यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)
विषय (Topic): LAC पर अतिरिक्त भारतीय सेनाएं एवं उनके समक्ष चुनौतियां (Maintaining Troops on LAC)
चर्चा का कारण
- हाल ही में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के समीप चीन के आक्रामक रूख को देखते हुए भारत को अभी सीमा पर सेना की अतिरिक्त टुकडि़यों को तैनात करना पड़ रहा है।
- वर्तमान में जैसा चीन का रूख है उसे देखते हुये इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि इतनी बड़ी सेना को पूरी सर्दियों तक वहाँ तैनात रखना पड़ेगा।
- हाल ही में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के समीप चीन के आक्रामक रूख को देखते हुए भारत को अभी सीमा पर सेना की अतिरिक्त टुकडि़यों को तैनात करना पड़ रहा है।
- वर्तमान में जैसा चीन का रूख है उसे देखते हुये इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि इतनी बड़ी सेना को पूरी सर्दियों तक वहाँ तैनात रखना पड़ेगा।
भारत के समक्ष मुख्य समस्या
इस तरह की कठोर परिस्थितियों में सेना की तैनाती के दौरान भारत को निम्नलििखत प्रमुख कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैः
अत्यधिक ऊंचाई और निम्न तापमान:
- पूर्वी लद्दाख का क्षेत्र 14000-20000 फीट की ऊंचाई में स्थित एक शुष्क इलाका है। यहाँ तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। अधिक ऊँचाई पर हवा में ऑक्सीजन की मात्र भी कम हो जाती है जिससे साँस लेने में मुश्किल होती है।
उच्च लागत
- यहाँ की कठिन परिस्थितियों में एक सैनिक को रखने वहां रखने, उसे सुविधाओं से लैस करने, भोजन की व्यवस्था करने, उसके स्वास्थ्य संबंधित प्रबंधन करने ,उसके आश्रय को वातानुकूलित बनाने की एक साल की लागत कम से कम 10 लाख रुपये तक आसानी से पहुँच जाती है। ( इसके अलावा बहुत से खर्च ऐसे होते हैं जिन्हें उनकी संवेदनशील प्रकृति के कारण उजागर नहीं किया जाता है। ऐसे में सर्दियों के दौरान चीन से मुकाबले के लिए यहाँ सेना को तैनात रखना बहुत बड़ा आर्थिक व्यय भी बन जाता है।
रसद-आपूर्ति की समस्या
- ध्यावत है कि यहाँ तैनात सेना के लिए रसद-आपूर्ति सड़क परिवहन या हवाई परिवहन के माध्यम से की जाती है।
- लेह रसद आपूर्ति के लिए पहला पड़ाव है। यहाँ से इन सभी आपूर्ति का लगभग 70% सियाचिन या कारगिल जैसे आगे के ठिकानों पर ले जाना होता है।
- यहाँ से सेना कुछ सामग्रियों को ले जाने के लिए स्थानीय लोगों और खच्चरों की मदद लेती है। इस काम को वे गर्मियों के महीनों में अंजाम देते हैं।
- इसके लिए वे प्रतिदिन 10 किमी जाते हैं और वापस आते हैं ताकि सर्दियों के लिए ऊंचाई पर बैठे सैनिकों को भोजन और साजोसामान उपलब्ध हो सके।
परिवहन व्यवस्था
- सड़क आपूर्ति के लिए मार्ग केवल गर्मियों के दौरान ही खुले रहते हैं, ऊंचाई में होने के कारण नवंबर से लेकर मार्च-अप्रैल के आसपास तक ये मार्ग पूरी तरह से बर्फ से ढक जाते हैं।
- श्रीनगर से लद्दाख के लिए दो सड़क मार्ग हैं रोहतांग दर्रा और जोजी ला। लेकिन कोई भी मार्ग पूरे वर्ष यातायात के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता है। हालांकि साल के अंत तक रोहतांग सुरंग परिचालित होने से इस समस्या को हल किये जाने की उम्मीद है।
वर्तमान में अतिरिक्त लागत की आवश्यकता
- गौरतलब है कि सामान्य तैनाती के दौरान सेना द्वारा अप्रैल-मई में सर्दियों के लिए अतिरिक्त भंडारण कर लिया जाता है। आमतौर पर आपातकालीन आवश्यकताओं के लिए विमान का उपयोग किया जाता है।
- इसके अलावा सामान्य दिनों में जहां सर्दियों के लिए लिए भोजन, उपकरण आदि की लगभग 2 लाख टन आपूर्ति होती थी उसकी तुलना में इस बार कम से कम 3 लाख टन रसद-आपूर्ति की आवश्यकता होगी।अब सरकार को एक ओर खुले बाजार से सेना के लिए आवश्यक अतिरिक्त साजोसामान और रसद खरीदना पड़ेगा तो दूसरी ओर परिवहन के लिए भी अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा।
सैनिकों के लिए विशेष उपकरण
- अधिक ऊंचाई में सैनिकों को गर्म रखने और संभावित स्वास्थ्य खतरों से बचने के लिए सेना द्वारा विशेष उपकरणों की खरीद की जाती है।
- इसके अलावा संघर्ष वाले चारों स्थान में सेगलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट 14,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर हैं। जबकि डेपसंग क्षेत्र 17,000 फीट की ऊंचाई पर है, यहाँ संघर्ष की स्थिति तो नहीं बनी,लेकिन भारत के पारंपरिक गश्त बिंदुओं तक पहुँच को चीन द्वारा अवरुद्ध किया गया है। इसलिए भारत यहाँ भी पूरी तरह से सतर्कता बरत रहा है।
- ज्यादातर सैनिक पहली बार इन परिस्थितियों में तैनात किए जा रहे हैं ऐसे में उनका इन कष्टदायी परिस्थितियों में युद्ध-प्रशिक्षित भी होना भी एक कठिन कार्य है।
- साथ ही ऐसे ऊँचाई वाले स्थानों में तैनाती के लिए, सेना को विशेष वस्त्रें और पर्वतारोहण उपकारणों की आवश्यकता होती है।