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Brain-booster / 05 Jul 2020

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: प्रत्यक्ष धान बीजारोपण तकनीक (Direct Seeding of Rice)

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यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): प्रत्यक्ष धान बीजारोपण तकनीक (Direct Seeding of Rice)

प्रत्यक्ष धान बीजारोपण तकनीक (Direct Seeding of Rice)

चर्चा का कारण

  • पंजाब में श्रमिकों की कमी के कारण इस बार धान का रोपण पारम्परिक ढंग से नहीं होगा, बल्कि राज्य में अब धान की बुआई प्रत्यक्ष धान बीजारोपण तकनीक के माध्यम से होगी। गौरतलब है कि कोविड-19 के कारण कृषि श्रमिक अपने-अपने प्रदेश में लौट गए हैं।
  • पंजाब ने इस साल धान के कुल 27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से लगभग पांच लाख हेक्टेयर को धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) के दायरे में लाने का प्रस्ताव किया है।

प्रत्यक्ष धान बीजारोपण तकनीक क्या है

  • डीएसआर पद्धति के तहत, धान के बीज को सीड ड्रिल मशीन की मदद से खेत में जमीन के अंदर डाल दिया जाता है और साथ-साथ खर पतवार नाशक का छिड़काव किया जाता है।
  • डीएसआर पद्धति न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि श्रमिकों की कमी का भी समाधान है जो इस समय प्रवासी श्रमिकों के अपने मूल स्थानों पर लौटने के कारण महसूस की जा रही है। यह वास्तव में पर्यावरण हितैषी तकनीक है जिसमें कम पानी, थोड़ी सी मेहनत और कम पूँजी में ही धान फसल से अच्छी उपज और आमदनी अर्जित की जा सकती है।
  • धान की सीधी बुआई दो विधिओं यथा नम विधि एवं सूखी विधि से की जाती है। नम विधि में बुवाई से पहले एक गहरी सिंचाई की जाती है। जुताई योग्य होने पर खेत तैयार कर सीड ड्रिल से बुवाई की जाती है। बुवाई के बाद हल्का पाटा लगाकर बीज को ढँक दिया जाता है, जिससे नमीं सरंक्षित रहती है।
  • सूखी विधि में खेत को तैयार कर मशीन से बुवाई कर देते है और बीज अंकुरण के लिए वर्षा का इन्तजार करते हैं अथवा सिंचाई लगाते है। मौसम एवं संसाधनों की उपलब्धतता के आधार पर बुवाई की विधि अपनाना चाहिए। सिंचाई की सुविधा होने पर नम विधि द्वारा बुवाई करना उत्तम रहता है। इसमें खेत को मचाकर अंकुरित बीजों की बुवाई की जाती है। इस विधि के प्रयोग से फसल में 2-3 सप्ताह तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, साथ ही खरपतवार प्रकोप कम होता है।
  • धान की सीधी बुवाई करते समय बीज को 2-3 से-मी- गहराई पर ही बोना चाहिए ताकि जमाव एक अच्छा हो सके। नमीं अधिक होने पर उथली व कम होने पर हल्की गहरी बुवाई करना चाहिए।

रोपण विधि क्या है

  • रोपण विधि से धान की खेती करने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है। अनुमान है कि 1 किलो धान उत्पादन हेतु 4000-4500 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। विश्व में उपलब्ध ताजे जल की सर्वाधिक खपत धान की खेती में होती है।
  • रोपण विधि से धान की खेती करने के लिए समय पर नर्सरी तैयार करना, खेत में पानी की उचित व्यवस्था करके मचाई करना एवं अंत में मजदूरों से रोपाई करने की आवश्यकता होती है। इससे धान की खेती की कुल लागत में बढ़ोतरी हो जाती है।
  • खरीफ के मौसम में वर्षा जल की उपलब्धता में निरंतर कमीं आती जा रही है। समय पर वर्षा का पानी अथवा नहर का पानी न मिलने से खेतों की मचाई एवं पौध रोपण करने में विलम्ब हो जाता है। पौध रोपण हेतु लगातार खेत मचाने से मिट्टी की निचली सतह कठोर हो जाती है, परिणामस्वरूप मिट्टी में अन्तःश्रवण, वायु संचार एवं पोषक तत्वों का संतुलन प्रभावित होने से फसल उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ रहा है ।
  • लगातार धान-गेंहू फसल चक्र अपनाने से भूमि की भौतिक दशा खराब होने के साथ साथ भूमि की उर्वरता शक्ति में भी गिरावट होती जा रही है।

प्रत्यक्ष धान बीजारोपण की कमियाँ

  • प्रत्यक्ष धान बीजारोपण में लगभग दुगुने बीज लगते हैं। जहाँ पारम्परिक चावल की रोपाई में 4-5 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगते हैं, वहीं इसमें 8-10 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।
  • प्रत्यक्ष धान बीजारोपण करने के लिए भूमि को समतल बनाना अपरिहार्य होता है, जबकि रोपाई में ऐसा नहीं होता है।