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विषय (Topic): न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
चर्चा का कारण
- हाल ही में भारत के सर्वाेच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना का नोटिस जारी किया।
- अपने ट्वीट में, अधिवक्ता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे तथा पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के अधीन अदालत के सामान्य कामकाज के बारे में टिप्पणी की थी। सर्वाेच्च न्यायालय ने इस बात के लिए उनके ट्वीट को दोषी पाया।
क्या है न्यायालय की अवमानना?
- न्यायालय अवमानना (Contempt of courts) अधिनियम 1971 के अनुसार अवमानना न्यायालय की प्रतिष्ठा या अथॉरिटी के प्रति असम्मान प्रकट करने का अपराध है।
- यह अधिनियम अवमानना या कंटेम्प्ट को सिविल और अपराधिक दो हिस्सों में विभाजित करता है।
- सिविल अवमानना का अर्थ यह है कि न्यायालय के किसी आदेश का जानबूझकर पालन न किया जाए।
- आपराधिक अवमानना में ऐसे काम या प्रकाशन शामिल हैं जो:
- न्यायालय को ‘अपमानित’ करते हैं, या
- किसी न्यायिक प्रक्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं,या
- किसी भी प्रकार से न्याय की स्थापना में दखल देते हैं।
न्यायालय की अवमानना के लिए संवैधानिक व्यवस्था
- अनुच्छेद 129: संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत सर्वाेच्च न्यायालय एक अभिलेखीय न्यायालय होगा साथ ही यह अनुच्छेद सर्वाेच्च न्यायालय को अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति भी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 142 (2) यह अनुच्छेद अवमानना के आरोप में किसी भी व्यक्ति की जाँच तथा उसे दंडित करने के लिये सर्वाेच्च न्यायालय को सक्षम बनाता है।
- अनुच्छेद 215: संविधान का अनुच्छेद 215 के तहत प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय के रूप में स्वीकार किया गया है जो उच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना के लिए दंडित करने में सक्षम बनाता है।
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत अदालती कार्यवाही के विरुद्ध बोलने पर ‘अवमानना प्रावधानों’ के अंतर्गत वाक् तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
न्यायालयों के अवमानना के शक्ति का औचित्य
- इसका उद्देश्य न्यायालय की गरिमा और उसके महत्व को बनाए रखना है।
- न्यायालय की अवमानना की शक्ति न्यायालय के आदेशों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है।
अवमानना के लिए सजा के प्रावधान
- अदालत अधिनियम, 1971 की धारा 12 के तहत अदालत की अवमानना के लिए एक अवधि के लिए साधारण कारावास जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या दो हजार रुपए तक का जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।
- इसके अलावा उच्च न्यायालयों को न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 10 के तहत अधीनस्थ न्यायालय की अवमानना के लिए भी दंडित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
निष्कर्ष
- भारत में सुप्रीम कोर्ट का न्याय क्षेत्र बहुत विस्तृत है साथ ही अवमानना की परिभाषा भी बहुत व्यापक है। इसलिए न्यायाधीशों और न्यायपालिका के आचरण की वैध आलोचना को रोकने के लिए भी न्यायालय की निंदा करने जैसे शब्दों की बहुत ही शिथिल व्याख्या की जाती रही है।
- प्रतिबंधों पर भी यथोचित युक्तता बनाए रखनी चाहिए परन्तु आलोचनाओं के प्रति न्यायालय कि यह अतिसक्रियता अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
- इस पर विचार करते हुए भारत में अवमानना के क्षेत्रधिकार में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।
अन्य देशों में अवमानना कानून
- अन्य देशों में भी न्यायालय की अवमानना के क्षेत्रधिकार को कम किया गया है या इसे समाप्त कर दिया गयाः
- ब्रिटेन में इसे 2013 में ही समाप्त कर दिया गया था।
- कनाडा ने अवमानना परीक्षण को प्रशासन के लिए वास्तविक, महत्वपूर्ण और तात्कालिक खतरा माना है।
- अमेरिकी अदालतें अब न्यायाधीशों या कानूनी मामलों पर टिप्पणियों के जवाब में अवमानना कानून का उपयोग नहीं करती हैं।