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विषय (Topic): अरुणाचल प्रदेश को छठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग (Demand of Sixth Schedule for Arunachal Pradesh)
चर्चा का कारण
- काफी समय से अरुणाचल प्रदेश में दो स्वायत्त परिषदों को स्थापित करने की मांग चली आ रही है, अरुणाचल राजनीतिक समूह संविधान की छठी अनुसूची या अनुच्छेद 371 (ए) के दायरे में पूरे अरुणाचल प्रदेश को लाने का आवाहन कर रहे हैं।
- अनुच्छेद 371 ‘क’ कहता है कि नागालैण्ड के मामले में नागाओं की धार्मिक या सामाजिक परंपराओं, इसके पारंपरिक कानून और प्रक्रिया, नागा परंपरा कानून के अनुसार फैसलों से जुड़े दीवानी और फौजदारी न्याय प्रशासन और भूमि तथा संसाध नों के स्वामित्व और हस्तांतरण के संदर्भ में संसद की कोई भी कार्यवाही लागू नहीं होगी जब तक की नागालैण्ड की विधान सभा की स्वीकृति ना हो।
वर्तमान प्रावधानों में समस्याएँ
- अरुणाचल प्रदेश को अनुच्छेद 371भ् के तहत रखा गया है, जो कि राज्य के राज्यपाल को अधिभावी शक्तियां देने के अलावा विभिन्न मुद्दों पर चुप हैं जैसे कि अपनी भूमि, जल के जंगल पर स्वदेशी लोगों के अधिकार। छठी अनुसूची के विपरीत स्वदेशी समुदायों के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं हैं।
अरुणाचल प्रदेश की मांगे
- कई राजनीतिक दलों द्वारा अरुणाचल प्रदेश को छठी अनुसूची में सम्मिलित किये जाने की मांग की जा रही है। छठी अनुसूची में सम्मिलित होने से अरुणाचल के मूल निवासियों को सभी प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व अधिकार प्राप्त हो जायेंगे, जबकि अभी इन्हें मात्र संरक्षक के अधिकार प्राप्त हैं।
- राज्य को छठी अनुसूची में शामिल किये जाने पर राज्य को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर वैध स्वामित्व अधिकार मिल जायेगा, जिससे राज्य की केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता काफी हद तक समाप्त होगी तथा वह आत्मनिर्भर बन सकेगा।
अनुसूचित क्षेत्र
- संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र का अर्थ है, राष्ट्रपति के आदेशानुसार ऐसे क्षेत्र जिन्हें अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।
- भारतीय संविधान के भाग 10 में अनुच्छेद 244 - 244 (ए) के साथ अनुसूचित के जनजातीय क्षेत्र से सम्बंधित प्रावधानों को शामिल किया गया है। किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के लिए निम्नलििखत मानदंड हैंः
- आदिवासी आबादी की उच्च संख्या
- क्षेत्र की कॉम्पैक्टनेस और उचित आकार
- क्षेत्र के विकसित प्रकृति
- लोगों के आर्थिक मानक में विषमता।
- ये मानदंड भारत के संविधान में वर्णित नहीं हैं, लेकिन अच्छी तरह से स्थापित हो गए हैं।
संविधान की छठी अनुसूची
- वर्तमान में छठी अनुसूची के अंतर्गत चार पूर्वाेत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की 10 स्वायत्त जिला परिषदें सम्मिलित हैं।
- 1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त जिला परिषदों (।क्ब्े) के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है।
छठी अनुसूची के प्रमुख प्रावधान
- यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है।
- इसके अंतर्गत चार राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रें को स्वायत्त जिलों के रूप में गठित किया गया है।
- 6 वीं अनुसूची के तहत स्वायत्त जिला परिषद, केंद्रीय राज्य संरचना के आधार पर प्रशासनिक आवश्यकताओं को निर्देशित करने में एक बड़ी भूमिका देता है।
- राज्यपाल को स्वायत्त जिलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- यदि एक स्वायत्त जिले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल जिले को कई स्वायत्त क्षेत्रें में विभाजित कर सकता है।
स्वायत्त जिला परिषद
- जिला परिषद के निर्वाचित सदस्य, परिषद के आम चुनाव के बाद, परिषद की पहली बैठक के लिए नियुक्त तिथि से पाँच वर्षों के लिए पद धारण करेंगे।
- प्रत्येक स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं:
- राज्यपाल द्वारा चार नामित किए जाते हैं।
- बाकी चुनावों के जरिए चुने जाते है।