Brain-booster /
16 Jun 2023
यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: एक्स-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat)
चर्चा में क्यों?
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन एक्स-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat) बनाने
के लिए रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट (RRI), बेंगलुरु के साथ सहयोग कर रहा है, जिसे
इस साल के अंत में लॉन्च किया जाना है।
परिचय
- इसरो के अनुसार, ‘XPoSat चरम स्थितियों में चमकीले खगोलीय एक्स-रे स्रोतों
की विभिन्न गतिकी का अध्ययन करेगा।’
- इसे भारत का पहला और दुनिया का दूसरा पोलरिमीटर मिशन बताया गया है, जिसका
उद्देश्य चरम स्थितियों में खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिकी का अध्ययन
करना है।
- इस तरह का अन्य प्रमुख मिशन नासा का इमेजिंग एक्स-रे पोलरिमीटर एक्सप्लोरर
(IXPE) है जिसे 2021 में लॉन्च किया गया था।
अंतरिक्ष में एक्स-रे को समझना
- एक्स-रे में बहुत अधिक ऊर्जा और बहुत कम तरंग दैर्ध्य (0.03 और 3 नैनोमीटर
के बीच) होते हैं।
- किसी वस्तु का भौतिक तापमान उसके द्वारा उत्सर्जित विकिरण की तरंग दैर्ध्य
को निर्धारित करता है। वस्तु जितनी अधिक गर्म होगी, उत्सर्जन की तरंग दैर्ध्य
उतनी ही कम होगी।
- एक्स-रे लाखों डिग्री सेल्सियस तापमान पर उत्पन्न होते हैं-जैसे पल्सर,
गांगेय सुपरनोवा अवशेष और ब्लैक होल।
पोलरिमीटर का महत्त्व
- प्रकाश के सभी रूपों की तरह, एक्स-रे में गतिमान विद्युत और चुंबकीय तरंगें
होती हैं। आमतौर पर, इन तरंगों की चोटियाँ (Peaks) और घाटियाँ (Valleys)
यादृच्छिक दिशाओं में चलती हैं।
- ब्रिटानिका के अनुसार, पोलरिमीटर का क्षेत्र ध्रुवीकृत प्रकाश के तल के
घूर्णन के कोण के मापन का अध्ययन करता है (अर्थात, प्रकाश का एक पुंज जिसमें
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का कंपन एक तल तक सीमित होता है) जिसके परिणाम स्वरूप
कुछ पारदर्शी सामग्री के माध्यम से इसके पारित होने का परिणाम होता है।
XPoSat द्वारा इसरो के प्रयास
- इसरो की वेबसाइट बताती है कि विभिन्न खगोलीय स्रोतों जैसे कि ब्लैक होल,
न्यूट्रॉन तारे, सक्रिय गांगेय नाभिक आदि से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक
प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है और इसे समझना चुनौतीपूर्ण है।
- अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाएँ भी ऐसे स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन की सही
प्रकृति के बारे में जानकारी प्रदान करने में असमर्थ हैं। इसलिए, विशिष्ट गुणों
को मापने के लिए नए उपकरणों की आवश्यकता होती है।
XPoSat पेलोड
- अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक पेलोड ले जाएगा।
प्राथमिक पेलोड, POLIX (एक्स-रे में पोलीमीटर उपकरण), पोलरिमीटर पैरामीटर (ध्रुवीकरण
की डिग्री और कोण) को मापेगा।
- बेंगलुरू में इसरो के यू आर राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी) के सहयोग से
आरआरआई द्वारा पेलोड विकसित किया जा रहा है।
- एक्सएसपीईसीटी (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) पेलोड
स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी प्रदान करेगा (वस्तुओं द्वारा प्रकाश को कैसे
अवशोषित और उत्सर्जित किया जाता है)। यह कई प्रकार के स्रोतों का निरीक्षण करेगा,
जैसे एक्स-रे पल्सर, ब्लैक होल बायनेरिज, लो-मैग्नेटिक फील्ड न्यूट्रॉन स्टार
आदि।
निष्कर्ष
- एक्स-रे पोलरिमीटर सैटेलाइट (XPoSat) लॉन्च करने का भारत का प्रयास देश के
अंतरिक्ष अनुसंधान प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
- पोलरिमीटर तकनीकों का उपयोग करके, XPoSat ब्लैक होल, न्यूट्रॉन स्टार और
पल्सर सहित इन खगोलीय पिंडों की प्रकृति और व्यवहार में मूल्यवान अंतर्दृष्टि
प्रदान करेगा।
- XPoSat अपने लॉन्च की तैयारी कर रहा है, इसमें ब्रह्मांड के बारे में हमारी
समझ का विस्तार करने और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने की
क्षमता है।