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विषय (Topic): नागालैंड के सात विधायकों पर निरहर्रता का संकट (Disqualification Shadow on 7 Nagaland MLAs)
चर्चा का कारण
- गुवाहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा पीठ ने नागालैंड विधानसभा अध्यक्ष शरिंगेन लॉन्गकुमेर को एनपीएफ के सात बागी विधायकों के ख़िलाफ़ अयोग्य करार देने की कार्यवाही पूरी करने के निर्देश जारी किए हैं। साथ ही अदालत ने नागालैंड विधानसभा अध्यक्ष (Nagaland Assembly Speaker) को छह हफ्रते के भीतर मामले में उचित आदेश देने के निर्देश जारी किए हैं।
पृष्ठभूमि
- नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने 24 अप्रैल, 2019 को, अपने सात निलंबित विधायकों के ख़िलाफ़ निरर्हता याचिका दायर की थी। NPF ने आरोप लगाया है कि, इन साताें विधायकों ने वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने के पार्टी के सामूहिक निर्णय की अवहेलना की।
- NPF ने दावा किया कि इन सात विधायकों ने पार्टी की सदस्यता त्याग दी है, जिससे संविधान की 10 वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के प्रावधानों के अंतर्गत उन्हें निरर्हक (Disqualified) घोषित किया जाए।
- इस संदर्भ में इन विधायकों का तर्क है कि कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने हेतु NPF का निर्णय फ्क्षेत्रीयता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ था। इन विधायकों का कहना है कि उन्होंने दूसरे उम्मीदवार का समर्थन किया है। नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था।
किसी राजनितिक दल के सदस्य को अयोग्य घोषित करने का आधार
- यदि किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्यः
- स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है।
- अपनी राजनीतिक पार्टी के निर्देशों के विपरीत मतदान करता है, अथवा सभा में मतदान नहीं करता है। हालांकि, यदि सदस्य ने पूर्व अनुमति ले ली है, या इस तरह के मतदान के लिए 15 दिनों के भीतर पार्टी द्वारा उसकी निंदा की जाती है, तो सदस्य को अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा।
- यदि चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
- यदि विधायिका का सदस्य बनने के छह महीने बाद कोई नामित सदस्य किसी पार्टी में शामिल होता है।
दलबदल विरोधी कानून क्या है?
- संविधान में, 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा एक नयी अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई थी।
- इसमें सदन के सदस्यों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में दल-बदल के आधार पर निरर्हता (Disqualification) के बारे में प्रावधान किया गया है।
- इसमें सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दी गयी याचिका पर सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा ‘दल-बदल’ के आधार पर सदस्यों को बर्ख़ास्त किये जा सकने की प्रक्रिया को निर्धारित किया गया है।
- दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं एवं उनका निर्णय अंतिम होता है।
- यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर सामान रूप से लागू होता है।
दल-बदल विरोधी कानून के लाभ
- दल परिवर्तन पर लगाम लगाकर सरकार को स्थिरता प्रदान करता है।
- यह विधान सुनिश्चित करता है कि उम्मीदवार संबधित दल तथा दल के लिए मतदान करने वाले नागरिकों के प्रति निष्ठावान बने रहें।
- दलगत अनुशासन को बढ़ावा देता है।
- दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों को आकर्षित किए बिना राजनीतिक दलों के विलय की सुविधा देता है।
- राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करने की संभावना होती है।
- दल-बदल करने वाले सदस्यों के ख़िलाफ़ दंडात्मक उपायों का प्रावधान करता है।