मों को एक साथ प्रोत्साहित करेगा
- लोकतांत्रिक:- सरकार जनता की प्रतिनिधि होती है
- गणतंत्र:- राज्य के मुखिया चुने जाते हैं
- न्याय:- निष्पक्षता
- स्वतंत्रता:- आजादी
- समता:- कोई भेदभाव नहीं
- बंधुत्व:- भाईचारा
संविधान के भाग के रूप में प्रस्तावना
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य, 1973 में सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है
- हरिहर यादव बनाम झारखंड राज्य, 2014 में एससी ने कहा कि संविधान सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए राज्य पर एक जिम्मेदारी डालता है. प्रस्तावना वह रोशनी है जो एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के लिए राष्ट्र का पथ प्रदर्शन करती है
- महत्वपूर्ण लेख
- प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही विधायिका की शक्तियों पर रोक
- यह गैर-न्यायसंगत है, अर्थात इसके प्रावधान कानून की अदालतों में लागू नहीं होते है
मूल ढ़ाचे के रूप में प्रस्तावना
- केशवानंद भारती केस रू- 1973 और एक्सेल वियर केस, 1979 में एससी ने कहा कि प्रस्तावना में निर्दिष्ट उद्देश्यों में संविधान का मूल ढ़ाचा शामिल है
- मूल संरचना में शामिल हैं
- संविधान की सर्वोच्चता
- सरकार का गणतंत्रिक और लोकतांत्रिक स्वरूप
- संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- संविधान का संघीय चरित्र
प्रस्तावना की व्याख्या
केशवानंद भारती केस, 1973 चंद्र भवन बोर्डिंग केस, 1973 के अनुसार प्रस्तावना का प्रयोग निम्न के दायरे को निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है
- मौलिक अधिकार
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व
सामाजिक न्याय
- भारत के संविधान द्वारा नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए किए गए वादे को ध्यान में रखते हुए, जो नीतियां अपने सबसे कमजोर रूप में भी जनता को दुःख दे, उनको नजरंदाज नहीं किया जा सकता- (नंदिनी सुंदर केस, 2011)
प्रस्तावना में संशोधन
- केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, परन्तु "बुनियादी विशेषताओं" में कोई संशोधन नहीं किया गया है
प्रस्तावना में संशोधन
- प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन अधि नियम, 1976 द्वारा केवल एक बार संशोधन किया गया है- प्रस्तावना में तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए