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विषय (Topic): काकतीय राजवंश (Kakatiya Dynasty)
चर्चा का कारण
- हाल ही में आंध्र प्रदेश के धारानिकोटा (Dharanikota) में ‘काकती देवी’ मंदिर (जो काकतीय राजवंश के शासक गणपति देव द्वारा निर्मित किया गया था), को स्थानीय देवी बालूसुलाम्मा अर्थात् देवी दुर्गा के मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया है।
काकती देवी
- 13वीं शताब्दी में गणपति देव पहले राजा थे, जिन्होंने आंध्र के तटीय क्षेत्र तथा अपने राज्य की सीमा के बाहर काकती देवी की पूजा की शुरुआत की, जो काकतीय शासकों की कुलदेवी थी।
- समय बीतन े क े साथ, जब सरं क्षक विलप्ु त हा े गए, ता े मिं दर उपिे क्षत आरै असत्यापित हो गया, मूर्ति भी गर्भगृह में अपने मूल स्थान से लुढ़क गई और विकृत हो गई।
- वर्तमान में, मूर्ति को मंदिर के दक्षिणी तरफ एक छोटे से आश्रय में रखा गया है, जिसे स्थानीय रूप से गोलभामा गुड़ी के नाम से जाना जाता है।
काकतीय राजवंश
- काकतीय राजवंश का उत्कर्ष 12वीं -14वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। काकतीय वंश के राजाओं का शासन आधुनिक समय के प्रसिद्ध शहर हैदराबाद के पूर्वी भाग तेलंगाना में था।
- कल्याणी के चालुक्य वंश के उत्कर्ष काल में काकतीय वंश के राजा चालुक्यों के सामन्तों के रूप में अपने राज्य का शासन करते थे।
- चालुक्य वंश के पतन के बाद चोल द्वितीय एवं रुद्र प्रथम ने काकतीय राजवंश की स्थापना की थी।
राज्य विस्तार
- रुद्र प्रथम ने वारंगल को काकतीय राज्य की राजधानी बनाया था। रुद्र प्रथम के बाद महादेव व गणपति शासक बने। रुद्र प्रथम काकतीय वंश के सबसे योग्य व साहसी राजाओं में से एक था। उसने अपने राज्य की सीमा का बहुत विस्तार किया।
- गणपति ने विदेशी व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन प्रदान किया था। उसने विभिन्न बाधक तटकरों को समाप्त कर दिया। मोरपल्ली (आंध्र प्रदेश) उसके काल का प्रमुख बंदरगाह था।
- प्रतापरुद्र प्रथम, जिसे काकतीय रुद्रदेव के नाम से भी जाना जाता है, के शासनकाल के दौरान काकतीयों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इसने 1195 ई- तक राज्य पर शासन किया।
- काकतीयों ने अपनी पहली राजधानी हनुमानकोंडा बनायी, बाद में इन्होने अपनी राजधानी ओरुगलु/ वारंगल में स्थांतरित कर ली।
- इनके शासनकाल के दौरान, जाति व्यवस्था अधिक कठोर या जटिल नहीं थी, क्योंकि सामाजिक रूप से इसे बहुत महत्व नहीं दिया गया था। कोई भी व्यक्ति किसी भी पेशे को अपनाने के लिए स्वतंत्र था।
- 1323 ई- में वारंगल पर दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक द्वारा विजय प्राप्त करने के पश्चात काकतीय राजवंश समाप्त हो गया।
वास्तुकला
- काकतीय राजवंश ने साहित्य, कला और वास्तुकला को प्रोत्साहित किया।
- काकतीय राजवंश में रुद्रमादेवी के शासनकाल के दौरान महान इतालवी यात्री मार्काे पोलो ने काकतीय साम्राज्य का भ्रमण किया और उनकी प्रशासनिक शैली की विस्तृत रूप से प्रशंसनीय वर्णन किया।
- 12वीं शताब्दी में रूद्रमादेवी के पिता द्वारा प्रतिष्ठित काकतीय तोरण का निर्माण करवाया गया था जो वर्तमान में तेलंगाना का प्रतीक चिंह भी है। इस अलंकृत तोरण के बारे में कहा जाता है कि सांची स्तूप के प्रवेश द्वार के समान हैं।
- गौरतलब है कि प्रतापरुद्र प्रथम के शासनकाल के दौरान ही शिलालेखों में तेलुगु भाषा का प्रयोग प्रारंभ किया गया।
- गणपति देव द्वारा वारंगल में दर्शनीय पाखल झील का निर्माण किया गया था।
- इसके अलावा कोहिनूर हीरा के खनन का श्रेय भी काकतीय राजवंश को जाता है और वे इसके पहली स्वामी थे।
- वारंगल में काकतीय शासनकाल के दौरान निर्मित 1000 स्तंभ वाला मंदिर काकतीय वास्तुकला का एक उत्तम उदाहरण है।