चर्चा में क्यों?
- लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) का वर्तमान प्रकोप गुजरात और राजस्थान में
जुलाई, 2022 में शुरू हुआ। इसके बाद यह पंजाब, हिमाचल प्रदेश, अंडमान और
निकोबार, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, उत्तर
प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और झारखंड तक फैल गया है।
लम्पी स्किन डिजीज
- लम्पी स्किन डिजीज कैप्रीपॉक्स नामक वायरस के कारण होता है और यह वैश्विक-पशुधन के लिए एक उभरता हुआ खतरा है।
- यह आनुवंशिक रूप से गोटपॉक्स और शीपपॉक्स वायरस परिवार से जुड़ा है।
- यह पशुधन को रक्त पर निर्भर रहने वाले कीड़ों जैसे रोगवाहकों के माध्यम से संक्रमित करता है।
लक्षण
- प्रमुख लक्षणों में जानवर की त्वचा पर गांठ जैसी दिखने वाली गोलाकार, सख्त गांठों का पड़ना शामिल है।
- संक्रमित जानवर का वजन कम होने लगता है, दूध कम हो जाता है और बुखार और मुंह में घाव भी हो सकते हैं।
- अत्यधिक नाक और लार का स्राव अन्य लक्षण हैं।
- गर्भवती गायों और भैंसों को इस बीमारी के कारण गर्भपात हो सकता है और उनकी मृत्यु हो सकती है।
लम्पी स्किन डिजीज के प्रकोप का इतिहास
- यह रोग अधिकांश अफ्रीकी देशों में स्थानिक है। 2012 से मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व यूरोप और पश्चिम और मध्य एशिया में प्रकोप अधिक तेजी से हुआ है।
- 2019 से, एशिया में एलएसडी के कई प्रकोपों की सूचना मिली है।
- सितंबर 2020 में, महाराष्ट्र में वायरस का एक स्ट्रेन पाया गया। गुजरात में भी पिछले कुछ वर्षों में छिटपुट रूप से मामले सामने आए हैं।
- विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) के अनुसार, जिसका भारत एक सदस्य है, मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत सामान्य मानी जाती है।
मनुष्य को खतरा
- यह रोग जूनोटिक नहीं है अर्थात यह जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है और मनुष्य इससे संक्रमित नहीं हो सकते हैं।
- संक्रमित जानवर द्वारा उत्पादित दूध उबालने या पाश्चुरीकरण के बाद मानव उपभोग के लिए उपयुक्त होता है क्योंकि इस प्रक्रिया में दूध में उपस्थित कोई भी वायरस नष्ट हो जाता है।
चुनौतियां
- मृत पशुओं का निपटान एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि शवों का अनुचित निराकरण स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है।
- शवों के उचित निपटान में परिसर का कीटाणुशोधन एवं उच्च तापमान पर शवों का अंतिम संस्कार भी शामिल हो सकता है।
क्या प्रसार को रोका जा सकता है?
- एलएसडी का सफल नियंत्रण और उन्मूलन शीघ्र पता लगाने पर निर्भर करता है, इसके बाद तेजी से और व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया जाना चाहिए।
- पशु-शेडों को कीटाणु रहित करने के लिए कीटनाशकों और कीटाणुनाशक रसायनों का छिड़काव किया जाना चाहिए।
- संक्रमित मवेशियों को स्वस्थ पशुओ के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए तथा इलाज के लिए निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
- राज्य सरकार को इस प्रकोप से निपटानें में तेजी लानी चाहिए ताकि बकरी पॉक्स के टीके का उपयोग करके बाकी स्वस्थ मवेशियों को टीका लगाया जा सके।