तारीख (Date) : 07/11/2023
प्रासंगिकता; जीएस पेपर 2- सामाजिक न्याय - आरक्षण नीति
की-वर्ड: अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 16, ईडब्ल्यूएस, इंदिरा साहनी निर्णय, सामाजिक उत्थान
सन्दर्भ:
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के तेज विरोध को देखते हुए हाल ही में राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इस मुद्दे पर कानूनी सलाह देने के लिए न्यायाधीशों का एक पैनल गठित किया है।
भारत में आरक्षण:
- भारत में आरक्षण का अर्थ आबादी के कुछ वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और यहां तक कि विधायिकाओं में सीटों तक पहुंच आरक्षित करना है।
- आरम्भ में भारत के मूल संविधान में 10 वर्षों की सीमित अवधि के लिए केवल विधानसभाओं में आरक्षण का प्रावधान था, और वह भी अनुच्छेद 334 में निर्धारित था। बाद के संवैधानिक संशोधनों ने विधायी प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण की अवधि बढ़ा दी गई।
भारत में आरक्षण का आधार
- सामाजिक उत्पीड़न और भेदभाव: आरक्षण उन विशिष्ट समूहों के खिलाफ ऐतिहासिक सामाजिक उत्पीड़न और भेदभाव को संबोधित करने की एक रणनीति के रूप में कार्य करता है जिन्होंने अतीत में दमन सहा है।
- उत्थान के लिए सकारात्मक कार्रवाई: आरक्षण, जिसे सकारात्मक कार्रवाई भी कहा जाता है, समाज के वंचित वर्गों के उत्थान की सुविधा प्रदान करता है।
- ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारना: इसका उद्देश्य भारत की निचली जातियों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारना है और उन वंचितों के लिए समान अवसर प्रदान करना है जिनके पास पर्याप्त धन और संसाधनों तक पहुंच नहीं है।
- योग्यता और समानता को बढ़ावा देना: समानता पर आधारित योग्यता तंत्र स्थापित करने के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है, कि योग्यता के आधार पर मूल्यांकन करने से पहले सभी व्यक्तियों को एक समान स्तर पर लाया जाए, जिससे निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित हो सके।
मराठा कौन हैं?
- मराठा किसानों और जमींदारों के एक विविध समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो महाराष्ट्र राज्य में लगभग 33 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- यह ध्यान देने योग्य बात है, कि कई मराठा मराठी भाषी हैं, लेकिन सभी मराठी भाषी व्यक्ति मराठा समुदाय का हिस्सा नहीं हैं। राजनीतिक रूप से प्रभावशाली यह समुदाय राज्य की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा है।
- ऐतिहासिक रूप से, उन्हें पर्याप्त भूमि स्वामित्व वाली 'योद्धा' जाति के रूप में मान्यता दी गई है। 1960 में महाराष्ट्र राज्य की स्थापना के बाद से, वर्तमान मुख्यमंत्री सहित इसके 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 मराठा समुदाय से सम्बंधित हैं।
- वर्षों से भूमि वितरण और कृषि संबंधी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, मध्यम वर्ग और निम्न-मध्यम वर्ग के मराठों की समृद्धि में गिरावट देखी गई है, फिर भी वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
मराठा आरक्षण की मांग
- आरक्षण की मांग की उत्पत्ति:
- अध्यादेश के माध्यम से आरक्षण:
- महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएसबीसीसी) की भूमिका:
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम का अधिनियमन:
मराठा समुदाय लंबे समय से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की वकालत कर रहा है, जिसकी शुरुआत आज से लगभग 32 वर्ष पहले हुई थी।
वर्ष 1981 के बाद से, मराठा आरक्षण का मुद्दा राज्य के राजनीतिक परिदृश्य से जुड़ा हुआ है और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के लिए उत्प्रेरक भी रहा है।
वर्ष 2014 में, तत्कालीन राज्य सरकार ने सरकारी रोजगार और शैक्षिक अवसरों में मराठा समुदाय को 16% आरक्षण देने वाला एक अध्यादेश पेश किया था।
यह प्रयास नारायण राणे समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
एमजी गायकवाड़ के नेतृत्व में, 11 सदस्यों वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएसबीसीसी) ने एक व्यापक सर्वेक्षण किया, जिसमें 50% से अधिक मराठा आबादी वाले 355 तालुकाओं में से प्रत्येक के, दो गांवों के लगभग 45,000 परिवारों को शामिल किया गया।
15 नवंबर, 2018 को प्रस्तुत इस सर्वेक्षण के नतीजों ने इस बात की पुष्टि की, कि मराठा समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ष 2018 में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएसबीसीसी) के निष्कर्षों के आधार पर, तत्कालीन सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम के के तहत मराठों के लिए आरक्षण के प्रावधान को मंजूरी दे दी।