खबरों में क्यों?
- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने फ्राइडस फॉर फ्रयूचर (FFF) के सहयोग से "द क्लाइमेट क्राइसिस इज ए चाइल्ड राइट्स क्राइसिस" रिपोर्ट जारी की है
रिपोर्ट के बारे में
- यह उच्च-रिजॉल्यूशन भौगोलिक मानचित्रों को वैश्विक पर्यावरण और जलवायु प्रभावों का विवरण देने वाले मानचित्रों के साथ संयोजित करने वाली पहली जलवायु रिपोर्ट है जो उन क्षेत्रों को दिखाती है जहां बच्चे गरीबी और शिक्षा, स्वास्थ्य, देखभाल या स्वच्छ पानी तक पहुंच की कमी सहित कई कमियों की एक श्रृंखला के कारण कमजोर हैं
- रिपोर्ट में नए बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक (सीसीआरआई) का परिचय दिया गया है, जो एक समग्र सूचकांक है जो राष्ट्रों को निम्न आधार पर रैंक देता है
- बच्चों का जलवायु खतरों के संपर्क में आना
- जलवायु संकट से बच्चे वास्तव में कैसे प्रभावित होते हैं, इस विषय पर पहला व्यापक नजरिया प्रदान करना
- सबसे अधिक जोखिम वाले लोगों के आधार पर कार्यवाही को प्राथमिकता देने की मांग करने वाले नीति निर्माताओं के लिए एक रोड मैप की पेशकश करना
- पाकिस्तान (14वां), बांग्लादेश (15वां), अफगानिस्तान (25वां) और भारत (26वां) दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हैं जहां बच्चों पर जलवायु संकट के प्रभाव का अत्यधिक जोखिम है
- इससे पहले नोट्रेडेम ग्लोबल एडाप्टेशन इनिशिएटिव (एनडी-गेन) इंडेक्स पर आध शरित एक विश्लेषण ने दुनिया भर के बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दिखाया था
भविष्य के विकल्प
- कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक शुद्ध मानव निर्मित उत्सर्जन 2030 तक लगभग आधा हो जाना चाहिए, और 2050 तक "शुद्ध शून्य" तक पहुंच जाना चाहिए
- प्रत्येक बच्चे को किसी भी सामाजिक आपदा से सुरक्षित रखने के लिए अधिक देशों को बाल अधिकारों पर कन्वेंशन में अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में काम करने की आवश्यकता है
वैश्विक स्थिति
- मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चाड, नाइजीरिया, गिनी और गिनी-बिसाऊ जैसे देशों का विश्लेषण अधिकतम भेद्यता पर किया जाता है जहां बच्चे सर्वाधिक जोखिम में होते हैं
- यह पानी, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की अत्यधिक कमी के कारण है और इस प्रकार, जलवायु के मुद्दे उन्हें विविध तरीकों से प्रभावित करते हैं
- दुनिया भर में लगभग हर बच्चे को कम से कम एक जलवायु और पर्यावरणीय खतरों से खतरा है जो तटीय बाढ़, नदी में बाढ़, चक्रवात, वेक्टर जनित रोग, सीसा प्रदूषण, गर्मी की लहरें और पानी की कमी हैं
- अनुमानित 850 मिलियन बच्चे -(दुनिया भर में 3 में से 1)- ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां इनमें से कम से कम चार जलवायु और पर्यावरणीय समस्याएं ओवरलैप होती हैं
- कम से कम 330 मिलियन बच्चे -(दुनिया भर में 7 में से 1)- कम से कम पांच बड़े समस्याओ से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) के कारण सबसे कम जिम्मेदार देशों के बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. वे अन्य कारकों के अलावा जहरीले रसायनों, तापमान परिवर्तन और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील और सुभेद्य हैं
भारतीय परिदृश्य
- भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में से एक है जहां बच्चों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सबसे अधिक खतरा है
- यह अनुमान है कि आने वाले वर्षों में 600 मिलियन से अधिक भारतीयों को श्अत्यधिक पानी की कमीश् का सामना करना पड़ेगा, जबकि साथ ही वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर की वृद्धि के बाद भारत के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में फ्लैश फ्लडिंग में उल्लेखनीय वृद्धि होगी
- 2020 में सबसे प्रदूषित हवा वाले दुनिया के 30 शहरों में से 21 शहर भारत में थे
शिफारिशें
- बच्चों से संबंधित प्रमुख सेवाओं के लिए जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन में निवेश बढ़ाना
- तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए देशों को 2030 तक अपने उत्सर्जन को कम से कम 45% (2010 के स्तर की तुलना में) कम करने की आवश्यकता है
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए अनुकूलन और तैयारी के लिए बच्चों को महत्वपूर्ण जलवायु शिक्षा और हरित कौशल प्रदान करें
- सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं और निर्णयों में युवाओं को शामिल करें
- हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड-19 महामारी से उबरना हरित, निम्न-कार्बन और समावेशी है, ताकि आने वाली पीढि़यों की जलवायु संकट को संबोधित करने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता से समझौता न हो