संदर्भ: संसद सुरक्षा भंग मामले में गिरफ्तार किए गए छह आरोपियों में से पांच ने स्वेच्छा से पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने की सहमति दी है।
परिभाषा: पॉलीग्राफ टेस्ट में पूछताछ के दौरान शारीरिक प्रतिक्रियाओं (रक्तचाप, नाड़ी आदि) को मापकर व्यक्ति के झूठ बोलने या सच बोलने का पता लगया जाता है।
प्रक्रिया:
● इस परीक्षण के दौरान विभिन्न उपकरणों को शरीर से जोड़ा जाता है जो रक्तचाप, नाड़ी, श्वास और त्वचा के तापमान जैसे शारीरिक संकेतों को मापते हैं।
● फिर एक नियंत्रित वातावरण में व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं और उनकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया जाता है।
● विशेषज्ञ इन प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करते हैं और निर्धारित करते हैं कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
संख्यात्मक मूल्यांकन
● पॉलीग्राफ परीक्षण के दौरान रिकॉर्ड की गई प्रतिक्रियाओं को संख्यात्मक मान दिए जाते हैं।
● ये मान तब एक एल्गोरिदम द्वारा विश्लेषण किए जाते हैं जो झूठ बोलने की संभावना का आकलन करता है।
न्यायालय में स्वीकार्यता:
● 2010 के 'सेल्वी और अन्य' बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणाम स्वीकारोक्ति नहीं हैं, बल्कि खोजी गई जानकारी साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।
कानूनी दृष्टिकोण:
● सुप्रीम कोर्ट : टेस्ट के परिणाम की स्वीकारोक्ति नहीं हैं।
● हालांकि, टेस्टिंग के माध्यम से प्राप्त साक्ष्य और जानकारी का उपयोग अदालत में किया जा सकता है।