डॉ. यू. वी. स्वामीनाथ अय्यर के बारे में
- डॉ. उत्तमाधानपुरम वेंकटसुब्बैयर स्वामीनाथ अय्यर, जिन्हें यू. वी. स्वामीनाथ अय्यर, प्रसिद्ध तमिल विद्वानों में से एक थे, जिनका जन्म 19 फरवरी 1855 को तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास उथमधनपुरम में हुआ था. प्रकाशन क्षेत्र में उनके प्रयासों के लिए, उन्हें सम्मानपूर्वक "तमिल तात" कहा जाता है, तमिल साहित्य के दादा. उनके पिता वेंकट सुब्बू अय्यर एक प्रमुख संगीतकार थे.
शिक्षा
- डॉ. स्वामीनाथ अय्यर ने अपनी स्कूली शिक्षा अपने ही शहर में प्राप्त किया.
- अपने 17वें वर्ष में, उन्होंने थिरिसीपुरम सुंदरम पिल्लई से तमिल सीखना शुरू किया, जो तिरुवदुथुराई शैव एथिनम में शिक्षक थे.
- यू. वी. स्वामीनाथ अय्यर ने 5 साल तक तमिल सीखी और बाद में उन्होंने वर्ष 1880 में कुंभकोणम के एक कॉलेज में काम किया और फिर उन्होंने कुछ समय के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास में काम किया
तमिल साहित्य में योगदान
- शास्त्रीय तमिल साहित्य के कई लंबे समय से भूले हुए कार्यों को प्रकाश में लाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था.
- उनके प्रयासों के कारण, बड़ी संख्या में साहित्यिक कृतियाँ जो ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों के रूप में घरो , भंडार कक्ष, बक्से और अलमारी में धूल जमा कर रही थीं, लोगो के सामने आयी.
- तमिल प्रेमियों ने सिलप्पतिकरम, मणिमेकलाई और पुराणनुरु को बहुत पसंद किया.
- संगम काल के दौरान तमिलों के जीवन को प्रतिबिंबित करने वाले पुराणनुरु ने इस विषय पर विद्वानों के शोध को प्रेरित किया.
- अय्यर ने अपने जीवनकाल में शास्त्रीय तमिल साहित्य से जुड़े विभिन्न विषयों पर 90 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कीं, और 3,000 से अधिक कागज पांडुलिपियां, ताड़-पत्ती पांडुलिपियां और विभिन्न प्रकार के नोट एकत्र किए.
- स्वामीनाथ अय्यर ने छोटी कविताओं, गीतों, पुराणों और भक्ति कार्यों सहित पुस्तकें प्रकाशित कीं.
तमिल संगीत में योगदान
- स्वामीनाथ अय्यर ने तमिल संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
- स्वामीनाथ अय्यर द्वारा सिलप्पतिकरम, पुट्टूपुट्टू और एट्टुथोकाई के प्रकाशन से पूर्व तक , संगीत तमिल शोध में एक ग्रे क्षेत्र था.
- पिछली चार शताब्दियों के दौरान, तमिल संगीत पर किसी भी मूल्यवान जानकारी के अभाव में तमिलनाडु में संगीत के क्षेत्र में तेलुगु और संस्कृत का बोलबाला था.
- स्वामीनाथ अय्यर के प्रकाशनों ने पिछली शताब्दियों में तमिल संगीत की उपस्थिति पर प्रकाश डाला और इस विषय पर गंभीर शोध का मार्ग प्रशस्त किया.
- अपने समय के एक प्रसिद्ध संगीतकार के पुत्र के रूप में, स्वामीनाथ अय्यर ने संगीत के प्रतिपादक और नंदन सरिथिराम के लेखक गोपालकृष्ण भारती से संगीत सीखा
आत्मकथा
- स्वामीनाथ अय्यर ने जनवरी 1940 से मई 1942 तक तमिल साप्ताहिक आनंद विकटन में अपनी आत्मकथा, एन सरिथम प्रकाशित की.
- बाद में इसे 1950 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया, यह पुस्तक 762 पृष्ठों की है.
- पुस्तक गांवों के जीवन और समय का एक उत्कृष्ट विवरण है, खासकर तंजावुर जिले में 19वीं शताब्दी के अंत में.
- तमिल सरल है और लोगों पर कई टिप्पणियों के साथ-साथ स्कूली जीवन, मठों में जीवन का वर्णन है.
- यह पुस्तक तमिल में महारत हासिल करने और पांडुलिपियों को बचाने के लिए यू वी स्वामीनाथ अय्यर की अत्यधिक दृढ़ता को भी प्रकट करती है
सम्मान
- रवींद्रनाथ टैगोर 1926 में चेन्नई में स्वामीनाथ अय्यर से मिले थे.
- टैगोर ने ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों से प्राचीन शास्त्रीय तमिल साहित्यिक कृतियों को जीवित करने के अय्यर के प्रयासों की प्रशंसा में एक कविता लिखी थी.
- 1906 में मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा अय्यर को मानद डॉक्टरेट की उपाधि (डी-लिट ) प्रदान की गई थी. उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक उपलब्धियों और योगदानों के लिए, उन्हें महामहोपथियाय की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ हैः "महान शिक्षकों में महान शिक्षक".
- उसी वर्ष, जब वेल्स के राजकुमार और राजकुमारी ने मद्रास का दौरा किया, तो एक समारोह का आयोजन किया गया जहां स्वामीनाथ अय्यर को सम्मानित किया गयाअय्यर को 1925 में दक्षिणाथ्य कलानिधि की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
- 1932 में, मद्रास विश्वविद्यालय ने तमिल के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के सम्मान में उन्हें मानद पीएचडी से सम्मानित किया.
- भारतीय डाक विभाग ने 18 फरवरी 2006 को एक स्मारक डाक टिकट जारी किया.
- उथमधनपुरम में उनके घर को स्मारक के रूप में बदल दिया गया है