चर्चा में क्यों?
- नीति आयोग ने हाल ही में ‘कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) पॉलिसी फ्रेमवर्क एंड इट्स डिप्लॉयमेंट मैकेनिज्म इन इंडिया’ नामक एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में सीसीयूएस नीतियों के ढांचे के विभिन्न पहलुओं, सीसीयूएस को अपनाने, विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों में इसके कार्यान्वयन के लिए एक व्यवहार्य आर्थिक मॉडल की जांच करती है।
सीसीयूएस के बारे में
- CCUS (IEA के अनुसार) को उन तकनीकों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जीवाश्म ईंधन, बिजली संयंत्रों आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से कार्बन कैप्चर करते हैं।
- इसमें कैप्चर किए गए CO2 का परिवहन, आमतौर पर शिपिंग, रेलवे आदि के माध्यम से या तो उपयोग के लिए साइटों पर भेज दिया जाता है या उन्हें भूगर्भीय गठन या समाप्त हो चुके तेल या गैस क्षेत्रों में इंजेक्ट करके स्थायी रूप से संग्रहीत कर लिया जाता है।
विश्व में सीसीयूएस
- पहली सीसीयूएस परियोजना 1970 और 1980 के दशक में टेक्सास (यूएसए) में प्राकृतिक गैस प्रसंस्करण संयंत्रों से CO2 को कैप्चर करने के लिए शुरू की गई थी ताकि उन्हें तेल वसूली की बढ़ोतरी के लिए स्थानीय तेल उत्पादकों तक पहुंचाया जा सके।
- हालांकि, अमेरिका के क्षेत्रों में काफी हद तक सीमित CCUS में वैश्विक रुचि पेरिस जलवायु समझौते 2015 के बाद बढ़ी है।
- यह अब संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे, कनाडा, ब्राजील, चीन आदि देशों प्रयोग हो रहा है।
भारत में सीसीयूएस की आवश्यकता
- लगभग 2.6 गीगाटन प्रति वर्ष के अनुमानित वार्षिक उत्सर्जन के साथ, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा CO2 उत्सर्जक है।
- भारत के औद्योगिक क्षेत्र ने 2020 में लगभग 60% अर्थात 1600 एमटीपीए CO2 उत्सर्जन में योगदान दिया।
- शेष 40% कृषि, परिवहन आदि जैसे स्रोतों से आया है जो सीसीयूएस द्वारा संशोधन योग्य नहीं है।
- चूंकि भारत 2050 तक अपने CO2 उत्सर्जन को 50% तक कम करने और 2070 तक निवल शून्य तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए इसे ऐसी तकनीकों की आवश्यकता है जो औद्योगिक क्षेत्रों से उत्सर्जन को कम करने के लिए समर्थ हो।
- भारत में सीसीयूएस, अभी के लिए कुछ उद्योगों और अनुप्रयोगों तक ही सीमित है जहां CO2 कैप्चरिंग प्रक्रिया का हिस्सा है, जैसे यूरिया के निर्माण में।
- भारत में वाणिज्यिक स्तर पर अभी तक कोई समर्पित सीसीयूएस परियोजना नहीं है।
रिपोर्ट में मुख्य विचार
- रिपोर्ट के अनुसार सरकार को भारत में तेजी से डीकार्बोनाइजेशन के लिए सीसीयूएस प्रौद्योगिकियों के नवाचार, विकास, हस्तांतरण को समर्थन और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
- यह प्रारंभिक रूप से प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण, आत्मसात करने और अपनाने के माध्यम से किया जाना चाहिए। साथ ही स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में काम करते हुए, अनुसंधान एवं विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।
- रिपोर्ट में सीसीयूएस परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए कार्बन कैप्चर फाइनेंस कॉरपोरेशन (सीसीएफसी) जैसा वित्तीय ढांचा स्थापित करने का सुझाव दिया गया है।
सीसीयूएस द्वारा योगदान
- डीकार्बोनाइजेशन और स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण के लिए सीसीयूएस द्वारा किए जाने वाले योगदानः
- मौजूदा उत्सर्जक जैसे औद्योगिक क्षेत्र, जिनकी भारतीय विकास में आवश्यकता है, CCUS उनकी निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद करता है।
- अधिक उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों को डीकार्बाेनाइज करना।
- निम्न कार्बन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
- वातावरण से CO2 स्टॉक को हटाना।