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विषय (Topic): जापान ने विवादित द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति बदली (Japan has Renamed Islands Disputed with China)
चर्चा का कारण
- जापान ने हाल ही में उन द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति को बदलने के लिए एक विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिन पर चीन और जापान दोनों ने दावा किया है।
प्रमुख बिन्दु
- जापान के ओकिनावा नगर परिषद ने इस बिल को मंजूरी दी है। इसके बाद इशिगा की सिटी काउंसिल जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओउ के रूप में चिन्हित द्वीप समूह की प्रशासनिक स्थिति को बदल देगा। गौरतलब है कि इस द्वीप समूह में वर्तमान में लोग नहीं रहते हैं।
- जापान और चीन के बीच पूर्वी चीन सागर के द्वीपों को लेकर लंबे समय से विवाद है। जापान जहाँ इसे टोनोशीरो सेनकाकू (Tonoshiro Senkaku) द्वीप कहता है, वहीं चीन डियाओयू द्वीप बताकर इस पर दावा करता है।
- इन द्वीपों के समूह का क्षेत्रफल 1,931 किलोमीटर (लगभग 1,200 मील) है और यह टोक्यो के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है। 1972 के बाद से जापानी प्रशासन के तहत, चीन ने इसकी भूमि पर अपने कब्जे का दावा करते हुए कहा था कि यह सैकड़ों साल पहले से उसका है।
- गौरतलब है कि द्वीपों के आस-पास के क्षेत्र में चीन की उपस्थिति पिछले कुछ महीनों से बढ़ रही है। जापानी सरकार ने दावा किया कि अप्रैल के मध्य से चीनी जहाजों को देखा जा रहा था, जो इस क्षेत्र में सबसे अधिक देखे जाने के लिए नया रिकॉर्ड स्थापित कर रहे थे।
चीन की प्रतिक्रिया
- जापान की इस घोषणा से चीन ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए एक बयान जारी किया। चीन के विदेश मंत्रलय ने कहा, कि डियाओयू द्वीप और उससे संबद्ध द्वीप चीन के निहित क्षेत्र हैं। यह तथाकथित प्रशासनिक फेरबदल चीन के क्षेत्रीय संप्रभुता को उकसाने वाला है।
- इसके अतिरित्तफ़, चीन ने द्वीपों के आस-पास के क्षेत्र में जहाजों के ‘बेड़े’ को भेज दिया है।
सेनकाकू द्वीप समूह की अहमियत
- सेनकाकू एक निर्जन द्वीप समूह है, जो पूर्वी चीन-सागर में स्थित है। इस द्वीपसमूह में कुल आठ द्वीप हैं जिनका कुल क्षेत्रफल 7 वर्ग किमी- है। यह द्वीप ताइवान के उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित है।
- जानकारों का मानना है कि सामरिक और व्यापारिक नजरिये से सेनकाकू की बहुत अहमियत है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि सेनकाकू द्वीप प्रशांत महासागर के व्यस्त शिपिंग मार्गों में पड़ता है। साथ ही ये दुनिया के सबसे संपन्न मत्स्यन क्षेत्र में से एक है।
- जानकारों के अनुसार यहां कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का भंडार प्रचुर मात्र में उपलब्ध है। माना जाता है कि पूरे पूर्वी चाइना-सागर में कच्चे तेल और गैस का जितना भंडार है, उसका अधिकतर हिस्सा ओकिनावा के आसपास के हिस्से में है। चूंकि सेनकाकु भी इसी हिस्से में है, इसलिए यहां भी कच्चे तेल और गैस का बड़ा भंडार होने का अनुमान है।
अमेरिका की भूमिका
- जापान एशिया में अमेरिका का सबसे बड़ा पार्टनर है। 1951 में जापान और अमेरिका के बीच सुरक्षा करार हुआ था। इसके तहत अमेरिका ने योको-सुवा, कनागाव और ओकिनावा जैसे जापानी ठिकानों पर अपने सैन्य बेस बनाए और बदले में जापान को गारंटी मिली कि अगर उसके ऊपर हमला हुआ, तो अमेरिका उसकी सुरक्षा करेगा। इसी करार के कारण जब सेनकाकु पर चीन की धमकियां बढ़ीं, तो अमेरिका की प्रतिक्रिया सामने आई।
- अमेरिका ने कहा कि सेनकाकु की सुरक्षा करना उसके द्विपक्षीय करार का हिस्सा है। अमेरिका ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी, तो जापान की तरफ से वो इस द्वीप की हिफाजत करेगा। यानी अगर चीन और जापान के बीच तनाव बढ़ा तो अमेरिका भी पीछे नहीं हटेगा।